चप्पल' कहानी की तात्विक समीक्षा कीजिए। चप्पल कहानी के लेखक कावुटूरि वेंकट नारायण राव हैं। 'चप्पल' कहानी की समीक्षा इस प्रकार से की जा सकती है:- (1) कथ
चप्पल' कहानी की तात्विक समीक्षा कीजिए।
चप्पल कहानी के लेखक कावुटूरि वेंकट नारायण राव हैं। आलोचकों ने कहानी की कलात्मकता को विभिन्न विशेषताओं के आधार पर निर्धारित किया है, जिसके आधार पर 'चप्पल' कहानी की समीक्षा इस प्रकार से की जा सकती है:- (1) कथानक, (2) कथोपकथन, (3) पात्र और चरित्र चित्रण, (4) देशकाल और वातावरण, (5) शीर्षक, (6) उद्देश्य, (7) संदेश और (8) भाषा-शैली
(1) चप्पल' कहानी की कथावस्तु / कथानक: प्रस्तुत कहानी का कथानक चप्पल बनाने से संबंधित है, रंगय्या चप्पल बनाने का काम करता है, वह पाँच बेटों के मरने के बाद पैदा हुए छठवं बेटे को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहता है। उसमें गुरु और शिक्षा के प्रति अपरा श्रद्धा है। उसका बेटा गुरु जी की फटी-पुरानी चप्पल बनाने के लिए लाता है जो दादा परदादा के जमाने की लगती है जिसे वह गुरु का होने के कारण अपनी चमड़ी से भी ठीक करने की प्रतिज्ञा करता है और विद्यालय जाकर बच्चे की पढ़ाई देखता है तथा उसकी आगे की पढ़ाई के लिए गुरु के पास ही पैसा इकट्ठा करने के लिए देता है। गुरु की 'कृपा से उसका बेटा पढ़ने में होशियार और बड़ा आदमी बनने के योग्य मालूम पड़ता है। वह विद्यालय से अपनी झोपड़ी की तरफ चल देता है, थोड़ी देर आराम करने के बाद चप्पलों को बड़े इत्मीनान से चमका कर घर की अटारी में रख कर खाने चला जाता है। खाकर अभी थोड़ी देर के लिए पीपल के पेड़ के नीचे बैठा ही था कि उसे नींद आ गयी, उसी समय झोपड़ी के जलने की खबर से जागकर झोपड़ी के पास पहुँचकर जलता हुआ देखता है और बड़ी हैरानी के बाद स्वयं झोपड़ी में घुसता है, वह स्वयं जल जाता है किन्तु चप्पलो को बचाने में सफल हो जाता है।
(2) कथोपकथन: कहानी कथोपकथन प्रधान है जिसमें पात्रों के बीच की चर्चा ही कहानी का वर्ण्य विषय बन जाता है। इस विशेषता को कहानी के प्रारम्भ से अन्त तक देखा जा सकता है।
"क्यो रे रमण! ये चप्पल कहाँ से लाया ?" बच्चे की ओर घूरते हुए रंगय्या ने पूछा।
"हमारे मास्टर साब के हैं... मास्टर साब ने ठीक कराकर जल्दी लाने को कहा है।"
(3) पात्र और चरित्र चित्रण: प्रस्तुत कहानी में विषय के अनुकूल पात्रों का चयन बड़ा ही सार्थक और सटीक है। पात्रों की संख्या अधिक होने पर भी कथा में कोई अवरोध नहीं उत्पन्न होता है। मुख्य पात्र के रूप में रंगरया को चित्रित किया गया है और सहायक पात्र के रूप में मास्टर साहब को देखा जा सकता है। जो कथा को गति प्रदान करने में सहायक हैं। अन्य गौण पात्र भी हैं जो कथा में योजक का कार्य करते हैं।
(4) देशकाल और वातावरण: सामाजिक धरातल पर रचित प्रस्तुत कहानी वातावरण प्रधान है जिसमें समाज के दीन - हीन वर्ण, रंगरया जो चमड़े का काम करता है। परिस्थितियों के संघातों से जूझते हुए भी वह किसी प्रकार से अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए अपना सब कुछ स्वाहा कर देता है। जितना यह समाज के लिए प्रेरणादायक है उतना ही यथार्थ भी। वैसे कहानीकार ने प्रस्तुत कहानी के माध्यम से आदर्शवाद की माध्यम से आदर्शवाद की स्थापना की है।
(5) शीर्षक: प्रस्तुत कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, रोचक और कौतूहलवर्धक होते हुए भी सहज और सामान्य है। जिससे कथा के कथ्य को समझने में सरलता होती है। शीर्षक भावानुकूल होते हुए भी जन-साधारण के लिए बोधगम्य है। शीर्षक की सार्थकता इसी से स्पष्ट हो जाती है। सम्पूर्ण कथा का वही केंद्र बिंदु भी है।
(6) उद्देश्य: प्रस्तुत रचना उद्देश्य प्रधान है। चप्पल कहानी में कहानीकार का मूल उद्देश्य यह बताना है कि संसार के सभी सम्बन्धों में गुरु का स्थान सर्वोपरि है, जिसका निर्वाह प्राण देकर भी करना चाहिए। अर्थात् प्रमुख उद्देश्य इस बाजारवाद, भोगवाद और अति नग्न यथार्थवाद के युग में आदर्शवाद की स्थापना है। अर्थात् समाज में टूटते हुए रिश्तों को मजबूत बनाने के उद्देश्य से ही प्रस्तुत कहानी की रचना की गयी है।
(7) संदेश: प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लेखक ने हमें यही सन्देश देने का प्रयास किय कि "जहाँ चाह वहाँ राह "जीवन में संघर्षों से लड़कर ही आगे बढ़ा जा सकता है, यदि मन में अन्छे भाव होंगे तो निश्चित व्यक्ति सन्ना काम करते हुए बड़ा आदमी बन सकता है। जिस प्रकार से यह सही है कि कमल भी कीचड़ जैसे उपेक्षित स्थानों पर पैदा होता है किन्तु अपने रूप और गुण के कारण सबका मन मोह लेता है। उसी प्रकार कहानी का नायक रंगय्या जूते चप्पल बनाकर बदबूदार बस्ती में रहते हुए भी अपने कुल में अपना नाम उजागर करना चाहता है।
(8)चप्पल' कहानी की भाषा-शैली: अपनी रचना शैली की स्वाभिकता, प्रासंगिकता एवं नैतिकता के कारण ही प्रस्तुत रचना प्रशंसित है। भाषा की सहजता और संक्षिप्ता इसकी प्रधान विशेषता है। हिन्दी खड़ी बोली रचित प्रस्तुत कहानी में भाषा की चलती शब्दावली जान डालने का काम करती है। तुलनात्मक प्रसंगों में भाषा अलंकारी और भाव गम्भीरता के गुणों से सम्पन्न है। यथा वे चप्पल इतने खराब हैं कि ठीक करना मुश्किल है। चमड़ा तो पूरी तरह से घिस गया है।" अन्दर के सब गस्ते बाहर निकल आए हैं। उसकी सारी सिलाई टूट-फूट चुकी है, रंगन्ना के शरीर की हड्डियाँ का ढाँचा।
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