सीखने की विधियों का वर्णन करें (Effective Methods of Learning in Hindi) सीखने की विधियाँ इस प्रकार हैं- (1) करके सीखना, (2) निरीक्षण करके सीखना, (3) प
सीखने की विधियों का वर्णन करें (Effective Methods of Learning in Hindi)
किसी नई क्रिया या नये पाठ को सीखने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। हम इनमें से केवल उन विधियों का वर्णन कर रहे हैं, जिनको मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर अधिक उपयोगी और प्रभावशाली पाया गया है। सीखने की विधियाँ इस प्रकार हैं- (1) करके सीखना, (2) निरीक्षण करके सीखना, (3) परीक्षण करके सीखना, (4) सामूहिक विधियों द्वारा सीखना, (5) मिश्रित विधि द्वारा सीखना
1. करके सीखना (learning by doing) - डॉ. मेस का कथन है- “स्मृति का स्थान मस्तिष्क में नहीं, वरन् शरीर के अवयवों में है। यही कारण है कि हम करके सीखते हैं"। बालक जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते हैं। कारण यह है कि उसे करने में उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते हैं और योजना को पूर्ण करते हैं। फिर वे यह देखते हैं कि उनके प्रयास सफल हुए हैं या नहीं। यदि नहीं, तो वे अपनी गलतियों को मालूम करके, उनमें सुधार करने का प्रयत्न करते हैं।
2. निरीक्षण करके सीखना (Learning by Observation) - योकम एवं सिम्पसन ने लिखा है- “निरीक्षण सूचना प्राप्त करने, आधार सामग्री (कंजं) एकत्र करने और वस्तुओं तथा घटनाओं के बारे में सही विचार प्राप्त करने का साधन है।" बालक जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीखते हैं। इसका कारण यह है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं या प्रयोग करते हैं या उसके बारे में बातचीत करते हैं। इस प्रकार वे अपनी एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं। फलस्वरूप, उनके स्मृति पटल पर उस वस्तु का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है।
3. परीक्षण करके सीखना (Learning by experiment) - नई बातों की खोज करना, एक प्रकार का सीखना है। बालक इस खोज को परीक्षण द्वारा कर सकता है। परीक्षण के बाद वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। इस प्रकार वह जिन बातों को सीखता है वे उसके ज्ञान का अभिन्न अंग हो जाती है, उदाहरणार्थ, वह इस बात का परीक्षण कर सकता है कि गर्मी का ठोस और तरल पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह इस बात को पुस्तक में पढ़कर भी सीख सकता है। पर यह सीखना उतना महत्त्वपूर्ण नहीं होता है, जितना कि स्वयं परीक्षण करके सीखना ।
4. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना (Learning by Group Methods) - सीखने का कार्य-व्यक्तिगत (प्दकपअपकनंस) और सामूहिक विधियों द्वारा होता है। इन दोनों में सामूहिक विधियों को अधिक उपयोगी और प्रभावशाली माना जाता है। इनके सम्बन्ध में में कोलसनिक की धारणा इस प्रकार है- “बालक को प्रेरणा प्रदान करने, उसे शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने, उसके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने, उसके सामाजिक समायोजन को अनुप्राणित करने, उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए व्यक्तिगत विधियों की तुलना में सामूहिक विधियाँ कहीं अधिक प्रभावशाली हैं।" 'मुख्य विधियाँ निम्नांकित हैं।
i. वाद-विवाद (Discussion Method) - इस विधि में प्रत्येक छात्र को अपने विचार व्यक्त करने और प्रश्न पूछने का अवसर दिया जाता है।
ii. वर्कशाप विधि (workshop method) - इस विधि में विभिन्न विषयों पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन विषयों के हर पहलू का छात्रों द्वारा अध्ययन किया जाता है।
iii. सम्मेलन व विचार गोष्ठी विधियाँ (Conference & Seminar Methods)) - इन विधियों में से किसी विशेष विषय पर छात्रों द्वारा विचार-विनिमय किया जाता है।
iv. प्रोजेक्ट, डाल्टन व बेसिक विधियाँ ( Project, Dalton & Basic Methods) - इन आधुनिक विधियों में व्यक्तिगत और सामूहिक- दोनों प्रकार के प्रेरकों का स्थान होता है। प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत रूचि, ज्ञान और क्षमता के अनुसार स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है, जिससे उसका सीखने का कार्य सरल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, सामूहिक रूप से कार्य करने के कारण उसमें स्पर्द्धा, सहयोग और सहानुभूति का विकास होता है।
5. मिश्रित विधि द्वारा सीखना (Learning by Mixed Method) सीखने की दो महत्वपूर्ण विधियाँ हैं- पूर्ण विधि (Whole Method) और आंशिक विधि (part Method)। पहली विधि में छात्रों को पहले पाठ्य विषय का पूर्ण ज्ञान दिया जाता है और फिर उसके विभिन्न अंगों में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। दूसरी विधि में पाठ्य-विषय को खण्डों में बाँट दिया जाता है। आधुनिक विचाराधारा के अनुसार इन दोनों विधियों को मिलाकर सीखने के लिए मिश्रित विधि का प्रयोग किया जाता है।
सीखने की स्थिति का संगठन (Organization of Learning Process) सीखने कार्य को सरल और सफल बनाने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है - सीखने की स्थिति का संगठन। यह तभी संभव हो सकता है जब विद्यालय का निर्माण इस प्रकार किया जाय कि उसमें सीखने की सभी क्रियायें उपलब्ध हों और सीखने की सभी विधियों का प्रयोग किय जाए।
सीखने की ये सभी विधियाँ व्यक्ति के मनोविज्ञान पर आधारित है। इन विधियों के प्रयोग से अधिगम तथा शिक्षण दोनों ही प्रभावशाली हो जाते हैं।
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