शारीरिक व्यायाम का शरीर के परिसंचरण तंत्र पर प्रभाव (Effects of Exercise on Circulatory System) व्यायाम परिसंचरण में मदद करता है क्योंकि यह रक्त प्रवा
शारीरिक व्यायाम का शरीर के परिसंचरण तंत्र पर प्रभाव (Effects of Exercise on Circulatory System)
रक्त संचार प्रणाली पर शारीरिक व्यायाम का प्रभाव: व्यायाम परिसंचरण में मदद करता है क्योंकि यह रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, आपके हृदय को आपके शरीर के चारों ओर तेजी से रक्त पंप करने में मदद करता है और आपकी धमनियों के माध्यम से रक्त को प्रवाहित करने में मदद करता है। शारीरिक व्यायाम के कारण रक्त संचार प्रणाली के परिमापों पर होने वाले परिवर्तन निम्नवत् हैं -
1. हृदय का आकार ( Size of Heart) समस्त व्यक्तियों के लिए हृदय का आकार बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हृदय द्वारा ही हमारे सम्पूर्ण शरीर में रक्त प्रवाह का कार्य होता है। सहनशक्ति वृद्धि के प्रशिक्षणों (व्यायाम) के परिणामस्वरूप हृदय का आकार बदल जाता है। बारह सप्ताहों की सहनशक्ति वृद्धि के प्रशिक्षण से हृदय के भार एवं आयतन में वृद्धि हो जाती है। इसके पश्चात् हृदय की संकुचन योग्यता बढ़ जाती है। अधिकतर यह हृदय के वेंट्रिकल भाग में रक्त अधिक मात्रा में भरने का कार्य करता है। इससे बायें वेंट्रिकल का आकार बढ़ जाता है।
2. हृदय के धड़कने की दर (Rate of Heart Beat) - प्रति मिनट हृदय की धड़कन की संख्या को हृदय की धड़कन दर कहते हैं। अध्ययनों के द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि व्यायाम तथा विश्राम दोनों अवस्थाओं में हृदय के धड़कने की दर के आधार पर उसकी कार्य क्षमता को जांचा जा सकता है। शारीरिक व्यायाम / प्रशिक्षण मुख्य रूप से सहनशक्ति वृद्धि प्रशिक्षण से हृदय के धड़कने की दर को सामान्य से 80 से 70 धड़कन प्रति मिनट तक नीचे लाया जा सकता है। यदि आप नियमित तथा व्यवस्थित ढंग से एरोबिक व्यायाम अथवा प्रशिक्षण करते हैं तो आपके हृदय की धड़कनों की दर घट जायेगी। हृदय की धड़कन में गिरावट या झुकाव आपके हृदय रक्त संचार दक्षता मे सुधार को दर्शाता है। उच्च अनुकूलित सहनशक्ति धारक खिलाड़ी में आम तौर पर हृदय की धड़कन 40 धड़कन प्रति मिनट से कम हो जाती है और कुछ खिलाड़ियों में 30 तक कम हो जाती है। व्यायाम के दौरान हमारी सक्रिय पेशियों की आवश्यकता के अनुसार हृदय के धड़कने व्यायाम के पश्चात् सामान्यतः हृदय की धड़कन तत्काल नीचे नहीं आती बल्कि उसे विश्राम अवस्था में आने के लिए कुछ समय लगता है। परन्तु ऐरोबिक शारीरिक व्यायाम कार्यक्रम के द्वारा भरपाई प्रक्रिया तेज होने लगती है। हृदय की धड़कन की भरपाई का काल वह समय है जिसमें हम अपने हृदय की धड़कन को सामान्य स्तर पर वापस लाते हैं। सामान्यतः दक्ष व्यक्ति अपनी दक्षता के पश्चात् भरपाई उस व्यक्ति की अपेक्षा तेजी से करता है जो व्यक्ति दक्ष नही होता है।
3. धड़कनों का आयतन (Stroke Volume) - प्रति धड़कन हृदय के बायें अथवा दाहिने पैंट्रिकल द्वारा पम्प किये गये रक्त की मात्रा को धड़कन का आयतन कहते हैं। शारीरिक व्यायामों या प्रशिक्षण विशेषकर सहन क्षमता बढ़ाने वाले प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप धड़कन आयतन में वृद्धि हो जाती है। अप्रशिक्षित व्यक्ति में यह दर लगभग 55-75 मिलीलीटर होती है जबकि प्रशिक्षित खिलाड़ी में धड़कन का आयतन 80 से 90 मिलिलीटर और उच्चकोटि के प्रशिक्षित खिलाड़ी में यह विश्राम की अवस्था में लगभग 100 से 120 मिलिलीटर तक होती है। अप्रशिक्षित खिलाड़ी के हृदय की तुलना में प्रशिक्षित खिलाड़ी के हृदय के बायें वैंट्रिकल में विश्राम अवस्था में अधिक रक्त धारण करने की क्षमता होती है। इसका अर्थ यह है कि वैंट्रिकल में प्रवेश के लिए अधिक रक्त उपलब्ध रहता है जोकि तत्काल धड़कन के आयतन को बढ़ा देता है। प्रशिक्षित व्यक्ति में रक्त की मात्रा अधिक हो जाती है जबकि अप्रशिक्षित व्यक्ति में तुलनात्मक रूप से यह मात्रा कम होती है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रशिक्षित व्यक्ति में हृदय के धड़कने की दर घट जाती है।
4. हृदय की निकास क्षमता (Cardiac Output) - हृदय के दाहिने व बायें में से किसी एक वैंट्रिकल द्वारा एक मिनट में पम्प किये गये रक्त की मात्रा को हृदय की निकास क्षमता कहते हैं अथवा हृदय की निकास क्षमता = धड़कने का आयतन x हृदय के धड़कनों की दर।
विश्राम अवस्था में हृदय निकास क्षमता में कम परिवर्तन होता है लेकिन व्यायाम के उच्चतम स्तर में इसमें उल्लेखनीय वृद्धि होती है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप मुख्यतः धड़कने के आयतन में अधिकतम वृद्धि होती है। हृदय निकास की क्षमता अप्रशिक्षित व्यक्ति में 14 से 20 लीटर प्रति मिनट होती है जबकि प्रशिक्षित व्यक्ति में 25 से 30 लीटर / मिनट तथा अत्यधिक सहन क्षमता प्रशिक्षण प्राप्त खिलाड़ी में यह 40 लीटर प्रति मिनट तक होती है।
5. रक्त आयतन (Blood Volume) - शारीरिक व्यायाम तथा मुख्य रूप से सहन क्षमता वाले व्यायामों के परिणामस्वरूप रक्त आयतन में वृद्धि हो जाती है जोकि मुख्यतः प्लाज्मा ( रक्त का द्रवभाग) के आयतन में वृद्धि होने के कारण होती है। रक्त की लाल कोशाएँ (रक्त की वह कोशाएँ जिनमें हीमोग्लोबिन होता है) जो ऑक्सीजन को ग्रहण करती है कि संख्या में वृद्धि हो जाती है। रक्त प्लाज्मा आयतन के बढ़ने से रक्त का गाढ़ापन कम हो जाता है जो रक्त संचार को बढ़ा सकता है तथा ऑक्सीजन की उपलब्धता को भी बढ़ा देता है। बहुत उच्चस्तरीय प्रशिक्षित खिलाड़ी का कुल रक्त आयतन 7 लीटर से भी अधिक हो सकता है जबकि अप्रशिक्षित व्यक्ति में तुलनात्मक रूप से यह कुल रक्त आयतन का 5.6 लीटर से कम हो सकता है।
6. रक्त प्रवाह (Blood Flow) - शरीरिक व्यायाम से हृदय के आकार तथा उसके कार्य में परिवर्तन आ जाता है। यह सर्वविदित सत्य है कि सक्रिय पेशियों को अत्यधिक ऑक्सीजन तथा पोषण की आवश्यकता होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यायामों के दौरान पेशियों को अधिक मात्रा में रक्त प्रदायता की आवश्यकता होती है। जैसी ही पेशियाँ अच्छी तरह से प्रशिक्षित हो जाती हैं इनमें रक्त प्रवाह की मात्रा बढ़ जाती है।
पेशियों में रक्त प्रदायता में वृद्धि निम्नलिखित कारणों अथवा कारकों के कारण होती है
- बढ़े हुए रक्त आयतन के कारण।
- प्रशिक्षित पेशियों की सूक्ष्म नलिकाओं में वृद्धि |
- प्रशिक्षित पेशियों की सूक्ष्म नलिकाओं की आधी मात्रा में उपस्थिति।
- रक्त का अच्छा तथा अधि प्रभावी पुनः वितरण। सहनीय क्षमता प्रशिक्षण अथवा विशेष तौर पर शारीरिक व्यायाम से पेशियों में रक्त प्रवाह में तेजी आ जाती है।
7. रक्त चाप (Blood Pressure) - रक्त के द्वारा रक्त वाहिनियों की दीवार पर लगाया जाने वाला दाब रक्तचाप कहलाता है। रक्त चाप हृदय की धड़कने की शक्ति, धमनियों की दीवार की प्रत्यास्थता, रक्त की श्यानता एवं आयतन की दशा पर निर्भर करता है। सरल शब्दों में, रक्त संचार प्रणाली द्वारा रक्त को प्रवाहित करने वाले बल को रक्त चाप कहते हैं। सिस्टोलिक दबाव (उच्चतम दबाव ) तब पहुँचता है जब रक्त धमनियों में जाता है जबकि डायस्टोलिक दबाव (निचला दबाव ) रक्त के धमनियों से बह जाने पर पड़ता है। शारीरिक व्यायामों / प्रशिक्षण मुख्य रूप से सहनीय क्षमता एरोबिक प्रशिक्षण के कारण होने वाले धमनीयां रक्त चाप में अधिकतम निकास के दौरान परिवर्तन बहुत कम होता है लेकिन जिन व्यक्यिों में उच्च रक्तचाप होता है, उनमें स्थिर रक्त चाप घटा हुआ होता है। यह कमी दोनों सिस्टोलिक (उच्चतम) तथा डायस्टोलिक (नीचे का रक्त चाप) में होती है।
8. रक्त संचार प्रणाली पर शारीरिक व्यायामों के प्रभाव का सारांश
शारीरिक व्यायामों खास तौर से सहनीय क्षमता अथवा एरोबिक व्यायामों के कारण रक्त संचार प्रणाली के परिमापों में निम्नलिखित बदलाव आता है -
- बायें पैंट्रिकल का भीतरी आकार बढ़ जाता हैं।
- हृदय की शक्ति अथवा संकुचन योग्यता बढ़ जाती है।
- हृदय की धड़कन की ठहराव की स्थिति उल्लेखनीय रूप से घट जाती है।
- दिल के धड़कने की अधिकतम दर यो तो अपरिवर्तनीय होती है अथवा धीरे-धीरे घट जाती है।
- हृदय की धड़कन के भरपाई होंने के समय में कमी हो जाती हैं।
- दिल की विश्राम अवस्था के दौरान धड़कने का आयतन अत्यधिक अथवा कम व्यायाम के दौरान कम हो जाता है।
- विश्राम अवस्था में हृदय के रक्त निकास में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं।
- उच्च स्तर के व्यायाम करने पर हृदय के निकास में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी होती है।
- लाल रक्त कणिकाओं की संख्या तथा प्लाज्मा आयतन बढ़ने के परिणामस्वरुप रक्त आयतन बढ़ जाता है।
- रक्त के गाढ़ेपन में कमी होने के फलस्वरूप रक्त संचार अच्छा हो जाता है।
- अधिक रक्त आयतन होने से पेशियों में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है तथा सूक्ष्म नलिकाओं में वृद्धि हो जाती है और रक्त का पुनः वितरण प्रभावी रूप से होने लगता है।
- स्थिर रक्त चाप की दोनों अवस्थाओं सिस्टोलिक तथा डायस्टोलिक में कमी आ जाती है।
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