मानव जीनोम प्रोजेक्ट पर टिप्पणी लिखिए (Short note on Human Genome Project in Hindi): संतान को जनक से गुणसूत्र (Chromosome) प्राप्त होते हैं। गुणसूत्र
मानव जीनोम प्रोजेक्ट पर टिप्पणी लिखिए (Short note on Human Genome Project in Hindi)
मानव जीनोम (Genome) प्रोजेक्ट: संतान को जनक से गुणसूत्र (Chromosome) प्राप्त होते हैं। गुणसूत्र में उपस्थित D.N.A. अणु प्रोटीन्स की सहायता से कुण्डलित होकर संघनित गुणसूत्र बनाते हैं। जीन्स का समुच्चय (Set of genes) जीनोम कहलाता है। मानव जीनोम परियोजना की शुरूआत सन् 1990 में USA (संयुक्त राज्य अमेरिका) ने अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम के रूप में की। इसका मुख्य उद्देश्य मानव जीनोम में DNA बनाने वाले न्यूक्लियोटाइड बेस जोड़े के अनुक्रम को निर्धारित करना था। जैव सूचना विज्ञान के द्वारा इस परियोजना को अधिक बल मिला।
मानव जीनोम परियोजना के तीन चरण हैं
- पहला चरण 1990 में शुरु हुआ। तब इसे पंद्रह वर्षीय परियोजना के रूप में लिया गया था। इसके तहत मनुष्यों के लगभग एक लाख जीनों में विद्यमान तीन अरब क्षार युग्मों का लक्ष्य रखा गया था। प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्य मात्र तीन वर्षों में ही पूरा हो गया।
- दूसरी योजना की कार्यावधि भी 1993-1998 तक रही।
- तीसरी योजना के अंतिम चरण में, क्षार युग्मों का पूरा डाटा बेस तैयार किया गया जो वर्हैष 2003 में पूरा हुआ।
मानव जीनोम परियोजना के के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- मानव जीनोम के भीतर मौजूद सभी 50,000 से 100,000 जीनों की पहचान करना
- मानव डी एन ए बनाने वाले लगभग तीन अरब बीस करोड़ क्षरकों का निर्धारण करना।
- विभिन्जीन जींस के कार्यों का निर्धारण करना।
- आनुवंशिक विकार उत्पन्न करने वाले जीन अर्थात उत्परिवर्तन का पता लगाना।
- रोग की आनुवंशिक जड़ों का पता लगाना और फिर उपचार विकसित करना।
- इस परियोजना से विकसित नई तकनीकों को उद्योग के रूप में परिवर्तित करने की सम्भावनाओं की खोज करना।
- मानव जीनोम में मौजूद तीन अरब रासायनिक आधार जोड़े (एडेनिन [G], थाइमिन [T], गुआनिन [G], और साइटोसिन [C]) के अनुक्रमों के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान करना।
- प्राप्त आँकड़ों के विश्लेषण के लिये संसाधन (Tools) विकसित करना।
- अधिक तेज और कार्यकुशल अनुक्रमित प्रौद्योगिकी का विकास करना।
मानव जीनोम परियोजना 1990 से 2003 तक संचालित थी। इस परियोजना से अब तक 6000 से अधिक आनुवंशिक बीमारियों का पता लगाया जा चुका है। इससे सबसे ज़्यादा फ़ायदा जीन चिकित्सा के क्षेत्र में होगा।
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