त्यागपथी' खण्डकाव्य के आधार पर हर्षवर्द्धन का चरित्र-चित्रण कीजिए - कवि रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' कृत ‘त्यागपथी' खण्डकाव्य भारतवर्ष के महान सम्राट हर्षवर्
त्यागपथी' खण्डकाव्य के आधार पर हर्षवर्द्धन का चरित्र-चित्रण कीजिए
'त्यागपथी' खण्डकाव्य के आधार पर सम्राट हर्षवर्धन का चरित्र - कवि रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' कृत ‘त्यागपथी' खण्डकाव्य भारतवर्ष के महान सम्राट हर्षवर्धन के जीवन की परिक्रमा करता है। हर्षवर्धन के चरित्र में समस्त गुण विद्यमान थे जो एक आदर्श शासक तथा पुरुष में अनिवार्य है। खण्डकाव्य के आधार पर हर्षवर्धन की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
भावुक पुत्र तथा भ्राता: आखेट पर गये हर्षवर्धन को ज्यों ही पिता की अस्वस्थता का समाचार प्राप्त होता है, वह बिना एक क्षण गंवाये थानेश्वर की ओर प्रस्थान कर देता है। यहाँ 'सती' के लिए उद्यत माँ को सभी प्रकार के समझाने के प्रयास में विफल हर्ष माता-पिता दोनों की ही अन्तिम यात्रा का प्रतिभागी बनता है। भावविह्वल अग्रज का सहारा बन खड़ा हर्ष बहन राजश्री पर अतिरिक्त अनुराग रखता है। अतः उसके साथ हुए दुर्व्यवहार तथा बड़े भाई की हत्या के पश्चात वह गौड़ नरेश शशांक की हत्या का प्रण लेता और उसे पूर्ण करता है। शासन करने के दौरान हर्ष अपनी बहन को राज्य की सहशासिका घोषित करता है।
अपराजेय योद्धा तथा कुशल प्रशासक: अल्पवय में भी हर्ष का पराक्रम अद्वितीय है। वह मालव नरेश को परास्त करने के पश्चात गौड़ नरेश की हत्या कर अपना प्रणपूर्ण करता है। उसके शासन में जनता स्वयं को सुरक्षित महसूस करती है-
शुभता का व्रती था हर्ष का शासन ।
था लिया जिसने प्रजा - हित राजसिंहासन ।।
थी सकल साम्राज्य में सुख श्री उमड़ आयी ।
थी चतुर्दिक न्याय समता की विभा छायी ।।
बहन के राज्य कन्नौज को अपने साम्राज्य में मिलाकर हर्ष 'कन्नौज' को राजधानी का दर्जा देता है तथा बहन राज्यश्री के साथ सदा ही प्रजा के लिए कल्याणकारी कार्यों की अवधारणा प्रतिपादित करता रहता है।
दानवीर तथा प्रजावत्सल- हर्ष प्रत्येक पाँच वर्ष राजकोष का संचय करता था तथा छठें वर्ष सर्वस्व दान कर बहन राज्यश्री से दान में मिले वस्त्र धारण कर कृतार्थ हो उठता था। हर्ष के साम्राज्य में प्रजा स्वयं को संरक्षित अनुभव करती तथा हर्ष को पित-तुल्य सम्मान देती थी। हिन्दू जनसंख्या का बाहुल्य होने पर भी हर्ष के शासन में सहिष्णुता विद्यमान थी। हर्ष की दानवीरता तथा प्रजावत्सलता अतुलनीय है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि हर्षवर्धन की कीर्ति युगों से संसार में अस्तित्ववान रही है और भविष्य के राजतंत्र उनके शासन से प्रेरणा प्राप्त कर अपने शासन को योग्य दिशा दे सकने में समर्थ होगें। हर्षवर्धन के त्यागमयी जीवन चरित्र का भान करते हुए संभवतः कवि ने इस खण्डकाव्य का नामकरण 'त्यागपथी' किया है। हर्षवर्धन एक आदर्श पुत्र, भावुक भाई, अजेय योद्धा, श्रेष्ठ शासक के रूप में स्वीकृत महान त्यागी तथा इतिहास पुरुष थे।
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