पुष्पी पादप में निषेचन पश्च घटनाओं की व्याख्या कीजिए: एक बार निषेचन होने के पश्चात युग्मनज (zygote) बनाता है। यह द्विगुणित होता है। इस प्रकार पुष्पी प
पुष्पी पादप में निषेचन पश्च घटनाओं की व्याख्या कीजिए।
पश्च निषेचन अवस्था अथवा भ्रूण जनन- एक बार निषेचन होने के पश्चात युग्मनज (zygote) बनाता है। यह द्विगुणित होता है। इस प्रकार पुष्पी पादप में द्विनिषेचन के बाद से फल के परिपक्वन तक की घटनाएँ सम्मिलित रूप से पश्च निषेचन घटनाएँ कहलाती हैं.
युग्मनज (Zygote): सभी जीवों में चाहे वह प्राणी हो या पादप निषेचन के पश्चात् युग्मनज बनता है। यह एक सार्वभौमिक (Universal) क्रिया है। बाह्य निषेचन वाले जीवों में युग्मनज शरीर से बाहर तथा अन्तःनिषेचन वाले जीवों में यह मादा शरीर में बनता है।
युग्मनज का आगे विकास मुख्यतः दो प्रकार से होता है:
- युग्मनज कुछ समय विश्राम कर सूत्री विभाजन द्वारा नया पादप बनाता है। उच्च पादपों में पहले भ्रूण बनता है। जीव द्विगुणित होता है।
- युग्मनज कुछ समय विश्राम कर अर्द्धसूत्री विभाजन करता है जिससे मियोस्पोर बनता है। मियोस्पोर के अंकुरण से अगुणित जीव बनता है। इस प्रकार की क्रिया सामान्यतः शैवालों व कवकों में तथा कुछ निम्न जन्तुओं में मिलती है।
युग्मनज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के मध्य जाति की निरन्तरता की कड़ी है। सभी जीवों तथा मानव में एककोशिकीय द्विगुणित युग्मनज अवश्य बनता है।
भ्रूण जनन (Embryogenesis): युग्मनज से भ्रूण बनने की क्रिया को भ्रूण जनन (Embryogenesis) कहते हैं । भ्रूण में सदैव सूत्री विभाजन होता है। उसके पश्चात कोशिका विभेदन (cell differentiation) होता है।
विभाजन के फलस्वरूप कोशिकाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है परन्तु कोशिका विभेदन के फलस्वरूप ऊतक बनते हैं। इसके बाद में जीव के अंगों का निर्माण होता है। पुष्पी पादपों में युग्मनज बीजाण्ड में बनाता है। बीजाण्ड अण्डाशय में सुरक्षित होता है। निषेचन के पश्चात पुष्प के अन्य अंग जैसे बाह्य दलपुंज, दलपुंज व पुमंग आदि सामान्यतः झड़ जाते हैं कुछ पौधों, जैसे, बैंगन, गुलाब आदि में बाह्य दलपुंज, झड़ते नहीं हैं । युग्मनज से भ्रूण बनता है और बीजाण्ड बीज में परिवर्तित होता है अण्डाशय की भित्ति से फल भित्ति (pericarp) बनती है। फल भित्ति फल में बीज को सुरक्षा प्रदान करती है बीज कवच में भ्रूण सुरक्षित रहता है। बीजों, फलों का प्रकीर्णन (dispersal) होने के बाद बीजों का अंकुरण अनुकूल परिस्थितियों में होता है। इसके पश्चात् इससे नया पादप बनता है।
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