पाचन तंत्र से आप क्या समझते हैं ? पाचन तंत्र के प्रमुख अंग एवं कार्यों का वर्णन कीजिए: पाचन तंत्र से तात्पर्य उन सभी अंगों तथा उनकी भौतिक व रासायनिक क
पाचन तंत्र से आप क्या समझते हैं ? पाचन तंत्र के प्रमुख अंग एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- मनुष्य के पाचन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
- भोजन के पाचन से आप क्या समझते हैं?
- पाचन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए।
- आमाशय में पाचन क्रिया कैसे सम्पन्न होती है?
- आमाशय पर टिप्पणी लिखिए।
- पाचन तंत्र पर टिप्पणी लिखिए।
जीव-शरीर को जीवित दशा में बनाये रखने के लिए इसकी कोशिकाओं में निरन्तर उपापचय होता रहता है। उपापचय में निरन्तर खपने वाले पदार्थ या कच्चे माल (raw material) को जीव अपने बाहरी वातावरण से ग्रहण करता है। इसे जीव का पोषण कहते हैं ऊर्जा उत्पादन तथा वृद्धि एवं मरम्मत के लिए आवश्यक पदार्थ जीवों के पोषक पदार्थ कहलाते हैं। कार्बोहाइट्रेस, प्रोटीन्स एवं वसाएँ मुख्य अर्थात् दीर्घ पोषक पदार्थ हैं। मानव जो भोजन ग्रहण करता है उनके पोषक पदार्थों के अणु काफी बड़े-बड़े होते हैं। ये अणु शरीर की प्रत्येक कोशिका में हो रही उपापचयी क्रियाओं में सीधे उपयोग में नहीं आ सकते। अतः इस भोजन को शरीर कोशिकाओं के लिए उपयोगी बनाने के लिए इसके बड़े-बड़े अघुलनशील अणुओं को छोटे घुलनशील अणुओं में बदलना अनिवार्य है जिससे ये आँत की दीवार में अवशोषित होकर रुधिर द्वारा शरीर की कोशिकाओं में पहुँचाया जा सके तथा उपापचयी क्रियाओं में उपयोग में आ सके।
अतः वह क्रिया जिसके फलस्वरूप बड़े अणुभार वाले अघुलनशील भोज्य पदार्थ छोटे अणुभार वाले घुलनशील भोज्य पदार्थों में बदल जाते हैं या आहार नाल में भोजन को शरीर में खपने योग्य दशा बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं। इसमें कुछ भौतिक और कुछ रासायनिक प्रक्रियाएँ होती हैं। पाचन क्रिया शरीर के पाचन तंत्र द्वारा सम्पन्न की जाती हैं।
पाचन तंत्र (Digestive System)
पाचन तंत्र से तात्पर्य उन सभी अंगों तथा उनकी भौतिक व रासायनिक क्रियाओं से है जिनके द्वारा भोजन को साधारण तथा घुलित अवस्था में परिवर्तित कर अवशोषण योग्य बनाया जाता है। पाचन क्रिया में एक अंश नहीं बल्कि अंगों का समूह कार्य करता है। अतः पाचन क्रिया के विभिन्न अंगों की पूरी व्यवस्था को पाचन तंत्र ( digestive system) कहते हैं।
पाचन तंत्र के प्रमुख अंग (Parts of Digestive System in Hindi)
पाचन तंत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित अंग आते हैं -1. मुँह (Mouth) , 2. भोजन नली (Oesophagus or Pharynx) , 3. आमाशय (Stomach ) , 4. छोटी आँत (Small Intestine), 5. बड़ी आँत (Large Intestine)
1. मुँह (Mouth) - पाचन तंत्र मुँह से प्रारम्भ होता है। जैसे ही भोजन मुँह में आता है दाँत उसे काटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त कर देते हैं जिससे भोजन को निगलने और भोजन नली में खिसकने में सुविधा रहती है। मुँह के अन्दर का ऊपरी भाग एक कठोर अस्थि का बना होता है जिसे तालू कहते हैं। मुँह के सम्पूर्ण खोखले भाग को मुखगुहा कहते हैं। निचले भाग में जीभ होती है जो माँसपेशियों की बनी होती है और भोजन को इधर-उधर पलटने का कार्य करती है।
दाँत (Teeth) - दाँत भोजन को काटने व पीसने का कार्य करते हैं जिससे भोजन महीन सूक्ष्मतम कणों में विभक्त हो जाता है और पाचन क्रिया आसान हो जाती है। मनुष्य के जीवन में दाँत दो बार निकलते हैं।
लार ग्रन्थि (Salivary Glands) - जब भोजन मुँह में दाँतों द्वारा काटा जाता है तो धीरे-धीरे भोजन में एक तरल पदार्थ आकर मिलने लगता है जिसे 'लार रस' कहते हैं। लार रस के मिलने से भोजन लसलसा होकर, आगे अन्न प्रणाली में खिसकने योग्य हो जाता है। लार रस क्षारीय, चिपचिपा पदार्थ है जो मुँह में स्थित लार ग्रन्थियों से स्रावित होता है। लार ग्रन्थियाँ संख्या छः होती हैं जो मुँह में तीन स्थानों पर होती हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती है। लार ग्रन्थियाँ मुँह से तीन दायीं ओर तथा तीन बायीं ओर स्थित रहती हैं। सभी लार ग्रन्थियाँ तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क से सम्बन्धित रहती हैं। तन्त्रिकाओं की उत्तेजना के फलस्वरूप ही लार निकलने लगती है। जब मुँह में भोजन नहीं रहता है तो स्राव थोड़ा होता है जो मुँह के आन्तरिक भाग को गीला रखने व स्पष्ट बोलने में सहायक होता है।
लार रस द्वारा मुँह में पाचन क्रिया - लार रस क्षारीय होता है और इसमें टायलिन (ptylin) नामक एन्जाइम पाया जाता है जो बहुगुणी शर्करा स्टार्च का पाचन कर उसे दोहरी शर्करा माल्टोज में परिवर्तित करता है। पाचन क्रिया यहीं से प्रारम्भ होती है।
जीभ (Tongue) - जीभ भी मुँह का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह मोटी माँसपेशियों की बनी होती है। इसका मुख्य कार्य भोजन को दाएँ, बाएँ और ऊपर-नीचे खिसकाना है। जीभ में ही स्वादांकुर पाये जाते हैं। अतः जीभ के द्वारा ही खट्टा मीठा, कड़वा, कसैला आदि स्वादों का ज्ञान होता है। स्वाद का ज्ञान होने पर लार रस शीघ्रता से स्रावित होता है।
2. भोजन नली (Oesophagus or Pharynx) - मुँह के ठीक पीछे 'ग्रसनी' होती है जो कीप के आकार की होती है। यह भोजन नली का ही ऊपरी और प्रारम्भिक भाग है। मुँह से भोजन सर्वप्रथम इस ग्रसनी में ही आता है और फिर बाद में भोजन नली में पहुँचता है। ग्रसनी में ही श्वासनली का ऊपरी भाग खुलता है। भोजन श्वासनली में न जाये इसके लिए प्राकृतिक प्रबन्ध है। श्वासनली पर एक ढक्कन लगा होता है जिसे एपिग्लाटिस कहते हैं। जब भोजन निगला जाता है तो श्वासनली को बन्द कर देता है फिर भी यदि असावधानी से भोजन या पानी श्वासनली में चला जाता है तो शीघ्र ही श्वासनली के रोम इन्हें बाहर धकेल देते हैं जिससे खाँसी के साथ पानी या भोजन के कण बाहर आ जाते हैं।
ग्रासनली लगभग 40 सेमी० लम्बी होती है जो नीचे की ओर जाकर फैल जाती है और आमाशय का रूप धारण कर लेती है। यह घुमावदार मांसपेशियों की बनी होती है जिनके संकुचन व विमोचन से भोजन गले से धीरे-धीरे नीचे उतरता है। ग्रासनली में किसी प्रकार के पाचक रस स्रावित नहीं होते हैं इसलिए ग्रासनली में पाचन क्रिया नहीं होती है। यह तो भोजन को आमाशय तक पहुँचाने का कार्य करती है।
3. आमाशय (Stomach ) - ग्रासनली महाप्राचीरा पेशी ( diaphragm) के माध्यम से होती हुई आमाशय के रूप में परिवर्तित हो जाती है। अतः आमाशय ग्रासनली का ही फैला हुआ रूप हैं जो माँसपेशियों का बना मशक के आकार का होता है। यह महाप्राचीरा के ठीक नीचे होता है तथा इसका दाहिना भाग संकरा तथा बायां भाग चौड़ा होता है। यह लगभग 24 सेमी० लम्बा होता है। इसके अन्दर तीन प्रकार की माँसपेशियाँ होती हैं लम्बवत्, वृत्ताकार और तिरछी।
भोजन जैसे ही ग्रासनली से आमाशय में पहुँचता है तो वह आमाशय की वृत्ताकार माँसपेशियों के साथ पर्त के रूप में जमा हो जाता है। लम्बवत् और तिरछी माँसपेशियों के संकुचन और विमोचन से भोजन और अधिक महीन कणों में विभक्त हो जाता है।
आमाशय के भीतरी भाग में एक श्लेष्मिक झिल्ली होती है जिसमें असंख्य छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं जिन्हें जठर ग्रन्थियाँ' कहते हैं। इन ग्रन्थियों से एक रस स्रावित होता है जिसे आमाशयिक रस या जठर रस कहते हैं। यह रस अम्लीय होता है तथा इसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा दो प्रकार के एन्जाइम टेनिन और पेप्सिन होते हैं। ये प्रोटीन का पाचन करते हैं।
आमाशयिक रस द्वारा आमाशय में पाचन क्रिया: भोजन के आमाशय में पहुँचने के आधे घण्टे बाद तक आमाशयिक रस स्रावित नहीं होता, केवल आमाशय की माँसपेशियों के संकुचन और विमोचन के कारण महीन कणों में विभक्त होता है। आधे घण्टे के दौरान भोजन के साथ आमाशय में आया हुआ लार रस स्टार्च पर अपनी क्रिया करता है। लेकिन जैसे ही आमाशयिक रस आमाशय में आने लगता है लार रस जो कि अम्लीय है निष्क्रिय हो जाता है। आमाशयिक रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा रेनिन और पेप्सिन एन्जाइम पाये जाते हैं जो प्रोटीन का पाचन करते हैं। ये एन्जाइम अम्लीय माध्यम से कार्य करते हैं। अतः हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय बना देता है।
4. छोटी आँत (Small Intestine) - यह आमाशय के निचले भाग में प्रारम्भ होकर नीचे बड़ी आँत में मिल जाती है। यह लगभग 6 मी० लम्बी होती है तथा बड़ी आंत के घेरे में कुण्डली के रन्ध्र में स्थित रहती है। इसका ऊपरी भाग 25 सेमी० वाला भाग ही है जो "C" के आकार का होता है, पक्वाशय कहलाता है। पक्वाशय के बाद ये और संकरी हो जाती है जो छोटी आंत कहलाती है।
आमाशय के समान छोटी आँत भी चार स्तरों की बनी होती है। ऊपरी दो पर्तों में अनैच्छिक माँसपेशियाँ होती हैं। ये माँसपेशियाँ लम्बवत् और अनुप्रस्थ होती हैं। इन पेशियों के संकुचन और विमोचन से ही भोजन आगे बढ़ता है। आन्तरिक पर्त में रक्त कोशिकाएँ तथा असंख्य शोषणांकुर (villi) होते हैं जो पचे हुए भोजन को अवशोषित करने का कार्य करते हैं।
छोटी आँत में भोजन का पाचन - भोजन का पूर्ण पाचन छोटी आँत में होता है और यहीं से शोषण क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। छोटी आँत में भोजन 'काइम' के रूप में आता है। इस समय प्रोटीन पेप्टोन के रूप में, कार्बोहाइड्रेट डेक्सट्रिन तथा माल्टोज के रूप में तथा कुछ वसा भी वसा अम्ल और ग्लिसरॉल के रूप में होती है।
5. बड़ी आँत (Large Intestine) - छोटी आंत के अन्तिम भाग से ही बड़ी आँत प्रारम्भ हो जाती है। यह छोटी आँत की तुलना में अधिक चौड़ी होती है। छोटी आँत के बाद जहाँ से यह प्रारम्भ होती है उसके नीचे एक बन्दु थैली होती है जिसे अंधांत्र (सीकम) कहते हैं। इस अद्यत्र से जुड़ी हुई एक पूँछ के समान संरचना होती है जिसे 'एपेन्डिक्स' कहते हैं। यह 1 से 15 सेमी० लम्बा बन्द थैली के आकार का होता है। शरीर में इसका कोई कार्य नहीं है।
बड़ी आँत के दो भाग हैं- कोलन और मलाशय जिसमें कोलन लगभग 1.5 मी० लम्बा और 6 सेमी० चौड़ा होता है। कोलन का नीचे से ऊपर यकृत की ओर बढ़ता हुआ भाग 'आरोही कोलन' कहलाता है। फिर ये भाग बायीं ओर मुड़कर उदर गुहा को पार करता हुआ यकृत से झिल्ली तक जाता है। यह सीधा भाग 'अनुप्रस्थ कोलन' कहलाता है। आरोही कोलन का निचला भाग 'श्रोणी कोलन' कहलाता है। इसके आगे आँत साधारण नलिका के रूप में होती है जिसे 'मलाशय' (rectum) कहते हैं। मलाशय का अन्तिम सिरा मलद्वार' या गुदा (anus) कहलाता है। मलाशय में अपचित भोजन का संग्रह होता है जो गुदा द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
सहायक अंग (Accessory Organs)
यकृत और पित्ताशय (Liver and Gall bladder) शरीर में यकृत सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण ग्रन्थि है जो दाहिनी ओर निचली पसलियों के पीछे और महाप्राचीरा पेशी से ठीक नीचे स्थित है। यह भार में लगभग 13 किलोग्राम की होती है। बाह्य रूप में देखने से यह दो भागों में विभक्त दिखाई देती है। दायां भाग बायें भाग की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। नीचे की ओर एक नाशपाती के आकार की थैली होती है जिसे 'पित्ताशय' कहते हैं। पित्ताशय के नीचे नलिका होती है जिसका एक ओर सम्बन्ध यकृत से व दूसरी ओर पक्वाशय से होता है। यकृत में लगभग 500 से 700 ग्राम पित्तरस प्रतिदिन बनता है।
यकृत में दो रक्त नलिकाएँ रक्त पहुँचाने का कार्य करती हैं। एक नलिका यकृत धमनी ( शुद्ध रक्त ) कहलाती है जिसके रक्त से यकृत का पोषण होता है। दूसरी प्रतिहारिणी शिरा कहलाती है जो आमाशय, आँत, क्लोम ग्रन्थि और प्लीहा से अशुद्ध रक्त एकत्र करके यकृत में लाती है फिर यकृत में अशुद्ध रक्त महाशिरा में डाल दिया जाता है।
प्लीहा (Spleen) - यह लम्बे आकार की बैंगनी रंग की छोटी सी ग्रन्थि है जो पेट में बायीं ओर स्थित होती है। इसकी लम्बाई लगभग 12 सेमी० होती है। ये अत्यन्त कोमल होती है। इसका सम्बन्ध आँत व गुर्दों से होता है।
अग्न्याशय (Pancreas) - पाचन क्रिया में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पक्वाशय के घुमाव में पेट में बायीं ओर स्थित रहती है। यह लगभग 17 सेमी० लम्बी होती है और इसका विस्तार पक्वाशय से प्लीहा तक होता है।
COMMENTS