भारत में लैंगिक असमानता (विषमता) की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट कीजिए। आधुनिक भारत के पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों के विचारों को गम्भीरता से कभी नहीं
भारत में लैंगिक असमानता (विषमता) की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट कीजिए ।
भारत में लैंगिक असमानता की वर्तमान स्थिति
आधुनिक भारत के पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों के विचारों को गम्भीरता से कभी नहीं लिया जाता है। उन्हें आज भी पुरुषों से निम्न समझा जाता है। आज विभिन्न स्थानों पर अधिकारियों द्वारा अपने अधीनस्थ महिला कर्मचारियों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण भी किया जाता है। प्रायः यह भी देखा गया है कि पुरुष वर्ग सार्वजनिक स्थानों; जैसे विभिन्न कार्यालयों, विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों आदि में महिला कर्मचारियों का विभिन्न तरीकों से शोषण करते हैं।
आधुनिक भारत में स्त्री-पुरुषों के सम्बन्धों का ज्ञान प्राप्त करने पर यह भी निष्कर्ष निकलता है कि इनमें प्राय: वही पक्ष प्रभावशाली माना जाता है जिसका व्यक्तित्व सबल होता है। वास्तविकता यह है कि आधुनिक युग में भी स्त्रियों पर पुरुष अपना प्रभुत्व जमाना चाहते हैं, लेकिन कुछ मामलों में आज स्त्रियाँ भी पुरुषों को नियन्त्रित करने में सक्षम होती जा रही हैं।
भारतीय संस्कृति के प्रारम्भिक युग में पुरुषों ने महिलाओं पर सामूहिक नियन्त्रण स्थापित किया था और उन्हें अपने से निम्न स्तर प्रदान किया था लेकिन जैसे-जैसे आधुनिक भारत में सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ वैसे-वैसे स्त्री की स्थिति भी व्यापक रूप से प्रभावित हुई। यही कारण है कि पिछले दशकों में भारतीय स्त्रियों के आन्दोलनों को सामाजिक एवं राजनैतिक समानता की प्रतिबद्धता द्वारा व्यापक रूप से प्रभावित किया गया है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि चाहे कोई सा भी काल रहा हो, सदैव स्त्री के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार का प्रमुख आधार उनकी लैंगिक विषमता ही रही है। इस सम्बन्ध में एक ज्वलन्त उदाहरण दिया जा सकता है कि आज भारतीय स्त्रियाँ संसद में 33% आरक्षण की माँग कर रही हैं, किन्तु फिर भी इसी विषमता के कारण ही संसद में "महिला आरक्षण बिल" पारित नहीं हो सका है और उनको आज का विकसित पुरुष प्रधान समाज सदैव गिराता रहा हैं। आधुनिक पुरुष प्रधान समाज की स्त्रियों के प्रति यह विषमता की भावना, उनको अपने से कम समझने की भावना, उन पर नियन्त्रण बनाये रखने की भावना आदि सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में विद्यमान नारी के निम्न स्तर के लिए उत्तरदायी हैं । अतः स्पष्ट है कि भारत के पुरुष प्रधान समाज में भारतीय नारी की सामाजिक स्थिति सदैव विभिन्न युगों में समय की गति एवं तत्कालीन राजनैतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के कारण व्यापक रूप से प्रभावित हुई है।
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