शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता महत्व एवं क्षेत्र (Physical Education Scope and Importance in Hindi) शारीरिक शिक्षा वह शिक्षा है जो न केवल बालक के शारीरिक
शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता महत्व एवं क्षेत्र (Physical Education Scope and Importance in Hindi)
शारीरिक शिक्षा वह शिक्षा है जो न केवल बालक के शारीरिक पक्ष को ही प्रबल व पुष्ट बनाती है वरन् उसके व्यक्तित्व के अन्य पक्ष यथा मानसिक, सामाजिक एवं नैतिक पक्ष को भी सुविकसित करती है । स्वामी विवेकानन्द ने बल दिया है कि “भारत को आज भगवत् गीता की नहीं बल्कि फुटबॉल के मैदान की जरूरत है।” आधुनिक समाज में मनुष्य द्वारा स्वयं अपने चारों ओर खड़ी की गई समस्याओं से बाहर निकलने में शारीरिक शिक्षा हमारी मदद करती है। शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व इस प्रकार है।
शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व
1. सर्वांगीण विकास - शारीरिक क्रिया कलापों द्वारा वह बच्चे में मानसिक, नैतिक और शारीरिक गुणों का विकास करती है।
2. शारीरिक वृद्धि और विकास - इससे उसमें शारीरिक वृद्धि और विकास सही और व्यवस्थित तरीके से होता है। बच्चा एक मजबूत व्यस्क बनता है।
3. बौद्धिक विकास - शारीरिक शिक्षा के विभिन्न क्रिया-कलाप बच्चे के बौद्धिक और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करते हैं जो उसकी आगे की जिन्दगी अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
4.भावनात्मक विकास - क्रिया-कलापों से उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना आता है। हारना व जीतना दोनों प्रकार की भावनाओं पर नियंत्रित तरीके से व्यवहार करना सिखाता है।
5.सामाजिक समायोजना - यह प्रतिभागियों में मेल-मिलाप के अवसर प्रदान करती है जिससे उसमें खेल भावना, ईमानदारी, मित्रता, भाईचारा, शिष्टाचार, आत्म-अनुशासन इत्यादि गुणों को पैदा कराती है।
6. चारित्रिक विकास - सामूहिक प्रयास, टीम के प्रति वफादारी और मजबूत इरादे जो वह सीखता है उसके चरित्र के लिये उपयोगी साबित होते हैं।
7. नेतृत्व गुण - अच्छे नेता में आत्म विश्वास, बुद्धि, वफादारी, ईमानदारी समर्पण और साधन सम्पन्नता जैसे गुण होने चाहिये जो खेल के मैदान में बड़ी आसानी से विकसित होते हैं।
8. खाली समय का सही उपयोग - शारीरिक क्रियाकलापों से व्यक्ति अपनी फालतू ऊर्जा का समुचित उपयोग सीखता है और खाली बचे घंटों का सदुपयोग भी ।
9. मानसिक शान्ति - शारीरिक क्रियाकलाप जैसे योग, एरोबिक्स मनोरंजक क्रियाकलाप व्यक्ति के मानसिक तनावों को कम करते हैं व हताशा से मुक्ति दिलाते हैं।
10. आर्थिक उपादेयता - शारीरिक शिक्षा तेजी से कमाई वाले व्यवसाय का रूप ले रही है। प्रायोजित करने की अवधारणा ने खेलों को नयी अर्थपूर्ण दिशा दी है।
11. राष्ट्रीय एकता - शारीरिक शिक्षा राष्ट्रीय एकता व भावना को व्यक्ति में विकसित करती है।
12. अन्तर्राष्ट्रीय मेल मिलाप - शारीरिक शिक्षा राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़कर एक बड़ा प्लेटफार्म प्रदान करती है। अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाएँ विभिन्न देशों के खिलाड़ियों को व्यक्तिगत मेलमिलाप का अवसर देती है और भाईचारे की भावना को बढ़ाती है।
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र (Scope of Physical Education in Hindi)
शारीरिक शिक्षा उन छात्राओं तक ही केन्द्रित नहीं जो स्कूल, कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं बल्कि यह जनसंख्या के हर वर्ग, आयु, लिंग को अपने में समाहित करती है। यह केवल खिलाड़ियों की दक्षताओं को विकसित करने के लिये नहीं होते वरन् सारी जनता की रुचियों व आवश्यकताओं की पूर्ती भी करने के लिये होते हैं। व्यापक तौर पर हम शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों को चार भागों में बाँट सकते हैं।
- लोक सेवा कार्यक्रम
- अन्तरंग कार्यक्रम
- बहिरंग कार्यक्रम
- फिटनेस कार्यक्रम
1. लोकसेवा कार्यक्रम- शारीरिक शिक्षा के बारे में ज्ञान दिलाने के साथ-साथ यह स्वास्थ्य व स्वच्छता, प्रकृति, पर्यावरण और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का भी ज्ञान देता है।
2. अंतरंग कार्यक्रम- यह कार्यक्रम ग्रुप, क्लब, समाज, गाँव और संस्था की दक्षता को विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
3. बहिरंग कार्यक्रम- यह कार्यक्रम ग्रुपों, क्लबों, समाजों, गांवों और संस्थाओं के बीच प्रतियोगिताएँ कराकर उनमें मेलजोल जैसे अनुभवों को बढ़ाता है।
4. फिटनेस एवं मनोरंजनात्मक कार्यक्रम- यह कार्यक्रम समय की मांग देखते को हुए सभी के लिए स्वास्थ्य एवं फिटनेस के अलग एवं भिन्न प्रकार के कार्यक्रम उपलब्ध कराता है। यह व्यक्ति को रोमांच, एक्शन, क्रिया व्यापार और दक्षता में योग्य बनाता है। ताकि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं और भावनाओं की अभिव्यक्ति कर सके।
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