आलोक वृत्त खंड काव्य का उद्देश्य - Alok Vritt Khand Kavya ka Uddeshya: आलोक वृत्त खण्डकाव्य का भी उद्देश्य श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का प्रतिपादन रहा है।
आलोक वृत्त खंड काव्य का उद्देश्य - Alok Vritt Khand Kavya ka Uddeshya
प्रत्येक काव्य अथवा साहित्य-संरचना सदैव सोद्देश्य होती है। कवि एक लक्ष्य अपने सामने रखकर ही काव्य लिखता है। उद्देश्यानुसार ही विषय खोजकर भावभूमि तैयार करता है। आलोक वृत्त खण्डकाव्य का भी उद्देश्य श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का प्रतिपादन रहा है। इस खंडकाव्य में कवि का उद्देश्य गाँधी जी के जीवन चरित्र के माध्यम से लोगों को सत्य, अहिंसा, देश प्रेम, परोपकार, न्याय, सदाचार आदि की प्रेरणा देना है। आलोक वृत्त खंड काव्य की रचना का उद्देश्य है- (1) राष्ट्रीय एकता, (2) सत्य-अहिंसा का महत्त्व, (3) देश-प्रेम की भावना को जगाना, (4) मानवतावाद।
1. राष्ट्रीय एकता: राष्ट्रीय एकता का प्रतिपादन करना कवि को अभिप्रेत रहा है। हिमालय से कन्याकुमारी तक हम सभी एक हैं। राष्ट्रीय एकता ही राष्ट्रीय आन्दोलन का मूलाधार रही है तथा कवि ने भी आन्दोलन के राष्ट्रीय रूप को देखा तथा राष्ट्रीयता की भावना जगाते हुए राष्ट्रीय एकता प्रतिपादित करने की चेष्टा की है। इस उद्देश्य में कवि सफल रहा है।
2. सत्य-अहिंसा का महत्त्व: प्रस्तुत काव्य के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सत्य और अहिंसा के पुजारी हैं। सत्य और अहिंसा इन दो अस्त्रों के बल पर ही उन्होंने शक्तिशाली विदेशी शासकों को देश छोड़ने तथा भारत को स्वतन्त्र करने के लिए विवश कर दिया। गाँधीजी ने सभी देशवासियों को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया । यह काव्य हमें सन्देश देता है कि सत्य और अहिंसा सर्वश्रेष्ठ मानवीय गुण है और इनके बल पर बड़े-से-बड़े लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। अहिंसा के ही द्वारा बापू ने एकता का सम्पादन किया था—
अहिंसा ने अजब जादू दिखाये।
विरोधी हैं खड़े कन्धा मिलाये ।।
3. देश-प्रेम की भावना को जगाना: कवि अपनी रचना द्वारा भारतीय जनों के हृदय में भारत के गौरवमय अतीत का वर्णन करके देश-प्रेम की भावना जगाना चाहता है-
जिसने धरती पर मानवता का पहला जयघोष किया था ।
बर्बर जग को सत्य-अहिंसा का पावन सन्देश दिया था ।।
इस प्रकार कवि भारत के अतीत की झाँकी प्रस्तुत करके भारत की वर्तमान अधोगति के प्रति भारतीयों के हृदय में टीस, आक्रोश एवं चेतना जगाना चाहता है।
4. मानवतावाद: कवि मानवतावाद का उद्घोषक है। मानवतावाद की स्थापना ही कवि का चरमोद्देश्य माना जा सकता है। बापू के मानव-मानव में भेदरहित विचारों का पोषण करना ही कवि को मन्य रहा है। धर्म, देश, जाति, रंग आदि की सीमाओं से ऊपर वे मानव को मानव देखने के पक्षपाती रहे हैं।
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