शारीरिक शिक्षा कला है या विज्ञान? स्पष्ट कीजिए। शारीरिक शिक्षा कला है या विज्ञान इसका निर्धारण करने से पूर्व इसके उन सिद्धांतों का परीक्षण कर लेना आवश
शारीरिक शिक्षा कला है या विज्ञान? स्पष्ट कीजिए।
शारीरिक शिक्षा कला है या विज्ञान इसका निर्धारण करने से पूर्व इसके उन सिद्धांतों का परीक्षण कर लेना आवश्यक है जिस पर शारीरिक शिक्षा खड़ी है। यह भी जान लेना चाहिए कि क्या मूल अवधारणा या सिद्धांत चिंतनशील है जो इसे एक कला बना सके, या विश्लेषणात्मक, प्रयोगात्मक और सत्यापन है जो इसे एक विज्ञान साबित कर सके।
शारीरिक शिक्षा एक कला के रूप में
कुछ सुन्दर ढंग से किये जाने वाले काम को कला के रूप में वर्णित किया जाता है। जो लोग सुन्दर ढंग से काम करते हैं वो कलाकार कहलाते हैं। कला उन क्रियाओं पर लागू होती है जो रुचि और कल्पना के सिद्धांतों पर की जाती है और ऐसे सौंर्दयात्मक गुणों, जो सुन्दरता चासता और सन्तुलन को अभिव्यक्त करते हो। एक आदर्श गोताखोर (जल क्रीड़ाओं में), एक निपुण जिमनास्ट, एक सुन्दर पेंटिंग, एक सुरीला गीत हमारी भावनाओं को उद्दीप्त करता है। यह भावनाएं हम अपनी विभिन्न इन्द्रियों के माध्यम से ग्रहण करते हैं जैसे आंख, कान, नाक आदि। इस तरह की भावात्मक प्रतिक्रियाएं हमारे अन्दर मानवीय मूल्यों और वस्तु या अनुभव के सौन्दर्यात्मक गुणों के कारण खुशी व उत्तेजना का आह्वान करती है। संगीत में हमारी श्रवण सम्बन्धी अवधारणा, किसी कलाकृति को देखने में हमारी दृश्य, सूंघने में घ्राण और खेलों में हमारी सम सौन्दर्यात्मक अवधारण सम्मिलित रहती है। यह अवधारणा की ही गुणवत्ता है कि सौन्दर्यात्मक प्रतिक्रिया का आह्वान होता है और उसे कला का नाम दिया जाता है।
कला के दो मुख्य सिद्धांत है 'फार्म' और 'संगठन' और शारीरिक शिक्षा। इन दोनों सिद्धांतों को संतुष्ट करती है। शारीरिक शिक्षा में 'फार्म' अच्छे क्रियाकलाप का आवश्यक गुण है। अच्छे फार्म में होने पर शिक्षक भी उसे मजबूत, लचीला और क्रियाकलापों में चुस्त बनाने के बारे में उनका मूल्यांकन करने में सक्षम होगा शारीरिक शिक्षा दूसरे सिद्धांत 'संगठन' की भी तुष्ट करती है जो कल्पना और सृजनात्मकता का एक कार्य है। शारीरिक शिक्षा सृजनात्मकता में योगदान देती है और विभिन्न कार्य व्यापारों के माध्यम से अभिव्यक्ति विभिन्न तरीके भी उपलब्ध कराती है और प्रतिभागियों के बीच मनमुटाव को भी उसी समय व्यक्त करने का अवसर देती है। ये दोनों सिद्धांत ही सामान्यतः शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम को आंतरिक एवं बाह्य रूप से सुन्दर बनाने के लिए उत्तरदायी हैं इसलिए कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा एक कला है।
शारीरिक शिक्षा एक विज्ञान के रूप में
शारीरिक शिक्षा को एक विज्ञान कहा जा सकता है यदि इसे सिद्धांतों, नियमों, परिकल्पनाओं जिस पर इनका निर्माण हुआ है, का निर्धारण व प्रमाणीकरण हो जायें। जैसाकि हम जानते हैं मानव जीवन कई अलग अलग अनुशासनों के माध्यम से बिखरा पड़ा है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न स्रोतों से अपने सिद्धांतों की रचना करती है, जैसे एनाटॉमी फिजियोलॉजी, मानसिक स्वच्छता, मनोविज्ञान, नृशास्त्र विज्ञान, जैव रसायन शास्त्र, जैव भौतिक शास्त्र, जैव यांत्रिकी आदि को 'मानव' और उसके 'क्रियाकलापों' को समझने में काफी मदद देती है। इन विज्ञानों ने ही शारीरिक शिक्षा के लिए एक वैज्ञानिक आधार खड़ा किया है। शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत और परिकल्पनाएं भी इन विज्ञानों पर ही निर्भर करती है। विज्ञान की मूलभूत विशिष्टताएं वे हैं जो हमें ज्ञान, तथ्य, समस्याओं को हल करने के लिए बौद्धिक उपकरण, साधनों के निर्माण के लिए सक्षमता उपलब्ध कराती है और परिणाम एवं उपलब्धियों पर बल देती है क्योंकि विज्ञान की इन विशिष्टताओं पर शारीरिक शिक्षा पूरी तरह आश्रित है, इसीलिये यह कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा एक विज्ञान है।
शारीरिक शिक्षा एक कला एवं विज्ञान के रूप में: शारीरिक शिक्षा अपने सिद्धांत, कला और विज्ञान दोनों से ग्रहण करती है इसलिए यह ज्यादा उचित होगा कि इसे कला और विज्ञान दोनों के रूप में व्यवहृत किया जाये। यह एक कला है क्योंकि यह सौंदर्यात्मक, कल्पनात्मक एवं सृजनात्मक है। यह विज्ञान है क्योंकि यह व्यवस्थित एवं यथार्थ है। शारीरिक शिक्षा कला और विज्ञान का दुर्लभ संगम है इसलिए इसे 'कलात्मक विज्ञान' कहा जा सकता है।
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