भारतीय रस का सिद्धांत (Bhartiya Ras Siddhant in Hindi) संस्कृत शब्द रस से आया है जिसका अर्थ है रस, सार या स्वाद / रसज्ञान (Taste)। रस भारतीय कला में
भारतीय रस का सिद्धांत (Bhartiya Ras Siddhant in Hindi)
रस का अर्थ: संस्कृत शब्द रस से आया है जिसका अर्थ है रस, सार या स्वाद / रसज्ञान (Taste)। रस भारतीय कला में उस अवबोध की ओर संकेत करता है जो किसी भी सौन्र्दय रस, दृश्य, साहित्य या संगीत के प्रति दर्शकों में एक भावना जागृत करता है जिसका वर्णन संभव नहीं। रस सिद्धान्त का उल्लेख प्राचीन संस्कृत नाट्य शास्त्र में भरत मुनि के द्वारा किया गया। कश्मीर के दार्शनिक अभिनव गुप्त (C 1000 CE) ने नाटक, गीत संगीत और अन्य प्रदर्शित कला में भी वर्णन प्रस्तुत किया है।
रस शब्द प्राचीन वैदिक साहित्य में भी उल्लेखित है। ऋग्वेद (Rigveda) में इसे तरल, निचोड़ और रंग के अर्थ में प्रस्तुत किया गया। अथर्ववेद में इसका अर्थ स्वाद, अन्न का अर्क है। उपनिषद् में सार, प्रकाशयुक्त चेतना (Self-luminors comes ciousnern), (Quintessence) सारतत्व, और कभी कभी रस ज्ञान (Taste) भी कहा गया है। उत्तर वैदिक साहित्य में इसको निचोड़ (Extract), सार (Essence), रस ( Juice) या स्वादिष्टतरल पदार्थ (Tasty liquid ) के रूप में ही सम्बोधित किया गया है।
भरत मुनि का नाट्य शास्त्र (200 B. C. E. - 200 C. E) रस की व्याख्या करते हुए कहता है कि रस उत्पत्ति विभाव (Determinants), अनुभाव (Anubhava ) और व्यभिचारीभाव ( Transitory states) के संयोग से उत्पन्न होता है। रस सिद्धान्त के अनुसार विशुद्ध सौन्दर्य अनुभव की प्रकृति लोकोत्तर (Transacentental) है। इस आनन्द का श्रोत दिव्य (Divine ) है।
स्थायीभाव (Emotional modes) नौ रस से अभिव्यक्त होता है।
- श्रृंगार रस का संबंध प्रेम (Love) और काम (Eros ) से है।
- हास्य रस का संबंध हास्य (Humour ) से है।
- बीभत्स रस का संबंध (Pathetic disgust ) करूणा, असंतोष / अरूचि / नाराजगी से है।
- रौद्र रस का संबंध (Anger, Fury ) क्रोध, आवेश, रोष से है।
- करुण रस का संबंध (Compassion, sympathy) दया, करूणा, सहानुभूति से है।
- वीर रस का संबंध (Heroic ) वीरता से है ।
- भयानक रस का संबंध ( terrible, horrifying) डरावना, दारूण, भयावह से है।
- अदभुत रस का संबंध (Marvellous, amazing ) अनोखा, आश्चर्यजनक, विस्मयकारी से है।
- साम या शांत रस का संबंध (Serenity) धीरता, स्थिरता, शुद्धता से है।
रस दर्शकों को आन्नद और हर्ष के अनुभव से भावनाओं की पराकाष्ठा तक पहुँचाता है। रस सिद्धान्त दर्शकों को असीम परम सुख दे सकता है।
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