ठेस' कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र चित्रण कीजिए

ठेस' कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र चित्रण कीजिए: ठेस कहानी के लेखर फणीश्वरनाथ 'रेणु' हैं। इस कहानी का मुख्य पात्र सिरचन है जिसमें अनेक गुण हैं। सि

ठेस' कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र चित्रण कीजिए

सिरचन का चरित्र चित्रण: ठेस कहानी के लेखर फणीश्वरनाथ 'रेणु' हैं। इस कहानी का मुख्य पात्र सिरचन है जिसमें अनेक गुण हैं। सिरचन एक बहुत कुशल कारीगर है। वह चिक बनाने का काम करता है, लोग उसी से चिक बनवाना पसंद करते हैं इस प्रकार ठेस कहानी चिक और शीतलपाटी बनाने वाले कारीगर के आत्मसम्मान को विषय बनाया गया है। आइए, ठेस नायक सिरचन के चरित्र की विशेषताओं को समझने का प्रयास करते हैं।

कुशल कारीगर: सिरचन कुशल कारीगर है। कारीगरी में ही उसका मन अधिक रमता है इसलिए कारीगरी के काम से अलग खेतों में श्रम करने के लिए जब कोई उसे बुलाता है तो सिरचन लापरवाही दिखाता है और काम पर देर से पहुँचता है। इसलिए लोग सिरचन को खेत पर मज़दूरी के लिए नहीं बुलाते हैं। और लोग उसे कामचोर, मुफ्तखोर और चटोर समझते हैं। आज सिरचन को कोई जो चाहे कह ले, लेकिन एक समय था जब सिरचन इलाके का सबसे कुशल कारीगर था । उसके हाथों में कारीगरी का ऐसा गुण था कि बड़े - बड़े बाबू लोगों की सवारियाँ उसके मड़ैया के पास बँधी रहती थी। लोग उसकी खुशामद करते थे। शहर में रहनेवाले लोग भी उसके हाथ की बनी चीजें पाने के लिए चिट्ठियाँ लिखते थे- “ सिरचन से एक जोड़ा चिक बनवा कर भेज दो। "

खाने-पीने का शौकीन: सिरचन को स्वादिष्ट चीजें खाने-पीने में रुचि थी। कथावाचक को भी जब सिरचन को बुलाना होता तो पहले ही माँ से पूछ लेता कि भोग क्या- क्या लगेगा? लोग इसी कारण सिरचन को चटोर समझते थे। सिरचन के बारे में लोगों की यह धारणा थी कि " बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाईवाला दूध, इन सबका प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ, वह दुम हिलाता हुआ हाज़िर हो जाएगा। खाने-पीने में चिकनाई की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई खत्म। "

खाने-पीने में कमी होने पर सिरचन नाराज हो जाता था और शिकायत भी करता था। एक बार खाने में सब्जी बहुत कम देने और इमली के रसवाली कढ़ी परोसने पर, ब्राह्मण टोली के पंचानन चौधरी के लड़के को सिरचन ने बेइज़्ज़त कर दिया था। इसी तरह एक बार खेसारी का सत्तू खिलाकर काम कराने पर सिरचन ने महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी से भी हँसते-हँसते उसके माँ की शिकायत की थी।

कथावाचक की माँ सिरचन की इस कमज़ोरी को जानती थी। इसीलिए सिरचन को देखकर वह कहती है, “आओ सिरचन, आज नेनु मथ रही थी तो तुम्हारी याद आई। घी की डाड़ी के साथ चूड़ा तुमको बहुत पसंद है न!" और तब सिरचन अपनी पनियायी जीभ को संभाल कर कहता – ‘“घी की सोंधी सुगंध सूँघकर ही आ रहा हूँ काकी। "

काम के प्रति ईमानदार: सिरचन काम के प्रति बहुत ईमानदार था। वह अपना काम बहुत मेहनत और ईमानदारी से करता था। मोथी और पटेर को हाथ में लेकर वह बड़े जतन से उसकी कूची बनाता। फिर कूचियों को रंगने से लेकर सुतली सजाने तक की पूरी प्रक्रिया में वह पूरे मन से लगा रहता। सिरचन अपना मन काम में ऐसे लगाता कि उसमें जरा-सी भी बाधा आने पर गुस्से से तमतमा जाता। वह कहता था कि 'सिरचन मुँहजोर कामचोर नहीं। '

स्वाभिमानी: सिरचन में स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा था। किसी की कठोर बातें उसे बिल्कुल सहन नहीं होती थीं। उसे आत्मसम्मान से अधिक मूल्यवान कुछ भी नहीं लगता था। इसीलिए लेखक का कथन है- “दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किंतु बात में जरा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता। "

कहानी के अंतिम हिस्से में सिरचन को कई बार कठोर बातें सुनने को मिलती हैं और उसका आत्मसम्मान आहत होता है। सिरचन के स्वाभिमान को पहली बार ठेस तब लगती है जब मँझली बहू मुट्ठी भर बुनिया सूप में फेंककर चली जाती है। दूसरी बार ठेस तब लगती है जब कथावाचक की माँ गुस्से में सिरचन से कहती है, “अपना काम करो, बहुओं से बत-कुट्टी करने की क्या जरूरत?" यह सुनकर सिरचन का मुँह लाल हो जाता है। लेकिन सिरचन के आत्मसम्मान को सबसे बड़ा धक्का तब लगता है जब वह चाची से अपनी डिबिया का गमकौआ जर्दा खिलाने के लिए कहता है और जवाब में चाची यह कहती है कि, " तुम्हारी बढ़ी हुई जीभ में आग लगे, घर में भी पान और गमकौआ जर्दा खाते हो ? चटोर कहीं के। " सिरचन दिल पर लगी इस ठेस को नहीं सह पाता है और अपने सामान को समेटकर काम छोड़कर उठ जाता है।

संवेदनशील: सिरचन में संवेदनशीलता का स्तर बहुत ऊँचा है। वह जानता है कि कब बोलना चाहिए और कब चुप रह जाना चाहिए। चाची की चुभने वाली तीखी बातों को सुनकर उसे गहरी ठेस तो पहुँचती है लेकिन वह अपमान का घूँट पीकर चुप रह जाता है। वह अपनी जुबान नहीं खोलता। वह अच्छी तरह जानता है कि जिस विषम सामाजिक और आर्थिक स्थिति में है, उसमें चुप रहने में ही भलाई है। भरपेट खाने पर काम करने वाला सिरचन जानता था कि वह किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इसलिए वह चुपचाप काम छोड़कर चला जाता है और यही उसका प्रतिरोध था।

मानू के परिवार से गहरी ठेस लगने के बावजूद सिरचन के मन में मानू के प्रति मार्मिक संवेदना और प्रेम है। इसीलिए अंत में बिना किसी को खबर किए सिरचन ससुराल जाती मानू के लिए उसकी पसंद की चीज़ें बनाकर उसे देने स्टेशन पर जाता है। मानू सिरचन की लाई चीज़ों और सिरचन को देख फूट-फूटकर रोने लगती है। यही नहीं मानू जब सिरचन को इन चीज़ों के बदले मोहर छाप धोती की कीमत देने लगती है तो सिरचन दाँत से जीभ काट हाथ जोड़ लेता है। दरअसल संकेत से वह कहना चाहता है कि ये चीजें मेरी तरफ से तुम्हारे लिए भेंट हैं, इन्हें मैंने तुम्हारे प्रति स्नेह से बनाया है। इसकी कीमत लेकर मैं अपने स्नेह को कम नहीं कर सकता। यहाँ हम सिरचन की संवेदनशीलता, आत्मीयता, स्नेह और स्वाभिमान का उदत्त रूप देखते हैं।

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