व्यर्थ ठहराव और व्यर्थनीय अनुबंध में अंतर: जिसे वैधानिक रूप से प्रवर्तनीय न किया जा सकता हो, व्यर्थ ठहराव होता है। जबकि वह ठहराव जो केवल एक अथवा एक से
व्यर्थ ठहराव और व्यर्थनीय अनुबंध में अंतर - Vyarth thahrav aur vyarthniya thahrav mein antar
व्यर्थ ठहराव और व्यर्थनीय अनुबंध में अंतर: जिसे वैधानिक रूप से प्रवर्तनीय न किया जा सकता हो, व्यर्थ ठहराव होता है। जबकि वह ठहराव जो केवल एक अथवा एक से अधिक पक्षकारों की इच्छा पर प्रवर्तनीय होता है, परन्तु दूसरे पक्षकार अथवा पक्षकारों की इच्छा पर क्रियान्वित नहीं होता है, व्यर्थनीय अनुबंध कहलाता है।
व्यर्थ ठहराव और व्यर्थनीय ठहराव में अंतर
अंतर का आधार | व्यर्थ ठहराव (Void Agreement) | व्यर्थनीय अनुबंध (Voidable Contract) |
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परिभाषा | जो ठहराव राजनियम द्वारा प्रवर्तित नही करवाया जा सकता है व्यर्थ कहलाता है। | वे अनुबन्ध जो केवल पीड़ित पक्षकारा अथवा पक्षकारों की इच्छा पर प्रवर्तनीय होते है।व्यर्थनीय अनुबन्ध कहलाते हैं। |
वैधता की अवधि | इनमें वैधता का बिल्कुल भी अंश नहीं होता है इन्हे न्यायालय द्वारा कभी भी प्रवर्तित नही करवाया जा सकता है। | समर्थनीय अनुबन्ध तब तक ही कानून द्वारा प्रवर्तित करवाया जा सकता है जब तक कि पीड़ित पक्षकारा द्वारा उसे व्यर्थ नही समझा जा सके। |
कानूनी अस्तित्व | इनका कानूनी दृष्टि से कोई अस्तिव नही होता है। इन्हें न्यायालय द्वारा अनुबन्ध ही नही माना जाता है। | इनका तब तक कानूनी अस्तिव बना रहता है जब तक की पीड़ित पक्षकार द्वारा रद्द नही कर दिया जाता है। |
धाराएँ | इसकी परिभाषा भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 2 (g) में दी गई है। | इसकी परिभाषा भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 2(i) में दी गई है। |
आधार | यदि ठहराव किसी अनैतिक कार्य के लिए या अवयस्क के साथ या बिना प्रतिफल के या किसी असम्भव कार्य करने के लिए या लोक नीति के विपरीत या गलती पर आधारित या अन्य किसी आधार पर व्यर्थ घोषित कर दिया जाय तो ठहराव व्यर्थ होता है। | यदि अनुबन्ध उत्पीडन, कपट, मिथ्या वर्णन, अनुचित प्रभाव या अनुचितदबाव के आधार पर किया गया हो तो यह व्यर्थनीय होता है। |
स्वरूप परिवर्तन | इसके स्वरूप में परिवर्तन होने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि यह हमेशा व्यर्थ रहता है। | व्यर्थनीय अनुबन्ध का स्वरूप बदलकर | वैध या व्यर्थनीय अनुबन्ध दोनों रूपों में पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर हो सकता है। |
क्षतिपूर्ति | व्यर्थ ठहराव में किसी भी पक्षकार को क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार नहीं होता है। | पीडित पक्षकार द्वारा व्यर्थनीय ठहराव को रद्द कर दिये जाने पर वह क्षतिपूर्ति माँग सकता है। |
हस्तान्तरण की स्थिति में अधिकार | व्यर्थ ठहराव की स्थिति में प्राप्त वस्तु का हस्तान्तरण करने वाला (Transferor) व पाने वाला (Transferee) दोनों का अधिकार (Title) दूषित रहता है। | व्यर्थनीय अनुबन्ध की दशा में यदि वस्तु का हस्तान्तरण पीड़ित पक्षकार के अनुबन्ध के व्यर्थ करने के अपने अधिकार को प्रयोग में लाये जाने से पहले ही हो जाय, तो प्रापक का अधिकार अच्छा होता है। |
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