विलोम का चरित्र चित्रण - Vilom ka Charitra Chitran: आषाढ़ का एक दिन का नायक कालिदास है परंतु विलोम की स्थिति भी उससे कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। विलोम की
विलोम का चरित्र चित्रण - Vilom ka Charitra Chitran
विलोम का चरित्र चित्रण: आषाढ़ का एक दिन का नायक कालिदास है परंतु विलोम की स्थिति भी उससे कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उसे प्रतिनायक का दर्जा दिया जा सकता है। नाटक में विलोम की उपस्थिति प्रत्येक अंक में है। उसका सीधा संबंध कालिदास और मल्लिका से है। कालिदास की भाँति विलोम भी मल्लिका से प्रेम करता है यद्यपि वह यह भलीभाँति जानता है कि मल्लिका के जीवन और हृदय में उसका कोई स्थान नहीं है। मल्लिका सदा ही उसके प्रवेश को अनधिकार प्रवेश ही मानती है और कालिदास भी उससे मिलकर कभी सहज नहीं हो पाता। मल्लिका कहती है “आर्य विलोम, मैं इस प्रकार की अनर्गलता क्षम्य नहीं समझती” और इसी क्रम में कालिदास कहता है “तुम दूसरों के घर में ही नहीं, उनके जीवन में भी अनधिकार प्रवेश कर जाते हो।"
वस्तुतः कालिदास अतिभावुकता, कोमलता और अव्यावहारिकता का चरम बिंदु है तो विलोम व्यावहारिक दृष्टिकोण का। विलोम का चरित्र कालिदास की प्रकृति से नितान्त विपरीत है इसीलिए लेखक ने उसे विलोम नाम दिया है। कालिदास भी स्वयं को और विलोम को विपरीत ध्रुव ही मानता है। इन दोनों पात्रों के मध्य संघर्ष की जो स्थिि निरंतर बनी रहती है उसका मुख्य कारण स्वभाव की यह विपरीतता ही है।
नायक के विपरीत प्रकृति का होते हुए भी विलोम को खलनायक नहीं माना जा सकता यधपि उसकी उपस्थिति खलनायक की ही भाँति है। खलनायक उस दुष्ट पात्र को कहते हैं जो कथानक में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करे, नायक-नायिका को सहयोग करने के स्थान पर उनके मार्ग की बाधा बने परंतु विलोम ऐसा कुछ भी नहीं करता। मल्लिका के प्रति स्नेह के कारण कालिदास के प्रति उसके मन में ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता का भाव है जिससे प्रेरित होकर वह जब-तब उन दोनों का सामना करता है और अपने पक्ष को सिद्ध करने का प्रयास करता है। उसे मल्लिका की भावनाओं का ज्ञान है, उसके भविष्य के प्रति वह चिंतित भी है। कालिदास के व्यक्तित्व को भी वह भली-भाँति पहचानता है इसीलिए उसके उज्जयिनी जाने से पूर्व अपनी आशंकाओं को स्पष्ट कर देता है। उसे मालूम है कि कालिदास के साहचर्य के कारण मल्लिका और अंबिका को अनेक प्रकार के लोकापवाद का सामना करना पड़ता है, करना पड़ सकता है, कालिदास यदि राजधानी चला जाएगा तो मल्लिका का क्या होगा और राजकीय सुखसुविधाओं के बीच ऐसे बहुत से कारण होते है जिनके सम्मुख व्यक्ति विवश हो जाता है।
विलोम की इन शंकाओं को कोई समाधान नहीं होता और उसकी आशंका अंततस् सही सिद्ध होती है। कालिदास नये वातावरण में मलिलका को भूलता तो नहीं परंतु उसे पास भी नहीं आ पाता। विलोम अपने विषय में बहुत स्पष्ट है अपनी प्रकृति के विषय में, अपनी योग्यता और आकांक्षाओं के विषय में। इसीलिए वह कहता है “ विलोम क्या है? एक असफल कालिदास और कालिदास ? एक सफल विलोम। हम कहीं एक दूसरे के बहुत निकट पड़ते है।” विलोम और कालिदास दोनों मल्लिका से प्रेम करते हैं और यशलाभ के आकांक्षी भी हैं। परंतु कालिदास को मल्लिका से प्रेम भी मिला है और यश भी। जबकि विलोम इन दोनों ही उपलब्धियों से वंचित रह गया है। विलोम के स्वभाव की यह स्पष्टता उसकी वाणी में भी झलकती है वह जो कुछ सही सोचता है उसी सच को कहने का साहस भी रखता है।। उसकी इस स्पष्टवादिता के कारण ही नाटक में बारबार द्वन्द्व और संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। विलोम नाटक का नायक भले ही न हो परंतु नाटक में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जब उसका चरित्र कालिदास की अपेक्षा अधिक दृढ़ दिखाई देता है। दूसरे अंक में कालिदास के मिलने भी न आने से वह भी क्षुब्ध है क्योंकि इससे मल्लिका और अंबिका दु:खी हैं। तीसरे अंक में भी यही संकेत मिलता है कि अंबिका की मृत्यु के उपरान्त उसी ने मल्लिका को आश्रय दिया है।
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