क्षेत्रवाद का अर्थ, कारण और निवारण के उपाय बताइए: यह क्षेत्रवाद क्या है ? क्षेत्रवाद जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, अपने- अपने भौगोलिक क्षेत्रों के प
क्षेत्रवाद का अर्थ, कारण और निवारण के उपाय बताइए
यूं तो भारतवर्ष में क्षेत्रवाद (Regionalism) किसी न किसी रूप में सदैव उपस्थित था, परन्तु न तो पहले वह कभी इतना बड़ा था और न वह राष्ट्रीय हित के लिए इतना हानिकारक हुआ था। देश में अनेक राज्य होने पर उनमें क्षेत्रवाद से इतनी हानि न थी । परन्तु आज जबकि पूरा देश एक राष्ट्र हो गया है, उस समय क्षेत्रवाद से राष्ट्रीय एकता को भारी खतरा है।
क्षेत्रवाद का अर्थ और परिभाषा (Definition of Regionalism in Hindi)
यह क्षेत्रवाद क्या है ? क्षेत्रवाद जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, अपने- अपने भौगोलिक क्षेत्रों के प्रति भक्ति और दूसरे क्षेत्रों के लोगों के प्रति भय, अविश्वास या घृणा का भाव है। इस प्रकार भारत में आज विभिन्न क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे को विदेशी समझने लगे है। हर एक क्षेत्र अपने क्षेत्र में अपने क्षेत्र के लोगों का राज्य चाहता है और उनमें दूसरे क्षेत्रों से आये हुए लोगों को बिल्कुल स्थान नहीं देना चाहते, चाहे वे वहां कितने ही दिनों से रह रहे हों। इस प्रकार नागा क्षेत्र में कुछ लोगों ने एक पृथक् राज्य की मांग की है। पंजाब में अकाली दल ने पंजाबी सूबे की मांग की है। क्षेत्र के आधार पर बम्बई राज्य महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्यों में विभाजित हो गया। इसके अलावा कुछ लोग दक्षिणी भारत में एक बिल्कुल ही पृथक् राज्य बनाने की मांग लाये है। भारत एक संघ राज्य है। राज्य के कार्य कुछ संघ सरकार और कुछ राज्य सरकारों को मिले हुए हैं। ये सब राज्य अधिकतर आन्तरिक मामलों में स्वतंत्र हैं। इसलिए देश की एकता तभी तक रह सकती है, जब तक लोग पूरे देश को एक राष्ट्र और अपना देश समझें। यदि हर एक क्षेत्र के लोग अपने ही क्षेत्र के प्रति भक्ति रखें और उसमें राष्ट्रीय हितों की कोई परवाह न करें तो संघ सरकार का बने रहना कठिन हो जाएगा। इस प्रकार क्षेत्रवाद राष्ट्रीय हित के लिए एक भयंकर समस्या बन गई है।
क्षेत्रवाद के कारण (Reason of Regionalism in Hindi)
1. भौगोलिक कारण :- क्षेत्रवाद का मुख्य कारण भौगोलिक है। भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का रहन-सहन, पहनावा, खान-पान, रीति-रिवाज, इतिहास, भूगोल आदि कुछ न कुछ भिन्न होता ही है। इससे एक-दूसरे के प्रति भय और घृणा के भाव उत्पन्न हो जाते हैं।
2. ऐतिहासिक कारण:- जैसा कि पीछे संकेत किया जा चुका है, क्षेत्रवाद के मूल में एक कारण ऐतिहासिक भी है। उदाहरण के लिए भारतवर्ष में आर्यों के समय से ही दक्षिणी और उत्तर में कुछ न कुछ भेद बना रहा। उत्तर के बहुत से राजाओं ने दक्षिण को विजयी किया। दक्षिण में शायद ही कभी कोई ऐसा राज्य बन सका हो जो उत्तरी भारत तक फैला हो। इससे दक्षिण के बहुत से लोग दक्षिणी भारत को उत्तरी भारत से अलग समझते हैं।
3. सार्वजनिक कारण:- परन्तु यदि ध्यान से देखा जाये तो देश में फैले क्षेत्रवाद के मूल के मुख्य कारण राजनैतिक हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में राजनैतिक स्वार्थों को लेकर और राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ लोगों ने क्षेत्रीय देशों की मांग की है। इस दिशा में फिजो (Phizo) के विद्रोही नागा दल, पंजाब के अकाली दल, दक्षिण के द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) आदि विभिन्न राजनैतिक दलों का भारी हाथ था। सच तो यह है कि इन्हीं दलों के नेताओं ने इन क्षेत्रों में क्षेत्रवाद फैलाया है। केवल इतना ही नहीं बल्कि कुछ राष्ट्रीय दलों में भी भिन्न- भिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि क्षेत्रीय हितों के सामने राष्ट्रीय हितों की परवाह नहीं करते।
4. मनोवैज्ञानिक कारण:- अन्त में क्षेत्रवाद के विकास और स्थायित्व में मनोवैज्ञानिक कारण भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। हर एक क्षेत्र में लोग यह चाहते हैं कि उनका क्षेत्र सबसे अधिक उन्नति करे। यह तो कोई बुरी बात नहीं है, परन्तु जब इसके लिए वे अन्य क्षेत्रों और पूरे राष्ट्र के हितों को तुच्छ समझते हैं तो यह भावना क्षेत्रवाद का रूप धारण कर लेती है। इसके अलावा क्षेत्रवाद के पीछे बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं, जो अपने अंदर की ईर्ष्या, द्वेष, भय, क्रोध आदि की भावनाएं इस तरीके से निकालते हैं।
5. अन्य कारण:- उपरोक्त कारणों के अलावा कुछ अन्य कारण भी क्षेत्रवाद बढ़ाते है। उदाहरण के लिए भारत में बंगालियों और महाराष्ट्रियनों और पंजाबियों आदि में परस्पर विवाह बहुत कम देखे जाते हैं। आमतौर से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोगों में विवाह संबंध नहीं होते। इससे परस्पर घनिष्ठ संपर्क का अवसर कम आता है। इन सामाजिक कारणों के अलावा क्षेत्रगत तनाव के कुछ आर्थिक कारण भी हैं। देश में कुछ क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से बहुत पिछड़े हुए हैं। इससे उनमें हीनता की भावना रहती है और वे दूसरों से ईर्ष्या करने लगते हैं। | कुछ क्षेत्रों में. जैसे-व्यापार में कुछ विशेष क्षेत्रों के लोग अधिक सफल दिखाई पड़ते हैं। उदाहरण के लिए भारत में व्यापारी वर्ग में मारवाड़ियों, गुजरातियों और पंजाबियों ने अधिकतर अधिकार जमा रखा है। इसमें भी अन्य लोग उनसे जलते हैं और अपने क्षेत्रों से उनको निकालने की कोशिश करते हैं।
क्षेत्रवाद के निवारण के उपाय (Remedies of regionalism in Hindi)
1. यातायात और संदेशवहन का प्रोत्साहन :- क्षेत्रवाद को दूर करने के लिए देश में घूमने की और विभिन्न क्षेत्रों से संबंध बढाने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। भारत में जो तीर्थ करने की परम्परा है उसके कारण भी लोगों को सारे देश में घूमना पड़ता है। देश के भिन्न-भिन्न भागों में जाने से देशवासियों में यह भावना बढ़ती है कि भारतवर्ष एक बड़ा देश है और उसका क्षेत्र विशाल भारत का एक अंग मात्र है। देश में यातायात और संदेशवहन को प्रोत्साहित करके क्षेत्रवाद को कम किया जा सकता है।
2. राष्ट्रीय इतिहास का प्रचार:- सम्पूर्ण देश में राष्ट्रीय इतिहास का प्रचार किया जाना चाहिए, जिससे लोगों के सामने यह स्पष्ट हो जाए कि भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राष्ट्रीय इतिहास के प्रचार से क्षेत्रवाद की भावनाएं दूर होंगी।
3. क्षेत्रवादी राजनैतिक दलों पर रोक:- राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि क्षेत्रवाद का प्रचार करने वाले राजनैतिक दलों पर रोकथाम की जाए। खुल्लम-खुल्ला प्रचार करने पर उनको गैर-कानूनी घोषित कर दिया जाना चाहिए। यद्यपि जनतंत्र में हर एक व्यक्ति को अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए राजनैतिक दल बनाने का अधिकार है, परन्तु यदि इससे राष्ट्रीय हितों की हानि होती है तो यह अधिकार छीन लिया जाना चाहिए।
4. राष्ट्रीय भावना का प्रसार:- अन्त में क्षेत्रवाद के मूल के मनोवैज्ञानिक कारणों को दूर करने के लिए देश में भारतीय राष्ट्रीय भावना के प्रसार की चेष्टा की जानी चाहिए। इस दिशा में रेडियो, चलचित्रों, पत्र-पत्रिकाओं, व्याख्यानों आदि सभी उपायों से प्रचार करने की आवश्यकता है। सरकारी नौकरियों, शिक्षा संस्थाओं आदि सभी जगह से क्षेत्रवादी प्रवृत्तियों को निकालने की कोशिश की जानी चाहिए और राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
क्षेत्रवाद एक जटिल समस्या है। इसको सुलझाने के लिए सभी ओर से प्रयास की आवश्यकता है।
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