प्रियंगुमंजरी का चरित्र चित्रण: आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रियंगुमंजरी एक सहायक पात्र है। वह उज्जयिनी के यशस्वी सम्राट की पुत्री है। प्रियंगुमंजरी की
प्रियंगुमंजरी का चरित्र चित्रण - Priyangumanjari ka Charitra Chitran
प्रियंगुमंजरी का चरित्र चित्रण: आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रियंगुमंजरी एक सहायक पात्र है। वह उज्जयिनी के यशस्वी सम्राट की पुत्री है। प्रियंगुमंजरी की विद्वत्ता चर्चा का विषय बन चुकी है। कालिदास से उसका विवाह हुआ है। मल्लिका उसे असाधारण कह कर भले ही संतोष कर ले परंतु अपने आचारण से प्रियंगुमंजरी एक साधारण स्त्री ही प्रतीत होती है। उसने अत्यंत प्रतिभाशाली कालिदास से विवाह अवश्य किया परंतु कालिदास के प्रेम की स्वामिनी शायद वह नहीं बन पाई है। उसे भलीभाँति ज्ञात हो गया है कि कालिदास के हृदय में मल्लिका और अपने ग्रामीण परिवेश का जो स्थान है उसे न तो वह प्राप्त कर सकती है न ही उज्जयिनी और काश्मीर की सत्ता, सुख और वैभव। उसके मन में स्त्री सुलभ जिज्ञासा और ईर्ष्या भी है कि मल्लिका और उस ग्राम प्रांतर की ऐसी कौन सी विशेषता है जिसके सम्मुख राज्याधिकार और वैभव विलास भी प्रभावहीन प्रतीत होते हैं। अपनी इस जिज्ञासा की शांति के लिए ही वह काश्मीर जाते हुए कुछ समय के लिये उस गाँव में आती है और विशेष रूप से मल्लिका से मिलती है। परंतु उसका कोई संवाद, हाव भाव, क्रिया प्रतिक्रिया ऐसी नहीं है जिससे यह आभास होता हो कि वह वहाँ की सादगी और सहजता से प्रभावित हुई हो।
राजकन्या होने का दर्प प्रियंगुमंजरी के प्रत्येक हाव भाव से झलकता रहता है। वह अपने आप को और लोगों से भिन्न और ऊँचा मानती है और उसका पति होने के कारण कालिदास की स्थिति भी गाँव के अन्य लोगों के समकक्ष नहीं है। वह अब पर्वतों उपत्यकाओं में विचरने वाला, वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का आस्वादन करने वाला, सीधी सादी मल्लिका से प्रेम करने वाला पुराना कालिदास नहीं बलिक काश्मीर का शासक मातृगुप्त है। इसीलिए मल्लिका द्वारा कालिदास पुकारा जाना उसे सहन नहीं होता "अब वे मातृगुप्त के नाम से जाने जाते हैं। " (पृ.६९)
वह मल्लिका के सहज सौंदर्य की प्रशंसा करती है और उस " ग्राम प्रदेश के सौंदर्य की भी सचमुच वैसी ही हो जैसी मैंने कल्पना की थी। इस सौंदर्य के सामने जीवन की सब सुविधाएँ हेय हैं। इसे आँखों में व्याप्त करने के लिए जीवन भर का समय भी पर्याप्त नहीं।" परंतु प्रशंसा का यह भाव स्थायी नहीं है। शीघ्र ही इस सबसे भिन्न और महान होने का अहंकार उसे घेर लेता है “आज इस भूमि का आकर्षण ही हमें यहाँ खींच लाया है। अन्यथा दूसरे मार्ग से जाने में हमें अधिक सुविधा थी।” “(पृ.६७) एक प्रदेश का शासन बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है।....... यूँ वहाँ के सौन्दर्य की ही इतनी चर्चा है, परन्तु हमें उसे देखने का अवकाश कहाँ रहेगा ? ” (पृ. ६८)
सत्ता और अधिकार का मद प्रायः लोगों को संवेदनहीन बना देता है। प्रियंगुमंजरी भी मल्लिका की भावनाओं को जानते हुए भी उसकी चिंता नहीं करती। इसीलिए वह उसके घर की दीवारों को गिराकर उसका 'परिसंस्कार कराने, अनुस्वार अनुनासिक जैसे मूर्ख राजकर्मचारियों से विवाह करने, अपनी सहचरी बनाकर उसे अपने साथ ले चलने का प्रस्ताव रखती है। ये सभी प्रस्ताव हास्यास्पद भी हैं और अपमानजनक भी और विदुषी राजकुमारी की गरिमा के प्रतिकूल भी। प्रियंगुमंजरी एक ओर विचित्र बात कहती है कि वह यहाँ का कुछ वातावरण अपने साथ ले जाना चाहती है जिससे कालिदास को यहाँ का अभाव अनुभव न हो। “इस वातावरण के अंग हैं कुछ हरिणशावक, यहाँ की औषधियाँ, यहाँ के कुछ घर, मातुल और उनका परिवार गाँव के कुछ अनाथ बच्चे।” (पृ.७१) राजकुमारी की यह सोच कितनी सतही है। वह अपनी हर बात से अपने और मल्लिका के स्तर के अंतर को रेखांकित करना चाहती है। वह प्रकारान्तर से जताना चाहती है कि कालिदास भी अब उससे बहुत दूर, बहुत आगे निकल चुके हैं और अब मल्लिका को कालिदास के प्रति मोह या उसके प्रत्यागमन की प्रतीक्षा छोड़ देनी चाहिए जिससे कि कालिदास का मन भी स्थिर हो सके, वह स्वयं को राज्यकार्य और साहित्य रचना में निर्द्वन्द्वभाव से संलग्न कर सके “मैंने तुमसे कहा था कि मैं यहाँ का कुछ वातावरण साथ ले जाना चाहती हूँ। यह इसलिए कि उन्हें अभाव का अनुभव न हो। उससे कई बार बहुत क्षति होती है। वे व्यर्थ में धैर्य खो देते हैं, जिसमें समय भी जाता है, शक्ति भी। उनके समय का बहुत मूल्य है। मैं चाहती हूँ उनका समय उस तरह नष्ट न हुआ करे।” (पृ.७१) वस्तुतः नाटककार ने प्रियंगुमंजरी और मल्लिका दोनों को आमने सामने रखकर दोनों के चरित्रों के मूलभूत अंतर को स्पष्ट किया है। सारे दर्प, अहंकार और वाकपटुता के बावजूद प्रियंगुमंजरी का चरित्र मल्लिका के चरित्र के सम्मुख निस्तेज प्रतीत होता है।
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