लिंग-भेद का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा लैंगिक भेदभाव को कम करने हेतु सुझाव दीजिये। लिंग-भेद का अर्थ लिंग के आधार पर महिलाओं पर किसी भी प्रकार का भेदभाव, ब
लिंग-भेद का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा लैंगिक भेदभाव को कम करने हेतु सुझाव दीजिये।
लिंग-भेद का अर्थ (Meaning of Gender Discrimination in Hindi)
लिंग-भेद का अर्थ लिंग के आधार पर महिलाओं पर किसी भी प्रकार का भेदभाव, बहिष्कार या बन्धन लगाने से है जिसका प्रभाव या उद्देश्य, चाहे उनका वैवाहिक स्तर कैसा भी हो, स्त्री-पुरुष के समानता के आधार पर प्राप्त अधिकारों को कमजोर करना या निष्प्रभावी बनाना है और महिलाओं को उनके प्रदत्त अधिकारों से वंचित करना है। इस लैंगिक भेद ने ही पुरुषों और स्त्रियों में जैविक विशेषताओं के साथ-साथ अन्य शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को न केवल जन्म दिया है अपितु उनको विकसित भी किया है। स्त्री-पुरुषों की इन व्यक्तिगत विशेषताओं ने उनके व्यक्तिगत व्यवहारों के साथ-साथ उनके द्वारा निर्मित समाज के अन्तर्गत सामाजिक व्यवहारों, सामजिक क्रियाओं एवं सामाजिक घटनाओं को भी घटित होने का अवसर प्रदान किया है और सामाजिक सम्बन्धों को विकसित किया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव समाज का अस्तित्व स्त्री-पुरुषों का इस लैंगिक भेद पर ही आधारित है, जिसने स्त्री-पुरुषों की अन्य विषमताओं को जन्म दिया और जिससे मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति का विकास एवं प्रसार भी हुआ है।
स्पष्ट है कि पुरुषों एवं स्त्रियों की विभिन्न क्षमताओं, योग्यताओं, कार्यों, व्यावहारिक सम्बन्धों में एक विशिष्ट, अन्तर है और यह अन्तर ही उनमें पारस्परिक सहयोग बनकर समाज के संगठन का कारण बना और जब-जब समय और परिस्थितियों से प्रभावित होकर इन विषमताओं द्वारा विरोध और संघर्ष का रूप धारण किया गया, तब-तब मानव समाज का विघटन हुआ और मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति का ह्यस हुआ। इस प्रकार मानवीय सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के मूल में स्त्री-पुरुषों की यह लैंगिक भेद ही है, जो विभिन्न युगों में समय एवं कालजन्य परिस्थितियों के अनुसार निरन्तर प्रभावित होता रहा है और "आज भी यह आधुनिक रूप में वर्तमान समाज में निरन्तर जारी है।
लैंगिक भेदभाव को कम करने हेतु सुझाव (Suggestions to Reduce the Gender Inequality in Hindi)
लैंगिक भेदभाव को कम करने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं -
1. लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिये स्त्री सशक्तीकरण एक सबल उपाय माना जाता है। आज सभी राष्ट्रों में इस दिशा में विशेष प्रयास किये जा रहे हैं।
2. लैंगिक भेदभाव को कम करने के लिये स्त्री-शिक्षा का प्रसार न केवल अनिवार्य किया जाये बल्कि निर्धन परिवारों की गरीब कन्याओं को छात्रवृत्तियाँ भी दी जायें। स्त्री शिक्षा का उद्देश्य स्त्री को आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर बनाना होना चाहिए ।
3. वर्तमान में सरकार द्वारा क्रियान्वित की जा रहीं कुछ नीतियों जैसे- स्त्री शिक्षा पर राष्ट्रीय समिति की रिपोर्ट (1958-59) कोठारी कमीशन रिपोर्ट (1964-65 ) तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति रिपोर्ट ( 1968- 69) के आधार पर स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के अधिक अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। इन प्रयासों को और भी अधिक प्रभावी बनाकर लैंगिक भेदभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
4. स्त्रियों को स्थानीय स्तर पर अपने संगठन बनाने के लिये भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा उनके संगठनों को सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
5. भारतीय परिवारों में बालक तथा बालिकाओं में किसी भी स्तर पर कोई भेद नहीं किया जाना चाहिए ।
पुरुषों तथा महिलाओं में लिंग भेद के प्रकार बताइए ।
पुरुषों तथा महिलाओं में लिंग भेद दो प्रकार के होते हैं - (1) शरीर रचना सम्बन्धी लिंग भेद, (2) शरीर क्रिया सम्बन्धी लिंग भेद । किशोरावस्था के प्रारम्भ में ही लड़कियों तथा लड़कों की शारीरिक विशेषताओं में सूक्ष्म अन्तर आ जाते हैं परन्तु ये अन्तर उच्च स्तर के नहीं होते हैं ।
- भारत में 14-15 वर्ष की अवस्था वाली लड़कियाँ अपनी आयु के लड़कों की तुलना में आगे हैं।
- लड़के 16-17 वर्ष की अवस्था को पार करने के बाद लड़कियों की तुलना में काफी आगे बढ़ जाते हैं।
- लड़कियों की तुलना में लड़कों की परिपक्वता की गति धीमी होती है।
- लड़कियों की वृद्धि 17-18 वर्ष की अवस्था में अपनी सीमा तक पहुँच जाती है, इसके विपरीत लड़कों में 24 वर्ष की अवस्था में यह वृद्धि पूर्ण होती है।
- बालक तथा बालिकाओं की खेल प्रतियोगिता एक साथ नहीं हो सकती है।
- बालिकाएँ खेलकूद में बालकों के बराबर उन्नति नहीं कर सकती हैं।
लिंग भेद प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था में साफ-साफ प्रकट होने लगते हैं। प्रौढ़ावस्था में लड़के तथा लड़कियाँ सन्तान पैदा करने योग्य हो जाते हैं। लड़कियों में मासिक धर्म होना, वक्षस्थल का उभर आना व लड़कों में स्वप्न दोष होना आदि लिंग सम्बन्धी गुण इनमें विभेद करने के प्रमुख कारक हैं।
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