बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Bandura Social Learning Theory in Hindi) बंडूरा द्वारा सामाजिक अधिगम सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। इस सिद्धांत में
बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Bandura Social Learning Theory in Hindi)
बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत: अलबर्ट बंडूरा का जन्म 4 दिसंबर 1925 में हुआ। बंडूरा एक प्रभावशाली सामाजिक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक हैं। बंडूरा द्वारा सामाजिक अधिगम सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। इस सिद्धांत में स्वनिर्देशित अधिगम के प्रत्यय को प्रमुख स्थान प्रदान किया गया है।
बंडूरा के सामाजिक सिद्धांत के समर्थक इस बात पर बल देतें हैं कि हम जो कुछ भी सीखतें हैं उसका अधिकांश भाग हम दूसरों को देखकर तथा दूसरों की बातों को सुनकर सीखतें हैं।
छोटे-छोटे बच्चे प्रारम्भ से ही दूसरों के व्यवहारों को ध्यानपूर्वक देखना शुरू कर देते हैं। आस-पास के लोग जैसे माता - पिता, परिवार के अन्य सदस्यों, शिक्षकों, समाज के अन्य वयस्क सदस्यों के व्यवहार को देखते हैं। बच्चे इस व्यवहारों का अनुसरण करना तथा तदनुरूप स्वयं भी व्यवहार करना प्रारम्भ कर देतें हैं। वास्तव में प्रत्यक्ष अनुभवों के साथ-साथ अप्रत्यक्ष अनुभवों का भी सीखने पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है । इस सन्दर्भ में बंडूरा लिखते हैं- “बच्चों को तैरना नहीं सिखाया जाता है, किशोरों को साइकिल, स्कूटर चलाना सिखाना नहीं पड़ता है, चिकित्सा शास्त्र के प्रारम्भिक स्तर के विद्यार्थियों को सर्जरी के मौलिक कौशलों की समझ अनुभवी सर्जनों को सर्जरी करते हुए देखकर प्राप्त होती है ।”
स्वानुभव तथा वातावरणीय परिस्थितियों से प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होने के साथ- साथ अवलोकन द्वारा सीखना विद्यार्थियों को इतर आयाम (extra dimension ) तथा अवसर प्रदान करता है। प्रत्येक व्यक्ति को सभी अनुभवों से गुजरना अनिवार्य नहीं है वह दूसरों के अनुभवों से भी लाभान्वित होता है।
सीखना कैसे होता है ?
सामाजिक अधिगम सिद्धांत के अनुसार सामाजिक वातावरण के सदस्यों के व्यावहारों का अवलोकन कर उनका अनुसरण करने से नए व्यवहारों की सीखा जाता है। बंडूरा के अनुसार इस प्रकार के सीखने में निन्मलिखित प्रक्रियाएं या चरण सन्निहित होते हैं-
1. व्यवहार पर ध्यान देना तथा उसे समझना - इस प्रथम चरण पर व्यक्ति विशेष के व्यवहार के अवलोकन के अवसर सीखने वाले को प्रदान किए जाते हैं । यहाँ पर सम्पूर्ण व्यवहार या व्यवहार का एक विशेष पहलू विद्यार्थी के ध्यान को आकर्षित करता है तथा तब वह विद्यार्थी के ध्यान का केन्द्र बन जाता है।
2. व्यवहार का स्मरण रखना - इस दूसरे चरण में अवलोकित व्यवहार, मानसिक प्रतिबिम्ब (Mental Image) के रूप में विद्यार्थी के स्मृति पटल में संरक्षित हो जाता है।
3. स्मृति को कार्य में परिवर्तित करना - इस तीसरे चरण में अवलोकित और स्मृति में संरक्षित व्यवहार का विद्यार्थी द्वारा अपने दृष्टिकोण तथा अपनी आवश्यता के अनुसार विश्लेषण किया जाता है । तदोपरांत वह इस व्यवहार को अपनाकर कार्य करता है ।
4. अनुकृत व्यवहार का पुनर्बलन - इस अंतिम चरण में अनुकृत व्यावहार पुनर्बलित होता है। ऐसा होने पर अनुकृत व्यवहार विद्यार्थी द्वारा अंगीकृत कर लिया जाता है तथा भविष्य में उसके प्रदर्शित होने की निरंतरता बनी रहती है।
खेल के मैदान में खिलाड़ियों के व्यवहारों का अवलोकन, भोजनालय में विभिन्न व्यंजनों को बनाने की प्रक्रियाओं का अवलोकन, प्रभावी व्याख्यानों को देखने सुनने के अवसरों की उपलब्धता, श्यामपट पर सुन्दर लिखने की प्रक्रिया का अवलोकन आदि सीखनी की प्रक्रिया के प्रथम चरण से सम्बंधित हैं। इस प्रकार के व्यवहारों के निरंतर अवलोकन से इनका विद्यार्थी के स्मृति पटल में मानसिक प्रतिबिम्ब के रूप में संरक्षित होना दूसरे चरण के अंतर्गत होता है।
तीसरे चरण में विद्यार्थी अपनी समझ तथा आवश्यकता के अनुसार व्यवहारों के इन विभिन्न प्रतिमानों में कुछ को प्रदर्शित करना प्रारम्भ कर देता है। अंतिम प्रदर्शन को कोच, शिक्षकों तथा दर्शकों द्वारा सराहे जाने पर; घर में कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों को तैयार करने तथा उनको परिवार के सदस्यों / मित्रों द्वारा स्वादिष्ट बताए जाने पर ; सुन्दर लेखन के अवलोकन के स्वयं ऐसा कर सकने में समर्थ होने पर इन प्रदर्शित व्यवहारों का पुनर्बलन होता है। इस प्रकार पुनर्बलित व्यवहार विद्यार्थी द्वारा अंगीकृत कर लिए जाते हैं।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि व्यवहार के विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन, सीखने से एक विशेष क्रम से जुड़े हैं। हम अवलोकन करते हैं, अवलोकित व्यवहार को स्मृति पटल में संचित करते हैं, उसका अनुकरण करते हैं तथा उसके पुनर्बलित होने पर उसे अंगीकृत कर लेते हैं।
प्यार की अभिव्यक्ति, क्रोध का प्रदर्शन, संवेदनाओं की अभिव्यक्ति, पूर्वाग्रहों का प्राकट्य बोलना, लिखना, विशेष खाद्य पदार्थों के प्रति रूचि, विशेष वेश-भूषा के प्रति लगाव, विभिन्न कार्यों को करने के लिए पहल करना या ऐसी पहल करने से बचना आदि सामजिक अधिगम सिद्धांत के अनुसार 'सीखने' की प्रक्रिया के संपादित होने को स्पष्ट करते हैं।
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