शारीरिक क्रियाओं व खेलों में भाग लेने वाले बालकों की आयु का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है ? स्पष्ट कीजिए। बालकों की आयु का शारीरिक क्रियाओं व खेलों
शारीरिक क्रियाओं व खेलों में भाग लेने वाले बालकों की आयु का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है ? स्पष्ट कीजिए ।
शारीरिक क्रियाओं व खेलों में आयु का निर्धारण
बालकों की आयु का शारीरिक क्रियाओं व खेलों से गहरा सम्बन्ध होता है। अतः शारीरिक क्रियाओं व खेलों में भाग लेने वाले बालकों की आयु का निर्धारण (मापन) करना अति आवश्यक है । इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर ऐसे बालकों का चुनाव किया जाता है जिनमें कोई जन्मजात शारीरिक या मानसिक दोष नहीं होता तथा वे शारीरिक क्रियाओं व खेलों में होने वाले पेशीय तनाव को सहन कर सकने में सक्षम होते हैं। इन्हीं में कुछ ऐसे बालक भी होते हैं जो पेशीय तनाव को सहन नहीं कर पाते हैं ।
बालकों की आयु इस वर्गीकरण का प्रमुख उपाय है जो सर्वाधिक प्रचलित और कम परिश्रम से तैयार किया जाता है। कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने शारीरिक क्रियाओं व खेलकूद में भाग लेने वाले बालकों की आयु का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है -
1. शारीरिक रचना आयु (Anatomical Age) - शरीर रचना मानव के कंकाल तन्त्र की वृद्धि एवं विकास से सम्बन्धित है। अस्थियों के ढाँचे की गुणवत्ता या वर्गीकरण शरीर रचना आयु का निर्धारण करने वाला मुख्य कारक है। बच्चे के कंकाल तन्त्र के विकास को पोषण की गुणवत्ता भी प्रभावित करती है। शरीर रचना की आयु दाँत के द्वारा गिनी जाती है। बच्चों के दाँतों की संख्या से आयु का ज्ञान होता है। जूनियर या सबजूनियर खेल प्रतियोगिता में जब आवश्यकता होती है तब आयु के मामलों को एक चिकित्सक के पास भेजा जाता है जिसमें दाँतों के परीक्षण द्वारा भी प्रतिभागी की आयु तय की जाती है। इसमें शरीर रचना आयु पर विचार करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बालकों की आयु को जानने में मदद करती है और यह भी निर्धारण करती है कि किन प्रतिभागियों को भारी कसरत करनी चाहिए या किसे नहीं। यह आयु बच्चे की दैहिक क्षमताओं और योग्यता से सम्बन्ध रखती है। विभिन्न ग्रन्थियों में हारमोन्स का छिपाव तथा बच्चे की आयु गिनते समय अंगों की कार्यात्मक अवस्था भी ध्यान में रखी जाती है। इस आयु का निर्धारण कुछ हद तक लड़कों की काँख में उगे बालों से भी किया जा सकता है और लड़कियों के मासिक धर्म से किया जा सकता है। क्रियाकलापों में भार का फैसला बच्चे की दैहिक क्षमता को जाने बिना कभी नहीं किया जाना चाहिए। बच्चे अपनी दैहिक आयु के ही बच्चों के साथ खेलना पसन्द करते हैं ।
2. कालक्रमिक आयु ( Chronological Age) इस आयु से मतलब एक व्यक्ति की वर्षों, महीनों, दिनों में दर्ज आयु से है। यह तब शुरू होती है जब बच्चा जन्म लेता है और तब तक गिनी जाती है जब तक उसकी मृत्यु न हो। कालक्रमिक आयु वह वैधानिक गणना है जिससे बच्चों व किशोरों में विभेद, एक मुख्य या गौण नौकरी के लिये योग्यता एक स्कूल में दाखिला लेने की आयु, यहाँ तक कि खेल स्पर्धाओं में जूनियर व सीनियर वर्गों में खेलने क किया जाता है। 17 वर्ष की आयु के बाद बहुत या थोड़ा कोई भी विकासात्मक प्रभाव नहीं होत है। व्यक्ति की वृद्धि दर यहाँ तक कि विभिन्न अंगों की वृद्धि बच्चों में भिन्न-भिन्न होती है जैसे - कुछ बच्चे हट्टे-कट्टे, स्वस्थ, मजबूत और पूर्ण परिपक्व होते हैं और कुछ अपरिपक्व कमजोर। यही कारण है कि खेल विज्ञानी कालक्रमिक आयु के आधार पर बच्चों के वर्गीकरण खिलाफ हैं। हालाँकि यह क्रियाकलापों पर अलग-अलग निर्भर करता है, उदाहरण जन्मतिथि ।
3. दैहिक आयु (Physiological Age) - प्रायः यह तरुणावस्था से सम्बन्धित है। यह आयु बच्चे की दैहिक क्षमताओं और योग्यताओं से सम्बन्धित है। विभिन्न ग्रन्थियों से हारमोन्स का छिपाव और बच्चे की आयु गिनते समय अंगों की कार्यात्मक अवस्था भी ध्यान में रखी जाती है। इस आयु का निर्धारण कुछ सीमा तक लड़कों की कांख में उगे बालों से भी की जा सकती है और इसका निर्धारण खिलाड़ियों की दैहिक क्षमता पर विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों के दैहिक रूप से जो क्रियाकलाप मेल खाते हैं उन्हें उसी तरह से बनाया जाना चाहिए। बच्चे अपनी दैहिक आयु के ही बच्चों के साथ खेलना पसन्द करते हैं जैसे पुरुषों में मूंछों का निकलना, आवाज में भारीपन, स्त्रियों में मासिक धर्म ।
4. मानसिक आयु (Mental Age) - मानसिक आयु बच्चे के मानसिक विकास से जुड़ी है, जैसे मानसिक परिपक्वता । शारीरिक और मानसिक परिपक्वता दो अलग-अलग चीजें हैं। कई बच्चे कई वर्षों के हो जाते हैं परन्तु शारीरिक विशिष्टिताएँ बच्चों की सी रहती हैं, अपरिपक्व रहते हैं, उनका मानसिक विकास पूर्णतया नहीं हो पाता। मानसिक आयु का पता आमतौर पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से लगाया जाता है ।
शारीरिक रूप से बढ़ने का यह अभिप्राय नहीं कि बच्चा मानसिक रूप से भी परिपक्व हो । कई बच्चे जल्दी परिपक्व होते हैं तो कई बच्चे देर से परिपक्व होते हैं। शिक्षक न केवल उनकी प्रशिक्षण की तकनीक से मदद करते हैं बल्कि उनमें बौद्धिकता, याददाश्त, स्मरण शक्ति आदि का पता करके बालकों को विकसित करने में मदद देते हैं।
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