कंकाल तंत्र का वर्णन कीजिये तथा मानव शरीर में अस्थियों की संख्या लिखिए: कंकाल ही शरीर का ढाँचा है। इसी के सहारे शरीर सधा रहता है। इस ढाँचे को ही 'कंका
कंकाल तंत्र का वर्णन कीजिये तथा मानव शरीर में अस्थियों की संख्या लिखिए।
कंकाल तंत्र किसे कहते हैं (Skeletal System in Hindi)
हमारे शरीर के निर्माण का आधार अस्थियाँ हैं। यदि हम शरीर की त्वचा, मांस, पुट्ठे आदि को काट-छांटकर निकाल दें तो मानव शरीर में मात्र अस्थियाँ ही दिखाई पड़ेंगी। वैसे भी यदि शरीर के किसी भाग को टटोला जाये तो त्वचा के नीचे मांस और मांस के नीचे अस्थियाँ मिलेंगी, किन्तु सारे शरीर के ऊपर से त्वचा, मांस और ऊंतकों को पृथक-पृथक कर देने से अस्थियों का बना एक कंकाल शेष रह जायेगा, जो देखने में अत्यन्त भयावह लगता है। यह कंकाल ही शरीर का ढाँचा है। इसी के सहारे शरीर सधा रहता है। इस ढाँचे को ही 'कंकाल तंत्र' या 'अस्थिपंजर' कहते हैं और इसके टुकड़ों को अस्थियाँ या हड्डियाँ कहते हैं।
हड्डियों का ढाँचा शरीर को साधे रहता है परन्तु ऐसा नहीं कि किसी मकान की तरह यह बिल्कुल सीधा और अचल हो। शरीर का ढाँचा जगह-जगह से मुड़ता है जिससे हम विशेष अंगों को अपनी इच्छा या आवश्यकता के अनुसार मोड़ और घुमा सकते हैं। यदि यह ढाँचा ऊपर से नीचे तक बिल्कुल ही कठोर और अचल होता तो न तो उगलियाँ उठतीं, न हाथ घूमते, न पैर खिसकते और न ही गर्दन मुड़ती परन्तु ऐसा नहीं है। ढाँचा सख्त तो होता है फिर भी ऐसा बना है कि कई जगहों से मुड़ जाता है।
अस्थियों की संख्या (Number of Bones)
शरीर के ढाँचे में कुल मिलाकर 206 अस्थियाँ होती हैं। ये 206 अस्थियाँ सम्पूर्ण शरीर में बँटी रहती हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं -
1. खोपड़ी (Skull) - मनुष्य की खोपड़ी में कुल 22 अस्थियाँ पाई जाती हैं। खोपड़ी हमारी गर्दन के ऊपरी भाग पर टिकी रहती है। गर्दन के सहारे खोपड़ी को विभिन्न दिशाओं में घुमाया जा सकता है। मानव कपाल या खोपड़ी को हम निम्न भागों में बाँट सकते हैं -
(i) मस्तिष्क कोष (Cranium) - यह एक डिब्बे के समान है, जिसके अन्दर मस्तिष्क सुरक्षित रहता है। इसका निर्माण 8 अस्थियों से होता है।
(ii) चेहरा (Face ) - इसका निर्माण 14 अस्थियों से होता है।
(iii) कर्ण अस्थियाँ (Ear ossicles) - 6 कर्ण अस्थियाँ।
(iv) हाइओइड (Hyoid ) - 1 अस्थि
2. कशेरुक दण्ड (Vertebral Calumn) - इसका निर्माण 26 कशेरुकाओं से होता है। विभिन्न प्रदेशों में कशेरुकाओं की संख्या निम्नवत् होती है -
ग्रीवा प्रदेश | 7 ग्रीवा कशेरुकाएँ |
वक्ष प्रदेश | 12 वक्ष कशेरुकाएँ |
कटि प्रदेश | 5 कटि कशेरुकाएँ |
त्रिक प्रदेश | 1 त्रिकास्थिq |
अनुत्रिक प्रदेश | 1 अनुत्रिकास्थि |
3. वक्ष भाग (Thorax )
स्टर्नम (Sternum) | 1 |
पसलियाँ (Ribs) | 24 |
4. उच्च अग्रांग (Upper Extremity)
अंस मेखलाएँ (Pectoral Girdle) | 2+2 = 4 |
बाहु (Upper arm) | 1+1=2 |
प्रबाहु (Lower arm) | 2+2=4 |
कलाई (Wrists) | 8 +8 = 16 |
हथेली (Palms) | 5+5=10 |
अंगुलियाँ (Fingers) | 14 + 14 = 28 |
5. निम्न अग्रांग (Lower Extremity)
श्रोणि मेखला (Pelvic Girdle) | 1 + 1 = 2 |
जंघा (Thigh) | 1 + 1 = 2 |
घुटना (Patella) | 1 + 1 = 2 |
पिण्डली (Shank) | 2+2=4 |
गुल्फ (Tarsus ) | 7 + 7 = 14 |
तलुवे (Sole) | 5+5=10 |
अंगुलियाँ (Fingers) | 14+ 14 28 |
इस तरह मानव शरीर में कुल 206 अस्थियाँ होती हैं।
अस्थियों का निर्माण एवं विकास (Formation and Development of Bones)
यदि हम शिशु का गर्भावस्था का विकास देखें तो गर्भ के 5वें सप्ताह में शिशु की अस्थियाँ बननी प्रारम्भ होती हैं। प्रारम्भ में चपटी अस्थियाँ एक पतली झिल्ली के रूप में तथा लम्बी अस्थियाँ उपास्थि के टुकड़ों तथा छड़ के रूप में होती हैं।
जब धीरे-धीरे इनमें कैल्शियम जमना प्रारम्भ होता है तब मजबूती और कड़ापन आने लगता है। धीरे-धीरे इनके भीतर अस्थि कोशाएँ प्रवेश करती हैं जिससे वे उपास्थियों का अवशोषण कर अस्थि का रूप दे देती हैं। प्रथम माह में भ्रूण की अस्थियाँ निम्न प्रकार होती हैं।
5वें सप्ताह में गर्दन के नीचे-ऊपर सहायक अंगों तथा नीचे के सहायक अंगों की अस्थियाँ बनती है।
6वें सप्ताह में प्रगंडिका, पसलियाँ, बाह्य प्रकोष्ठिका तथा अन्तःप्रकोष्ठिका का निर्माण होता है।
7वें सप्ताह में - अनुगंधिकास्थि, प्रजधिकास्थि, पश्च कपालास्थि का निर्माण होता है।
8वें सप्ताह में - पार्श्व अस्थियाँ तथा चेहरे की अस्थियाँ बनती हैं।
9-12वें सप्ताह में - हाथ-पैर की अंगुलियों तथा हाथ-पैर की अस्थियाँ तथा अश्रु अस्थियाँ बनती हैं।
16-20वें सप्ताह में - कान की, उरोचि, बहुछिद्रास्थि बनती है।
29-32वें सप्ताह में गले की अस्थियाँ बनती हैं।
32-36वें सप्ताह में - मणिबन्ध या कलाई की अस्थियाँ बनती हैं।
चूँकि गर्भ के समय से ही अस्थि निर्माण प्रारम्भ हो जाता है अत' माँ के भोजन में कैल्शियम की अतिरिक्त मात्रा होनी चाहिए जो शिशु की अस्थियों को मजबूती प्रदान करे।
अस्थियों का संघटन (Composition of Bones in Hindi)
अस्थियाँ संयोजी ऊतकों से बनती हैं। ये संयोजी ऊतक दृढ़ तथा मजबूत ऊतक होते हैं। इन ऊतकों में 50% जल तथा शेष 50% ठोस पदार्थ होता है।
50% ठोस पदार्थों का 2/3 भाग कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा मैग्नीशियम होता है। ये खनिज लवण अस्थियों को दृढ़ बनाते हैं। 1/2 भाग प्राणीय पदार्थ का होता है जो अस्थियों को मजबूत तथा लचीला बनाता है। बच्चों की अस्थियों में प्राणीय पदार्थ अधिक होने के कारण उनकी अस्थियाँ लचीली होती हैं। जल्दी नहीं टूटती और वे उन्हें सरलता से मोड़ लेते हैं।
प्रत्येक अस्थि एक पतली झिल्ली से ढकी रहती है जो इसे सुरक्षा प्रदान करती है। अस्थि का निर्माण करने वाली अस्थि कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं -
1. अस्थिस्प्रू (Osteoblast) - यह अस्थि निर्माण का कार्य करती है। यह अघुलनशील कैल्शियम फॉस्फेट को घुलनशील अवस्था में बदल देती है जो रक्त में घुलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है।
2. अस्थि भंजक (Osteoclast) - यह अस्थियों को शोषित करती है। अस्थि निर्माण प्रक्रिया में अस्थिस्तथा अस्थिभजक साथ-साथ क्रियाशील रहते हैं। अस्थिस्तू निर्माण कार्य करती है और अस्थि भंजक उसे हटाती है ताकि अस्थियों को सही आकार मिल सके।
अस्थियों के बीच खोखले भाग में अस्थि मज्जा होती है। अस्थि मज्जा दो प्रकार की होती है -
1. लाल अस्थिमज्जा (Red Bone Marrow) - इस अस्थिमज्जा में लाल रक्त कणों का निर्माण होता है इसलिए इनका रंग लाल होता है।
2. पीत अस्थिमज्जा (Yellow Bone Marrow) - इसमें वसा, रक्तवाहिकाओं के साथ-साथ जलीय ऊतक अधिक मात्रा में होते हैं। इसलिए इनका रंग पीला होता है।
अस्थियों/कंकाल तंत्र की उपयोगिता (Importance of Skeletal System / Bones)
कंकाल तंत्र अर्थात् अस्थियाँ शरीर के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती हैं। इनके निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य होते हैं:
1. शरीर को आकृति प्रदान करना कंकाल तंत्र शरीर को आकार प्रदान करता है। इसकी अस्थियाँ बाहर से त्वचा द्वारा ढकी रहती हैं। त्वचा तथा अस्थियों के मध्य मांसपेशियाँ होती हैं। यदि शरीर में अस्थियाँ न होतीं तो शरीर मांस का एक बड़ा-सा लोथड़ा होता तथा उसका सधा रह पाना सम्भव न होता।
2. शरीर को गति प्रदान करना शरीर में अस्थि संस्थान का एक अति महत्वपूर्ण कार्य शरीर को गति प्रदान करना भी है। शरीर के विभिन्न अंगों की गति अस्थियों तथा मांसपेशियों के सहयोग से ही सम्भव हो पाती है।
3. शरीर को दृढ़ता प्रदान करना - अस्थियों की उपस्थिति के कारण शरीर में दृढ़ता आती है। अस्थियों की सहायता से ही हम भारी से भारी बोझ उठा सकते हैं।
4. पेशियों को जुड़ने का स्थान देना - विभिन्न मांसपेशियाँ अस्थियों के साथ जुड़ी रहती हैं। इसी से अनेक प्रकार की गतियाँ होती हैं तथा शरीर चलने-फिरने एवं अन्य कार्य करने का आधार प्राप्त करता है।
5. बाहरी कंकाल के रूप में उपयोगिता बाल तथा नाखून भी कंकाल तंत्र के ही रूप हैं। कंकाल तंत्र का यह बाहरी भाग भी हमारे लिए विशेष उपयोगी है। बाल तथा नाखून शरीर को अनेक प्रकार से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
6. रुधिर कणिकाओं का निर्माण कंकाल की लम्बी अस्थियों की मज्जा में लाल रुधिर कणिकाओं का निर्माण होता है। अस्थियों द्वारा लगातार रुधिर कणिकाओं के निर्माण को ध्यान में रखते हुए ही अस्थियों को लाल रुधिर कणिकाओं के निर्माण की फैक्ट्रियाँ भी कहते हैं।
7. कैल्शियम को संचित करना शरीर के लिए कैल्शियम की अधिकांश मात्रा अस्थियों में ही संचित रहती है।
8. श्रवण तथा श्वसन में सहायता प्रदान करना - हमारे कंकाल में उपस्थित विभिन्न उपास्थियाँ श्रवण तथा श्वसन में सहायक होती हैं। कान के अन्दर के भाग, वायु नलिकाओं के छल्ले तथा पसलियों का कुछ भाग उपास्थि से निर्मित होता है। ये उपास्थियाँ श्रवण तथा श्वसन क्रियाओं में सहायक होती हैं।
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