सत्य की जीत खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित 'सत्य की जीत' नामक खण्डकाव्य महाभारत के ‘द्रौपदी चीरहरण' पर
सत्य की जीत खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य की कथावस्तु- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित 'सत्य की जीत' नामक खण्डकाव्य महाभारत के ‘द्रौपदी चीरहरण' पर आधारित है। कथानक दुर्योधन द्वारा पाण्डवों को द्यूतक्रीड़ा के लिए आमंत्रित करने के साथ प्रारंभ होता है। पाण्डव इस निमंत्रण को स्वीकार कर कौरवों के बिछाये छल जाल में फँस जाते हैं। कौरवों का पक्ष छल द्वारा पाण्डवों को हराता चला जाता है और सर्वस्व हारने के पश्चात युधिष्ठिर पत्नी द्रौपदी को भी हार जाते हैं। इसके बाद दुर्योधन द्रौपदी को भरी सभा में अपमान के उद्देश्य से दुःशासन को आदेश देता है कि वह दासी द्रौपदी को राजसभा में लेकर आये। दुःशासन द्रौपदी को बलपूर्वक बालों से घसीटते हुए सभा में लाता है। द्रौपदी अपने इस अपमान से आहत है तथा अपनी पीड़ा को गर्जना में बदल पूरे राजभवन को ललकारती है -
ध्वंस विध्वंस प्रलय का दृश्य, भयंकर भीषण हाहाकार।
मचाने आयी हूँ रे आज, खोल दे राजमहल का द्वार।
द्रौपदी अकेले ही पूरी राजसभा को अपने प्रश्नों के तीर से घायल कर देती है और दुःशासन समेत सम्पूर्ण सभा वाद-विवाद में द्रौपदी के तर्कों से परास्त होती है। द्रौपदी अपने पतियों को भी फटकारती है और युधिष्ठिर से पूछती है कि सर्वस्व हार जाने के पश्चात उन्हें द्रौपदी को हारने का क्या अधिकार रह गया ? इन सब तर्क-वितर्क का कोई हल न देखते हुए दुर्योधन अपना धैर्य खोने लगता है और दुःशासन को (द्रौपदी को विजित मानते हुए) उसके वस्त्रहरण का आदेश देता है। द्रौपदी के रौद्र रुप को देखकर दुःशासन घबरा उठता है और उसके वस्त्र खींचने में स्वयं को असमर्थ पाता है।
क्षुब्ध द्रौपदी पुनः कौरवों को वस्त्रहरण के लिए ललकारती है। सभी सभासद द्रौपदी के सत्य तथा सतीत्व के तेज का समर्थन करते हैं तथा कौरवों की निन्दा करते हैं। अन्त में धृतराष्ट्र द्रौपदी के पक्ष में खड़े होकर कौरवों को पाण्डवों को उनका राज्य तथा अधिकार वापस करने का आदेश देते हैं और द्रौपदी के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए पाण्डवों के कल्याण की कामना करते हैं। इसी के साथ खण्डकाव्य समाप्त होता है।
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