श्रवण कुमार खंडकाव्य की विशेषताएं- प्रस्तुत खण्डकाव्य श्रवण कुमार मूलतः भाव- प्रधान खण्डकाव्य है।भावात्मक सौन्दर्य (विशेषताएं) ही इसका गुण है। अयोध्या
श्रवण कुमार खंडकाव्य की विशेषताएं बताइए
श्रवण कुमार खंडकाव्य की विशेषताएं- प्रस्तुत खण्डकाव्य श्रवण कुमार मूलतः भाव- प्रधान खण्डकाव्य है।भावात्मक सौन्दर्य (विशेषताएं) ही इसका गुण है। अयोध्या का राज्य-वैभव, वर्षा, सन्ध्या, आश्रम आदि की काव्यात्मक अभिव्यक्ति में चित्रमयता सजीव हो उठी है, जिसके माध्यम से कवि अपने निम्नलिखित उद्देश्यों को परिलक्षित करने में पूर्ण सफल होता है-
अयोध्या-वन में प्राचीन सांस्कृतिक झलक – अयोध्या के राजवंश की महिमा का चित्रण करते समय कवि प्राचीन भारतीय संस्कृति और कला की एक झाँकी प्रस्तुत कर देना चाहता है-
भक्ति भावना संक्रामक थी, घर-घर उसका हुआ प्रसार ।
थे बिखेरते सुरभि अगरु घृत, चन्दन धूप और घन सार ।।
नभ चुम्बी प्रासाद गगन के तारों से भरते संलाप ।
फहर ध्वजाएँ पवन में, करती प्रेषित प्रबल ।।
नवीन युग-बोध की परिकल्पना – कवि प्रस्तुत खण्डकाव्य के प्राचीन कथानक में नवीन युग की परिकल्पना करके एक नयी चेतना मुखर कर रहा है। उपभोग की वस्तुओं का बाजार में अभाव, योग्यता की उपेक्षा, वर्ग-वैषम्य, चोरी, डकैती, अनुशासनहीनता, जातीय संकीर्णता आदि राष्ट्र की ऐसी समस्याएँ हैं, जो उसे अधोगति की ओर ले जा रही हैं। कवि ने विभिन्न वातावरणों के चित्रण के माध्यम से राष्ट्र और शासन - व्यवस्था का एक आदर्श प्रस्तुत किया है।
त्याग, सेवा, क्षमा, उदारता, सहिष्णुता आदि उदात्त गुणों की उद्भावना — खण्डकाव्य के माध्यम से कवि पाठकों में त्याग, सेवा, क्षमा, उदारता, सहिष्णुता आदि मानवीय उदात्त गुणों का समावेश करने का बड़ा ही सुन्दर आयोजन करता है। दशरथ, श्रवण कुमार और ऋषि - दम्पति के चरित्र अलग- अलग इन मानवीय गुणों के प्रतीक बनकर सजीव हो उठते हैं।
भावात्मक एकता, सांस्कृतिक श्रेष्ठता, जातीय अभेदता, नैतिकता और आत्मालोचन – उक्त सभी इस काव्य में स्थान- स्थान पर मुखर होते हैं, जो भावी राष्ट्र-निर्माण के लिए अत्यन्त ही सहायक हैं।
प्रकृति चित्रण — प्रस्तुत खण्डकाव्य की सीमित परिधि में भी भावों की प्रधानता होने के कारण कवि को प्रकृति-चित्रण का बहुत ही सुन्दर अवसर मिलता है। अयोध्या नगर, सरयू- वन के आश्रम आदि के चित्रण में कवि की प्रकृति तन्मयता साकार हो उठी है।
वातावरण — काव्य में देश-काल और परिस्थितियों का स्थान-स्थान पर चित्रण करके पाठकों को काव्य की भावभूमि को स्पष्ट और बोधगम्य बनाने का प्रयास बड़ा ही सुन्दर है। किसी घटना को प्रारम्भ करने से पूर्व सर्ग के प्रारम्भ में ही वातावरण का चित्रण दे देता है। कथानक की सारी घटनाएँ अयोध्या और निकट के सरयू-वन में ही कुछ घण्टों के अन्तराल में घटित हुई हैं। अतः उपसंहार वाली घटना को निकालकर कथानक में संकलन त्रय कर पूरा-पूरा निर्वाह किया गया है।
रस-निरूपण — रस-निरूपण की दृष्टि से प्रस्तुत खण्डकाव्य में करुण रस की प्रधानता है, जिसका प्रभाव बड़ा ही स्थायी और मर्मस्पर्शी है। दशरथ के अन्तर्द्वन्द्वों, ऋषि - दम्पति के रुदन, क्रन्दन तथा श्रवण कुमार की व्यथा में करुण रस का बड़ा ही सुन्दर परिपाक हुआ है। करुण के साथ-साथ वात्सल्य रस का भी सुन्दर चित्रण हुआ है जब ऋषि - दम्पत्ति श्रवण कुमार की प्रतीक्षा में आकुल हैं। शाप देते समय भयानक रस का चित्रण हुआ है। काव्य में इन सभी रसों के होते हुए भी करुण रस की ही प्रधानता है।
श्रवण कुमार खंड काव्य की कलात्मक सौन्दर्य / विशेषताएँ
भाषा शैली — खण्डकाव्य की भाषा अवसर और पात्रों के अनुकूल अत्यन्त ही सरल, किन्तु संस्कृतनिष्ठ है। साथ-ही-साथ पारिभाषिक और सामयिक शब्दों का भी यथास्थान प्रयोग हुआ है। जैसे अतिरथी, जवनिका, शातघ्नी आदि। काव्य में लोकोक्तियों का भी प्रयोग हुआ है। भाषा ओज और प्रसाद गुणों से सम्पन्न है। भाषा में सरल और सुन्दर बिम्ब - योजनाओं के साथ अन्तर्भेदी भाव - प्रवणता भी विद्यमान है।
छन्द योजना — प्रस्तुत खण्डकाव्य में मुख्यतः वीर छन्द का प्रयोग हुआ है, जो 16, 15 मात्राओं की यति और अन्त में गुरु-लघु के योग से बनता है। कथा प्रवाह में कहीं 30 मात्रा वाले छन्द भी आ गये हैं, जो ताटंक, लावनी और कुंकुम छन्द की कोटि के हैं।
अलंकार — खण्डकाव्य में अलंकारों का बड़ा ही सुन्दर और स्वाभाविक चित्रण किया गया है। प्रयोगवादी शैली में नये रूपक और उपमानों के बड़े सुन्दर प्रयोग हुए हैं। काव्य में श्लेष, यमक, वक्रोति, वीप्सा, पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा, रूपक, प्रतीप, उत्प्रेक्षा, व्यतिरेक, अनुप्रास आदि अलंकारों के प्रयोग बहुतायत से हुए हैं। इसके साथ-साथ सन्देह, परिसंख्या, परिकरांकुर, दृष्टान्त आदि अलंकारों का भी प्रयोग बड़े ही स्वाभाविक ढंग से किया गया है।
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