कपट और मिथ्या वर्णन में अंतर: कपट के अन्तर्गत एक पक्षकार द्वारा, जान-बूझकर असत्य बात को सत्य बताया जाता है। जबकि मिथ्या वर्णन करने वाला पक्षकार किसी ब
कपट और मिथ्या वर्णन में अंतर - Kapat aur Mithya Varnan mein Antar
कपट और मिथ्या वर्णन में अंतर: कपट के अन्तर्गत एक पक्षकार द्वारा, जान-बूझकर असत्य बात को सत्य बताया जाता है। जबकि मिथ्या वर्णन करने वाला पक्षकार किसी बात को सत्य जानकार कहता है, जबकि वास्तव में वह असत्य होती है।
कपट और मिथ्या वर्णन में अंतर
अंतर का आधार | कपट | मिथ्या वर्णन |
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आशय | कपट के अन्तर्गत एक पक्षकार द्वारा, जान-बूझकर असत्य बात को सत्य बताया जाता है। | मिथ्या वर्णन के अन्तर्गत किसी बात को जैसा कोई व्यक्ति समझता है वैसा ही दूसरे के सामने रखा देता है। जबकि वास्तव में वह असत्य होती है। |
उद्देश्य | कपट धोखा देकर दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से किया जाता है। | मिथ्या वर्णन में धोखा देने का उद्देश्य नहीं होता, अपितु अनुबन्ध करने के लिए प्रेरित करना होता है । |
सत्यता का ज्ञान | कपट करने वाले को सत्यता का ज्ञान होता है। | मिथ्या वर्णन मेंदोषी पक्षकार को सत्यता की जानकारी नही होती है। |
सूचना का दायित्व | कपट की दशा में पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध निरस्त करने की सूचना देने दायित्व के लिए उत्तरदायी नही होता है। | मिथ्यावर्णन की दशा में सत्यता ज्ञात होते ही पीड़ित पक्षकार दोषी पक्षकार के मिथ्यावर्णन की सूचना देने के लए उत्तरदायी होता है। |
जाँच के साधन | कपट में धोखा देने वाला पक्षकार (मौन द्वारा कपट की दशा को छोड़कर) यह नहीं कह सकता कि दूसरे पक्षकार के पास सत्य की खोज करने के पर्याप्त साधन थे अथवा वह साधारण उद्योग से ही सत्य की खोज कर सकता है। | इसमें ऐसी माँग की जा सकती है। |
वैधता | कपट की दशा में यदि पीड़ित पक्षकार उचित अवधि में अनुबन्ध के विरुद्ध कोई कार्यवाही न भी करें तो भी अनुबन्ध वैध नहीं हो सकता । | मिथ्या वर्णन की दशा में यदि पीड़ित पक्षकार उचित अवधि में अनुबन्ध के विरुद्ध कोई कार्यवाही न करें तो अनुबन्ध वैध हो सकता है। |
क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त | कपट में क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त लागू होता है। | इसमें क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त लागू नहीं होता । |
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