'नन्हा संगीतकार' कहानी के शीर्षक को स्पष्ट कीजिए। प्रस्तुत कहानी 'नन्हा संगीतकार' चरित्र प्रधान है क्योंकि एक छोटे बालक की चारित्रिक विशेषताओं का वर्ण
'नन्हा संगीतकार' कहानी के शीर्षक को स्पष्ट कीजिए।
प्रस्तुत कहानी 'नन्हा संगीतकार' चरित्र प्रधान है क्योंकि एक छोटे बालक की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है। इसी को लक्ष्य करके कहानी का शीर्षक 'नन्हा संगीतकार' रखा गया है जिसमें संगीत के प्रति सहज लगाव है। पाठक को यह समझते देर नहीं लगता कि कहानी का कथ्य क्या है। इस आधार पर हम कह सकते है कि शीर्षक सुबोध और सरल है। इसी प्रकार शीर्षक की अन्य विशेषताएं भी प्रस्तुत रचना के शीर्षक में समाहित है। संक्षिप्तता कतूहल वर्धकता और स्पष्टता के साथ-साथ शीर्षक ही इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है। सम्पूर्ण कथा जेन के जीवन से ही सम्बन्धित है उसी के चारों ओर चक्कर लगती दिखाई पड़ती है। जेन कभी परिस्थितियों की संवेदना से छटपटाता तो कभी संगीतमय वातावरण मे एक अदभुत शुकून पाता दिखाई पड़ता है। कहानी दुखात्मक होते हुए भी प्रेरणादायक है। कहानीकार ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए तथा कथा को उतेजक और प्रभावशाली बनाने के लिए ही त्रासदी का सहारा लिया है जिससे शीर्षक को सार्थक बनाने मे उसे सहजता प्राप्त हुई है।
संगीतकार का जेन की अवस्था अभी आठ-दस वर्ष की ही है। वह प्रकृति के उपादानों में संगीत की स्वर लहरी का अनुभव करता है, जिस प्रकार एक संगीतकार इतना ही नहीं उसके लिए निर्जीव स्वप्न भी जागृत और कुछ बोलते दिखाई पड़ते हैं। सुखी घास की पत्तियों की सरसराहट में भी उसे संगीत सुनाई देता है। मेढ़क के टरनेि, कुक्कुट के चीत्कार करने में भी उसे अजीब स्वर लहरी का अनुभव होता है। जिसकी कल्पना से वह सो नहीं पाता है और रात भर जागकर काट देता है। शराब खाने की दीवार से सटकर, भीतर नाचने वालों के कदमों तथा वायलिन के मधुर स्वरों में वह ऐसा खो जाता है कि पहरा देने वाले चौकीदार को यह कहना पड़ता है कि "चलो अब जाओ, सोने का वक्त हो गया है।"
शीर्षक ऐसा होना चाहिए जिसमें सम्पूर्ण कथा प्रतिबिम्बित हो। प्रस्तुत कहानी में यह विशेषता आघन्त विद्यमान है। जेन की शारीरिक कमजोरी और अल्पायु, उसे नन्हा का विशेषण प्रदान करने में तो सफल है ही साथ ही उसकी संगीत प्रियता को देखते हुए “आखिरकार पड़ोसियों ने उसका नाम नाम ही रख दिया। संगीतकार जेन्को। जेन्को, जेन का ही प्यार से पुकारा जाने वाला संक्षिप्त रूप है। कहानीकार ने स्वयं ऐसे-ऐसे संकेत दिये हैं जिससे शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट हो जाती है।
तथा साथ ही साथ आलोचकों ने शीर्षक की सार्थकता के सन्दर्भ में जिन विशेषताओं का निर्धारण किया है उनके आधार पर भी जब हम इस कहानी की समीक्षा करते हैं तो यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक उचित सार्थक और समीचीन है, जो पाठक में एक अजीब सी कौतूहल पैदा करने में सफल है। शीर्षक पढने मात्र से ही पाठक पूरी कहानी पढने के लिए प्रेरित हो जाता है, और बिना पूरी कथा समाप्त किये चैन नहीं लेता।
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