विट्ठलदास का चरित्र चित्रण कीजिए: ‘सेवासदन' उपन्यास में विट्ठलदास एक आदर्श चरित्रवान के रूप में प्रस्तुत होते हैं। विट्ठलदास का आदर्श चरित्र उनके पुरु
विट्ठलदास का चरित्र चित्रण कीजिए।
‘सेवासदन' उपन्यास में विट्ठलदास एक आदर्श चरित्रवान के रूप में प्रस्तुत होते हैं। विट्ठलदास का आदर्श चरित्र उनके पुरुषार्थ, जाति - सेवा, समाज-सेवा, देश-प्रेम, निस्सायों की सहायता करने, सुधारक तथा सेवा संस्थाएँ स्थापित करने, न्यायप्रियता, स्त्रियों के प्रति आदर भाव में व्यक्त होता है। उच्च शिक्षा न पाकर भी वह समाज में सर्वमान्य बनते हैं । पद्मसिंह के वे घने मित्र हैं।
2. समाज सुधारक
विट्ठलदास अपने शुरू किए हुए कार्य को पूरी लगन एवं पुरुषार्थ से पूरा करते हैं । अनाथालयों के लिए चन्दा जना करने एवं विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति का प्रबन्ध करने में वह अपना सुख और स्वार्थ भी भूल जाते थे। वह सत्य के मार्ग पर पूरी ईमानदारी से चलने वाले पात्र हैं। वह नि:स्वार्थ सेवा के प्रतीक हैं। पद, मान आदि का उन्हें लोभ नहीं है। उनके विषय में उपन्यासकार कहता है - "वह चाहते थे कि महाशयजी को म्युनिसिपैलिटी में कोई अधिकार दे, पर विट्ठलदासजी राजी नहीं होते। वह नि:स्वार्थ कर्म की प्रतिज्ञा को नहीं तोड़ना चाहते । उनका विचार है कि अधिकारी बनकर वह इतना हित नहीं कर सकते जितना पृथक् रहकर कर सकते हैं।"
3. हिन्दू जाति के प्रति अनुराग
हिन्दुओं के प्रति विट्ठलदासजी के हृदय में एक विशेष अनुराग है । वह हिन्दू जाति में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील जागरूक नागरिक की भाँति सदेव संलग्न दिखाई देते हैं। हिन्दू जाति की मर्यादा को बचाने के लिए विट्ठलदास का कथन देखिये - "सुमन तुम सच कहती हो, बेशक हिन्दू-जाति अधोगति को पहुँच गयी और अब तक वह कभी भी नष्ट हो गयी होती, पर हिन्दू- स्त्रियों ही ने अभी तक उसकी मर्यादा की रक्षा की है। उन्हीं के सत्य और सुकीर्ति ने उसे बचाया है। केवल हिन्दुओं की लाज रखने के लिए लाखों स्त्रियाँ नाना प्रकार के कष्ट भोगकर, अपमान और निरादर सहकर पुरुषों की अमानुषीय क्रूरताओं को चित्त में न लाकर हिन्दू जाति का मुख उज्जवल करती थीं। यह साधारण स्त्रियों का गुण था और ब्राह्मणियों का तो पूछना ही क्या ? पर शोक है कि यही देवियाँ अब इस भाँति मर्यादा का त्याग करने लगीं। सुमन मैं स्वीकार करता हूँ कि तुमको घर पर बहुत कष्ट था। माना कि तुम्हारा पति दरिद्र था, क्रोधी, चरित्रहीन था, माना कि उसने तुम्हें घर से निकाल दिया था, लेकिन ब्राह्मणी अपनी जाति और कुल के नाम पर यह सब दुःख झेलती हैं। आपत्तियों को झेलना और दुरावस्था में स्थिर रहना, यही सच्ची ब्राह्मणियों का धर्म है, पर तुमने वह किया जो नीच जाति की कुलटाएँ किया करती हैं। सुमन, तुम्हारे इस कर्म ने ब्राह्मण जाति ही का नहीं, समस्त हिन्दू-जाति का मस्तक नीचा कर दिया।" उनके हिन्दू जाति के सच्चे संरक्षक होने एवं ब्राह्मणों के प्रति विशेष आदर भाव को सूचित करता है।
4. देशभक्त
विट्ठलदास देश के उत्थान के लिए अपने कर्त्तव्यों के प्रति पूरी तरह सजग हैं। आदर्श एवं सच्चे देशभक्त के रूप में उनका चरित्र अनुकरणीय है। देश की उन्नति के लिए किये गये प्रयासों में यह दृष्टव्य है -
"मेरा पहला उद्देश्य है, वेश्याओं को सार्वजनिक स्थान से हटाना और दूसरा वेश्याओं के नाचने-गाने की रस्म को मिटाना ।"
“कृषकों की सहायता के लिए एक कोष स्थापित करना एवं बीज और रुपये नाम मात्र सूद पर उधार देना।''‘“विवाह में इतने रुपये आपने पानी में डाल दिये। किसी शुभ कार्य में लगा देते तो कितना उपकार होता।'' इसके अतिरिक्त अकाल के समय सिर पर आटे का गट्ठर लादकर गाँव-गाँव घूमना तथा अपनी सारी सम्पत्ति देश को अर्पण करना उनके सच्चे देश-प्रेमी होने का सूचक है।
5. न्यायप्रिय
विट्ठलदास न्याय के पथ से हटने वाले का साथ छोड़ देते थे। चाहे वह उनका मित्र ही क्यों न हो। वह न्याय-पथ पर अटल रहते थे। उनकी न्यायप्रियता पर प्रकाश डालते हुए उपन्यासकार का कहना है, “अब सारे शहर में उनका कोई मित्र न था ।" अर्थात् सारे मित्र न्याय- पथ से विचलित हो गये थे। सुमन के सम्बन्ध में संस्था को न बताने पर वह अपने बारे में कहते हैं- "मेरे उद्देश्य चाहे कितना ही प्रशंसनीय हो, पर उसे गुप्त रखना सर्वथा अनुचित था ।" यह स्वकथन उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा को भी कर रहा है।
6. नारी सहृदयता
विट्ठलदास स्त्रियों के प्रति अत्यन्त सहृदय हैं। उनके प्रति आदर-सम्मान की भावना से वह पूरी तरह पूर्ण हैं। उपन्यास में नारी जब-जब दयनीय दशा को पहुँचती है, यह तब-तब उसके उन्मूलन के लिए सुझावों को देते हुए कार्यान्वित करते हैं । सुमन की पतित दशा को देखकर निकले उनके उद्गार "स्त्रियों को अगर ईश्वर सुन्दरता दे तो धन से वंचित न रखे। धन-हीन सुन्दर चतुर स्त्री पर दुर्व्यसन का मन्त्र शीघ्र ही चल जाता है।" सत्य के कितने निकट है, यह समझने की बात है। स्त्रियों की दुरावस्था का कारण वह उनकी निर्धन स्थिति को मानते हैं।
विवाहित शान्ता को लाने के लिए वह पद्मसिंह से कहते हैं -
विट्ठलदास: शान्ता को बुला लाइए ।
पद्मसिंह: सारे घर से नाता टूट जायेगा ।
विट्ठलदास: टूट जाय, कर्त्तव्य के सामने किसी का भय ?
पद्मसिंह: भैया को अप्रसन्न करने का साहस एवं सामर्थ्य मुझमें नहीं ।
विट्ठलदास: अपने यहाँ न रखिए, विधवाश्रम में रख दीजिए, यह तो कठिन नहीं, स्त्रियों का उद्धार करना वह एक धर्म कार्य मानते थे।
उपन्यासकार विट्ठलदास को आदर्श चरित्रवान व्यक्ति के रूप में प्रतिनिष्ठित करने में पूरी तरह सफल हुआ है।
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