नासिरा शर्मा का जीवन परिचय - Nasira Sharma ka Jivan Parichay

नासिरा शर्मा का जीवन परिचय - Nasira Sharma ka Jivan Parichay: नासिरा शर्मा का जन्म इलाहाबाद के एक संपन्न मुस्लिम शिया परिवार में शुक्रवार 22 अगस्त, 19

नासिरा शर्मा का जीवन परिचय - Nasira Sharma ka Jivan Parichay

नासिरा शर्मा का जन्म इलाहाबाद के एक संपन्न मुस्लिम शिया परिवार में शुक्रवार 22 अगस्त, 1948 को प्रात: 4 बजे हुआ। अत: इलाहाबाद एक हिंदी साहित्यकारों का केंद्र भी रहा हैं। ऐसे प्रदेश में नासिरा का जन्म हुआ है। नासिरा शर्मा के पिता का नाम प्रोफेसर जामिन अली था। इनके पिता इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उर्दू विभागाध्यक्ष थे। नासिरा शर्मा के दोनों भाई और बहनें भी साहित्य जगत से जुडे हुए हैं। 


नाम नासिरा शर्मा
जन्म 22 अगस्त, 1948इलाहाबाद
राष्ट्रीयता भारतीय
पिता जामिन अली
पेशा लेखिका

परिवार:

नासिरा शर्मा के पिता जामिन अली उर्दू के प्रसिदध प्रोफेसर थे। साथ ही वे अच्छे कवि भी थे। नासिरा शर्मा को अनुवंशिक रूप में ही लेखकीय वातावरण प्राप्त हुआ। जिससे नासिरा में लेखकीय गुणों की उपज हुई। माता नाझनीन के संस्कार नासिरा पर थे। उनके परिवार में कला और साहित्य के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता था। नासिरा की बहन फात्मा उर्दू की ख्यातनाम लेखिका है। घर के मर्द कसीदे, मसीहे, नौहे और गज़ले लिखते थे। उनके घर में मर्द और औरत में ज्यादा फर्क नहीं किया जाता। मर्दों के बराबर औरत को भी इज्जत दी जाती।

पिताजी की मृत्यु के पश्चात् अकेली माँ ने तीनों बच्चों को शिक्षा दी। स्वाभिमानी माता ने पिताजी की सारी जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर उठाया। समाज विरोध, विद्रोह सहकर भी बच्चों को अपने पैरों पर खड़े रहने के काबिल बनाया। माँ के अच्छे संस्कारों से ही तीनों बच्चे सुसंस्कृत बनें।

बचपन: नासिरा घर में सबसे छोटी होने के कारण बहुत लाड़-प्यार से बचपन बीता। बचपन से ही वे दो टूक बातें करती थी। सीधी-सादी होने के नाते किसी को अपमानित करना, फँसाना, चार सौ बीसी करना आदि कला से अज्ञात थी। माँ का उन पर सबसे अधिक असर था। पिता की मृत्यु के बाद घर की सारी बागड़ौर माँ ने अच्छी तरह से निभाई थी।

नासिरा शर्मा अपने पिता के बारे में लिखती है - "मैं जब छोटी थी, तब उनकी मृत्यु हुई मगर उनकी चर्चा हमेशा रही उनके उसूल, पसंद, व्यवहार, सोच पर इतने लोग बातें करते थे कि अनजाने में ही हम उन सारी बातों पर चलने और मानने लगे।" पिता की मृत्यु के समय नासिरा छोटी थी। फिर भी सबके मुँह से पिता के बारे में सुनकर अनजाने में ही वे उनके रास्ते पर चलने लगी थी।

शिक्षा: शिक्षा के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है। इसी शिक्षा से नासिरा शर्मा को एक नया रूप प्राप्त हुआ। वह अपना प्रथम गुरु अपनी माँ को मानती है। उनकी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा 'कान्वेट' में संपन्न हुई। इलहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने बी. ए. की उपाधि प्राप्त की। एम्. ए. की उपाधि फारसी भाषा साहित्य में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से प्राप्त की है। ' ईरान क्रांति' उनके साहित्यिक शोध का विषय रहा है। जिसके लिए वे ईरान से हो आई है। शिक्षा सिर्फ नौकरी हेतु न थी बल्कि जीवन से जुड़ी थी। उनकी हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी, पश्तों आदि भाषाओं पर गहरी पकड़ है।

नौकरी:

ज़ामिया मिलिया विश्वविदयालय में फ़ारसी भाषा और उर्दू भाषा की अध्यापिका के रूप में इन्होंने काम किया है। आयानगर रेडियो स्टेशन पर भी वे कई माह तक प्रोग्राम ऑफिसर के रूप में कार्यरत रही थी। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। पत्रकार के रूप में वह विदेश हो आयी है। पत्रकार के रूप में उन्होंने बिहार मुख्यमंत्री श्री. बिंदेश्वरी दुबे का तथा ऐडवोकेट सोना खान आदियों के साक्षात्कार लिए है।

विवाह और वैवाहिक जीवन:

जाति-धर्मों के बंधन को तोड़कर नासिरा शर्मा ने डॉ. रामचंद्र शर्मा के साथ स्पेशल मैरेज ऐक्ट' के तहत अंतरधर्मीय प्रेम विवाह किया। धार्मिक कर्मकांड़ों, परंपराओं, मान्यताओं को नकार कर संविधान और कानून द्वारा अपना अधिकार प्राप्त किया। वह लिखती है - “डॉ. शर्मा की शादी के इच्छुक पिता बरसों तक कोशिश करते रहे थे राजस्थान से कई घराने दहेज में मकान, कार देने को तैयार थे। ये सारे कटाक्ष, ताने, कुढ़न हमारे संबंधों पर कभी न हावी हुए, न धर्म, घर, परिवार, वर्ण, प्रांत हमारे बीच कटुता के बीज बो पाए।" एक दूसरे के प्रति प्यार और विश्वास के कारण विवाह संपन्न हुआ। नासिरा शर्मा के घर से भी इस विवाह को विरोध था।

नासिरा शर्मा का वैवाहिक जीवन सुखमय रहा है। पति डॉ. शर्मा के साथ उन्होंने बहुत से संकटों का सामना किया है। डॉ. शर्मा जवाहरलाल नेहरू विश्वविदयालय में प्रख्यात अध्यापक रहे है। नासिरा शर्मा लिखती है - " डॉ. शर्मा बचपन में कविता की तरह हर अतिथियों के सामने खड़े होकर हनुमान चालिसा, गायत्री मंत्र पढ़कर सुनाते और शाबासी लेते थे। अजमेर में पले-बढ़े तो ख्वाजा साहब से कैसे दूर रह सकते थे। पढ़ना, हाकी खेलना, शाम को ईदगाह में जाकर कव्वाली सुनना उनकी दिनचर्या बन गई थी।" भी जाति-धर्म के विरोधी थे। अंतरधर्मीय विवाह के लिए समाज की जो प्रतिक्रिया होनी थी वह हो चुकी लेकिन वह प्रतिक्रिया नासिरा के घर की दहलीज न लाँघ सकी और पति डॉ. शर्मा पर भी उन प्रतिक्रियाओं का कोई असर न हुआ। नासिरा लिखती है 66 मैं मुसलमान हूँ। पति हिंदू। मोहब्बत हिंदी से, जबकि मेरी जुबान उर्दू हैं। पढ़ाई फारसी ( परशियन) में की है।" सभी भाषाओं को आत्मसात करने के साथ दो धर्मों का भी स्वीकार किया है। गोपाल ने नाम के बारे में लिखा है “ 'नासिरा शर्मा' नाम हिंदू और मुसलमान की मिली-जुली संस्कृति का बड़ा सुंदर प्रतीक है। इस नाम का पहला हिस्सा अरबी भाषा का है (नासिरा : सहायक, मददगार या अस्त्र लिखनेवाला) और दूसरा हिस्सा संस्कृत का ( शर्मा : शर्म्मण )। नासिरा मुस्लिम नाम है, शर्मा हिंदुओं में भी ब्राहमणों की उपाधि है। उन दोनों को मिलाने की भावना और साहस अभिनंदनीय है। "" अंतरधर्मीय विवाह करके दो धर्मों को जोड़ने का काम नासिरा ने किया है। साथ ही अपने नाम से भी दो धर्मो का मेल दिखाया है।

नासिरा और डॉ.शर्मा ने अंतरधर्मीय विवाह करके हिंदू और मुसलमान दोनों को मिलाने का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। नासिरा अपनी सास को 'चाची' कहती है। उनकी सास ने भी बहू और बेटे में फर्क नहीं किया। नासिरा शर्मा लिखती है “ उनके इस व्यवहार से 'शाल्मली' की सास का किरदार उपन्यास में गढ़वाया; जो लीग से हटकर था। इस उपन्यास को मैंने अपनी सास सरस्वती देवी को समर्पित किया था।” अभी वो 'शाल्मली' की सास के रूप में आई है। नासिरा शर्मा के बेटे का नाम 'अनिल' और बेटी का नाम 'अंजु ' है। जिसमें वेटी अपने वैवाहिक जीवन में सुखी है तथा बेटे ने सन् 2000 में अपना नाम बदलकर 'कृष्णा अली' रखा है। 

नासिरा शर्मा का विवाह अंतरधर्मीय होने के कारण उनके विवाह के टिकने के बारे में बहुत से लोगों को साशंकता थी। नासिरा लिखती है - "कुछ लोग पहले भी यह कहकर मुँह की खा चुके थे कि भई, वह अब टी.वी. में प्रोग्राम देनेवाली है, जल्द ही छोड़ देगी यह घरेलू खटराग और रामचंद्र शर्मा टापते रह जाएँगे। राम से भी उनके जाननेवालों की पत्नियों ने मेरे हाई हील सैंडल्स, कटे बाल, लंबे नाखून देखकर बड़े कड़वे लहजे में कहा था कि टिक जाए तब की बात है।” उन्होंने अपना वैवाहिक जीवन बहुत ही सफलता से जीया है और निभाया भी है। उनके रहन-सहन के बारे में अन्य लोगों ने बहुत-सी प्रतिक्रियाएँ दी थी।

पुरस्कार एवं सम्मान:

हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा हिंदी सेवा के लिए 'अर्पण सम्मान', 'संगसार' कहानी संग्रह पर मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का 'गजानन माधव मुक्तिबोध पुरस्कार' और ‘शाल्मली' एवं मध्यपूर्व देशों पर लेखन के लिए बिहार शासन का 'महादेवी वर्मा पुरस्कार' आदि सम्मानों से उन्हें अलंकृत किया गया है। " 2005 में सामायिक प्रकाशन से प्रकाशित 'कुइयाँजान' उपन्यास के लिए सन् 2008 का अंतरराष्ट्रीय 'इंदू शर्मा कथा सम्मान' घोषित किया है। " इस प्रकार नासिरा शर्मा को कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया गया हैं

भाषा: नासिरा के लेखन साहित्य को पढ़ते समय यह बात परिलक्षित होती है कि उनकी भाषा में अरबी-फारसी के शब्द सहजता से आए हैं। मुसलमानों की बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग उनके साहित्य में हुआ है। उनका साहित्य पढ़ने के लिए उर्दू-हिंदी शब्दकोश, अरबी - हिंदी शब्दकोश तथा फारसी - हिंदी शब्दकोश पढ़ना पड़ता है। उनके शब्द जैसे - इमामबाड़ा, आमोख्ता, मातम, कशीदाकारी, दीमक आदि शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश देखे बिना नहीं समझा जाता है। " नासिरा शर्मा की भाषा स्वाभाविक और सहज 'हिंदी' है, जिसे कोई चाहे तो 'उर्दू' भी कह ले। "24 उनकी भाषा में उर्दू के शब्द अधिक हैं। जिससे वह उर्दू लगती है। नासिरा की भाषा में अन्य भाषा के शब्द भी सहजता से आए है। वह खुद अरबी, फारसी, उर्दू तथा हिंदी भाषा की अच्छी जानकार होने के कारण उनकी भाषा में इन सभी भाषाओं के शब्द सहजता से आए है। विदेश भ्रमण करने के कारण कुछ विदेशी शब्द भी उनके साहित्य में मिलते हैं। जैसे - 'युरेश्यिन शॉप', 'त्रापेंस', 'क्रुएल', 'हाफ कराऊन', 'यू आर इस्टिल हिअर' आदि। नासिरा खुद भाषा के बारे में लिखती है - "भाषा एक बेहद प्रभावशाली माध्यम है, जिसमें तलवार की काट भी है और सुई की बारीकी भी, जो फटे दिल को सीने की शक्ति भी रखता है। ' नासिरा की भाषा में अन्य भाषी शब्द होने पर भी वे अलग नहीं बन पाते। वे हिंदी भाषी ही लगते है।

नासिरा अपनी भाषा के बारे में लिखती है - "इन कहानियों की भाषा जिंदा भाषा है, जिसमें निजता और लोक-गंध की मिठास है।" कहानियों का परिवेश तथा कथावस्तु आस-पास घटित घटनाएँ हैं। जिससे वह कहानी अपनी कहानी लगती है।

नासिरा शर्मा कृतित्व / साहित्य सृजन

का व्यक्तित्व जितना प्रभावी, संपन्न और स्पष्ट है उतना ही उनका साहित्य समृदध और सशक्त है। नासिरा के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब उनके साहित्य में नजर आता है। नासिरा के साहित्य में वर्तमान झलकता है देखे और भो हु यथार्थ का चित्रण उनके साहित्य में प्राप्त होता है। वर्तमान समस्याएँ, सांप्रदायिकता, नारी समस्याएँ, पीड़ितों की समस्याएँ और विश्व की बहुत-सी घटनाओं को उन्होंने अपने साहित्य में स्थान दिया है। कहानी, उपन्यास, नाटक, लेख और रिपोर्ताज उन्होंने लिखे हैं। समीक्षा, अनुवाद, संपादन कार्य भी किया है। उन्होंने साक्षरता, बाल-साहित्य, सीरियल और टी. वी. फिल्म के लिए भी लेखन किया है। उनके साहित्य में ज्यादातर मुस्लिम नारी को न्याय देने का प्रयास किया है। अत: यहाँ नासिरा शर्मा के साहित्य का संक्षेप में परिचयात्मक विवेचन इस प्रकार है -

नासिर शर्मा का कहानी संग्रह

नासिरा शर्मा ने अपने लेखन की शुरूआत कहानी से की है। उनके अब तक बारह कहानी संग्रह प्रकाशित हुए है। उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से अनेक विषयों पर प्रकाश डाला है। 'पत्थर गली' नासिरा शर्मा का पहला कहानी संग्रह है। जिसका प्रकाशन 'राजकमल प्रकाशन, दिल्ली' दवारा 1986 में हुआ है। इस कहानी संग्रह में कुल आठ कहानियाँ है इसमें मुस्लिम समाज का चित्रण प्राप्त होता है। विशेषत: इनमें से अधिकतर कहानियों में मुस्लिम नारी का चित्रण है। जिसमें नारी मनोविज्ञान, नि:संतान नारी, परंपराओं में पिसती नारी जैसे विषयों को स्थान दिया है। नारी की कोमल भावनाओं का, विद्रोही वृत्ति का भी चित्रण मिलता है। इसमें 'बावली', 'सरहद के इस पार', 'बंद दरवाजा', 'कातिब', 'ताबूत', 'कच्ची दीवारें', 'पत्थर गली' और 'सिक्का' जैसी कहानियों को “मुस्लिम समाज का दर्पण कहा जा सकता है।" नासिरा ने अपनी कहानियों का परिवेश मुस्लिम समाज का लिया है। जिसमें चित्रित नारी का वर्णन यथार्थ के निकट है। जिस कारण वह मुस्लिम समाज का दर्पण लगता है।

'संगसार' नासिरा का दूसरा कहानी संग्रह 'प्रभात प्रकाशन, दिल्ली' दवारा 1993 में प्रकाशित हुआ है। इन कहानियों में मानवी जीवन में व्याप्त संघर्ष का चित्रण मिलता है। 'संगसार' इस कहानी संग्रह के बारे में आदर्श सक्सेना लिखते है - 'संगसार' कहानी संग्रह की कहानियाँ उस कशमकश की प्रभावी दस्तावेज बन गई है जिसमें गहन मानवीय चेतना, तीखी संवेदना और मार्मिक अभिव्यंजना का सुंदर समन्वय हुआ है।" 'संगसार' इस कहानी संग्रह की कहानियों को पढ़ते समय मानवीय चेतना जिसमें प्रेम, अपनापन जैसे विषयों का मार्मिक चित्रण दिखाई देता है। 

'इब्ने मरियम' नासिरा शर्मा का तीसरा कहानी संग्रह है। जिसमें तेरह कहानियाँ हैं। 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली' दवारा 1994 में इसका प्रकाशन हुआ है। इस कहानी संग्रह में विस्थापितों की पीड़ा, दुःख, समस्याएँ और भावनाओं को समझने का और उजागर करने का प्रयास किया है। उसमें सांप्रदायिकता का चित्रण है। देश विभाजन के पश्चात् देश तथा विदेशों में बसे भारतीयों की स्थिति का अंकन उनकी कहानियों में पाया जाता है। वर्तमान परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत कहानी संग्रह की एक विशेषता है 'शामी कागज' इस कहानी संग्रह का 'प्रभात प्रकाशन, दिल्ली' दवारा सन् 1997 में प्रकाशन हुआ। इसमें लिखी सभी कहानियाँ ईरान क्रांति के युग की कहानियाँ हैं। जब लोग अपने अधिकार के लिए लड़ रहे थे उस समय की यह कहानियाँ है। इसमें सोलह कहानियाँ संकलित है। इस कहानी संग्रह में हर देश - भाषा का प्रतिबिंब मिलता है ईरान की धरती पर लिखित इन कहानियों में दुनिया के अनेक देशों का प्रतिनिधित्व परिलक्षित होता है।

'सबीना के चालीस चोर' कहानी संग्रह का 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली' द्वारा सन् 1997 में प्रकाशन हुआ है। इस कहानी संग्रह में भारतीय समाज की स्थिति को प्रस्तुत किया है। इसमें कुल बारह कहानियाँ है। इस कहानी संग्रह के पात्र ज्यादातर निम्नवर्ग के हैं। इसमें समाज में पुरूष द्वारा पिसती नारी का चित्रण है। इसमें बाल-मनोविज्ञान का भी अंकन पाया जाता है। सांप्रदायिकता के दुष्परिणामों को इन कहानियों में स्थान प्राप्त हुआ है।

'खुदा की वापसी' कहानी संग्रह का 'ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली' द्वारा सन् 1999 में प्रकाशन हुआ। इसमें मुस्लिम नारी को न्याय देने का प्रयास किया है। मुस्लिम नारी की समस्याओं को उठाया है। साथ ही शिक्षित नारी भी कैसे कानून न जानने के कारण छली जाती है इसका चित्रण मिलता है। गीता विज लिखती है 'खुदा की वापसी' पढ़ते हुए जयशंकर प्रसाद का 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक सामने आ जाता है। इन कहानियों में नासिरा का इसरार भी ऐसा ही ठोस और असरदार है।" 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में जिस प्रकार प्रसाद ने नारी समस्या को उठाकर उस समस्या का हल दिया है। उसी प्रकार नासिरा ने अपनी कहानियों के माध्यम से मुस्लिम नारी की समस्याओं को उठाया है और उन समस्याओं को सुलझाने का रास्ता भी दिखाया है। 

'इन्सानी नस्ल' इस कहानी संग्रह का प्रकाशन 'प्रभात प्रकाशन, दिल्ली' द्वारा सन 2000 में हुआ। इसमें तेरह कहानियाँ संकलित है। इन कहानियों में इन्सान की इन्सान से टकराहट है। आधुनिक युग में बदलते नैतिक मूल्य तथा सांप्रदायिकता का चित्रण हुआ है।

'शीर्ष कहानियाँ' यह सन् 2000 में प्रकाशित कहानी संग्रह है। इसका प्रकाशन 'रचना प्रकाशन, जयपुर' से हुआ है। इसमें प्रकाशित सात कहानियाँ मेरे शोध विषय से जुड़ी होने के कारण इन कहानियों का विवेचन अन्यत्र विस्तार से आया है। 

'दूसरा ताजमहल' नासिरा शर्मा का प्रकाशित नौवा कहानी संग्रह है। इसका 'प्रकाशन इंद्रप्रस्थ प्रकाशन, दिल्ली' द्वारा सन् 2002 में हुआ है। इसमें सात दीर्घ कहानियों को लिया है। इसमें बदलते नैतिक मूल्य, पति - पत्नी के नौकरी पेशा होने से रिश्तों में आए बदलाव आदि का चित्रण है। 

'बुतखाना' कहानी संग्रह का 'लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद' से सन् 2002 में प्रकाशन हुआ है। 'गूँगा आसमान' ये नासिरा शर्मा का ग्यारहवाँ कहानी संग्रह है। इसका प्रकाशन सन् 1999 में हुआ है।

'दस प्रतिनिधि कहानियाँ' इस कहानी संग्रह का प्रकाशन सन् 2006 में 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली से हुआ है। इसमें पाठकों के पसंद की तथा नासिरा के पसंद की कुल 'मिलाकर दस कहानियाँ है जो इसके पूर्व प्रकाशित अलग-अलग कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई है।

उपन्यास: नासिरा शर्मा की कहानियों की तरह ही उपन्यासों के विषयों में वैविध्य है। 'शाल्मली' उनका प्रथम और प्रसिदध उपन्यास है। इसी उपन्यास के कारण नासिरा एक चर्चित उपन्यासकार के रूप में स्थापित हुई। 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली से सन् 1987 में इसका प्रकाशन हुआ है। इसमें आदर्श और आधुनिकता के संदर्भों में संघर्षरत नारी का चित्रण है। 'ठीकरे की मँगनी' उपन्यास सन् 1989 में 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली' से प्रकाशित हुआ है। इसमें मुस्लिम समाज की परंपरा और रूढ़ियों में पीसती नारी की मुक्ति और उसकी छटपटाहट का चित्रण किया है। 'जिंदा मुहावरें' नासिरा का तीसरा उपन्यास है। 'वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से सन् 1992 में इसका प्रकाशन हुआ है। भारत-पाक विभाजन के बाद धर्म पर गर्व करनेवाले मुसलमान पाकिस्तान चले जाते हैं लेकिन पाकिस्तान में रहनेवाले हिंदुओं को न भारत वापस आने दिया जाता है और न ही जीने दिया जाता है। डॉ.सत्यदेव त्रिपाठी लिखते है- “इसमें आधुनिकता का पक्ष उस मानवीय बिंदु पर स्थित है, जहाँ जन्म - शैशव - युवा काल की मुहब्बत का समुद्र ठाठे मार रहा है, परंतु किनारे से टकराकर लौट जाने को विवश है। ' यह उपन्यास भारत और पाकिस्तान में रह रहे मुसलमानों की व्यथा की कथा है

'सात नदियाँ एक समंदर' नासिरा का अन्य एक उपन्यास है। इस उपन्यास का पहला नाम 'बहिस्त-ए-जहरा' था। 'प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से सन् 1995 में इसे प्रकाशित किया था। इसमें विश्व के विभिन्न घटना, विषयों को चित्रित किया है। यह समकालीन ईरानी संस्कृति और राजनीति पर आधारित उपन्यास है। 'अक्षयवट' इस उपन्यास का 'भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली से सन् 2003 में प्रकाशन हुआ है। 'कुइयाँजान' उपन्यास का 'सामाजिक प्रकाशन, नई दिल्ली ' से सन् 2005 में प्रकाशन हुआ है। इसके साथ 'बूँद', 'तुम डाल-डाल', 'हम पात-पात', इन उपन्यासों का सृजन नासिरा ने किया है।

नाटक: नासिरा शर्मा ने आधुनिक हिंदी साहित्य में उपन्यास और कहानियों का जो सृजन किया है वह एक 'मील का पत्थर - सा' साबित हुआ है। साथ ही उन्होंने 'सबीना के चालीस चोर' और 'दहलीज' नामक दो नाटक भी लिखे हैं।

लेख संग्रह: 'राष्ट्र और मुसलमान' लेख संग्रह का सन् 2002 में 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली' दवारा प्रकाशन हुआ। यह सन् 1991 से सन् 1999 तक के देश के विविध समाचार पत्रों में प्रकाशित मुश्लिम समाज में लिखे लेखों का संकलन है। नासिरा शर्मा इसके बारे में लिखती है - “किताब पहली बार मुसलमानों के चेहरे से नकाब हटा बीच की दीवारों को हटा बहुत कुछ कह सकी, जो सच हम सबका है और उससे आँखों बचा हम लगातार हाशिए पर चलते हुए वे बातें करते रहे जिनका दूर का वास्ता भी मुसलमानों से नहीं रहा।” इसमें संस्मरण के रूप में कुछ यादों को प्रस्तुत किया है। 'औरत के लिए 'औरत' में भी उन्होंने अपने ही जीवन के बारे में लिखा है। जिसका प्रकाशन सन् 2003 में 'सामायिक प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ। जिसमें उनकी जबानी भाषा, धर्म, पति के बारे में भी लिखे संदर्भ मिलते है। साथ ही 'किताब के बहाने ' लेख संग्रह का प्रकाशन सन् 2001 में किया है।

इस ग्रंथ के सभी लेख हिंदी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी भाषा की चर्चित पुस्तकों पर लिखे हैं। इस पुस्तक के लेख शिक्षा मनोविज्ञान पर आधारित है। तथा अक्तूबर 1992 से सन् 1993 तक 'स्वतंत्र भारत' समाचार पत्र में प्रकाशित हुए है। इस ग्रंथ का प्रकाशन 'किताबघर प्रकाशन, दिल्ली से सन् 2001 में हुआ है।

अनुवाद: 'किस्सा जाम का' यह अनुवाद 'साक्षी प्रकाशन, दिल्ली' दवारा सन् 1985 में प्रकाशित हुआ है। इसमें सैंतीस लोककथाएँ है। ये खुसरानी बोली की है। ये बोलियाँ फारसी से मिलती-जुलती है। नासिरा शर्मा इसके बारे में लिखती है- “ईरान से लौटकर मुझे लगा कि यात्रा - संस्मरण से अच्छा यह रहेगा कि मैं ऐसा कुछ लिखूँ जो ईरान की आत्मा से जुड़ा हुआ है, जिसमें जिंदगी भी हो रोचकता भी हो और ईरान के रीति-रिवाजों से लिपटी हुई उसकी सांस्कृतिक काया भी हो।” नासिरा शर्मा ने अपनी ईरान यात्रा के लम्हों को ताजा रखने के लिए तथा अपना अनुभव और यादें पाठकों तक पहुँचाने के लिए ईरान साहित्य का अनुवाद किया है। जिसे पढ़कर वहाँ का रीति-रिवाज और संस्कृति का ज्ञान होता है।

'प्रेमकथा' यह कहानी संग्रह 'नेशनल पब्लिशिंग हाऊस नई दिल्ली' द्वारा  सन् 2003 में प्रकाशित हुआ है। इसमें ईरान के सफल साहित्यिक सनद बहरंगी की कहानियों का अनुवाद है। इसमें सोलह कहानियाँ अनुदित है। इसके साथ 'आवारा कुत्ता', 'काली छोटी मछली' और 'ईरान की रोचक कहानियाँ', 'शाहनामा - ए - फिरदौसी', 'मुलिस्तान-ए-झादी', 'बनिंग पायर', 'फारसी की रोचक कहानियाँ' और 'इकोज ऑफ ईरान रिवोल्यूशन' आदि का अनुवाद किया है। 'इकोज ऑफ ईरानियन रिवोल्यूशन' का हिंदी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में सन् 1997 में अनुवाद हुआ है।

रिपोर्ताज: 'जहाँ फौव्वारे लहू रोते है' यह एक ही रिपोर्ताज संग्रह है।

संपादन: नासिरा शर्मा को ईरान सभ्यता के प्रति तथा संस्कृति के प्रति रुचि होने के कारण वह कई बार ईरान से हो आयी है। इमाम ख़ुमैनी के शासन में अन्याय हो रहा था। इस अन्याय के खिलाफ लड़नेवाले लोग तथा शोषितों को प्रकट करने के लिए सन् 1997 में ‘इकोज ऑफ ईरानियन रिवोल्यूशन : प्रोटेस्ट पोयटरी' ग्रंथ का संपादन किया।

'क्षितिज पार : सूर्य प्रकाश मंदिर बीकानेर' इसका सन् 1988 में प्रकाशन किया। राजस्थान सरकार शिक्षा विभाग द्वारा 'शिक्षक दिवस' के उपलक्ष्य में राज्य के चुनिंदा अध्यापक लेखकों की तीस कहानियों का संकलन कर उसका संपादन किया। इसमें अध्यापकों के विचार और अनुभव सामने आए है।

संपादन सहयोग : ईरान में चल रही उथल-पुथल की जिज्ञासा भारतीय मन में थी। जिसे पूरा करने के लिए सन् 1976 में नासिरा शर्मा ने 'सारिका' पत्रिका का संपादन करने में सहयोग दिया है। सन् 1988 में पाठकों के सवालों के जवाब ढूँढने वह ईरान से हो आयी है नासिरा लिखती है 'सारिका' के पाठकों के लिए आपके इन सवालों का जवाब ढूँढ पाई तो अपने को खुश किस्मत मानूँगी।'

'पुनश्च' पत्रिका का सन् 1983 में नासिरा शर्मा ने संयोजन किया है। "यह अंक अपनी साहित्यिक परंपरा को कायम रखते हुए 'ईरानी क्रांति साहित्य' पर केंद्रित है। जब विश्व के किसी भी कोने में अपने अधिकार, स्वतंत्र अस्तित्व और अस्मिता को लेकर मनुष्य की कोई भी नस्ल लड़ रही होती है तो सारी दुनिया में उसकी प्रतिध्वनियाँ गूँजती हैं।

धारावाहिक (सीरियल ): नासिरा शर्मा की 'वापसी' 'सरजमीन' 'बदला जमाना' और 'शाल्मली' इन साहित्यिक कृतियों पर दूरदर्शन से धारावाहिक रूप में प्रसारण हुआ है।

टी. वी. फिल्म: नासिरा शर्मा के साहित्यिक कृतियों पर धारावाहिक के साथ टी. वी. फिल्मों का भी चित्रिकरण हुआ है। जिनमें 'माँ', 'तड़प', 'आया बसंत सखी', 'काली मोहिनी', 'सेमल का दरख्त' तथा 'बावली' यह साहित्यिक कृतियाँ शामिल है।

साक्षात्कार: पत्रकार के रूप में काम करते समय नासिरा शर्मा को विविध जानी-मानी हस्तियों के साक्षात्कार लेने का मौका मिला। जिनका 'पढ़ने का हक', 'सच्ची सहेली', गिलोबी और 'धन्यवाद - धन्यवाद' नाम से प्रकाशन हुआ है। है।

बाल साहित्य: बच्चों के लिए नासिरा शर्मा ने 'संसार अपने-अपने' का हिंदी में लेखन किया है। जो छोटे बच्चों की हरकतों को उजागर करता है। 'अपनी-अपनी दुनिया' का उर्दू में लेखन किया है और 'किस्सा - ए - गुस्साई माँ' का फारसी में लेखन किया है। साथ ही 'नंदन', 'चम्पक', 'मनस्वी' जैसे मासिकों में 500 अलग प्रकार की कहानियों का लेखन किया है।

अनुसंधान: ' ईरान क्रांति' नासिरा का शोध विषय रहा है। जिसमें ईरान क्रांति का चित्रण है साथ ही 'अफगान : बुजकशी का मैदान' लिखने से पहले वे अफगान जाकर आयी है। अफगान में आयी रूसी फौजों को निकालने के लिए की क्रांति का इसमें चित्रण है।

नासिरा शर्मा के व्यक्तित्व की विशेषताएँ

धर्म निरपेक्ष दृष्टि: नासिरा धर्म निरपेक्ष दृष्टि से आचरण करती है। अफगान देखने नासिरा शर्मा गई थी। तो वहाँ जन्माष्टमी के दिन वह मंदिर गई थी। वह मंदिर, मस्जिद में भेद नहीं मानती है। वह कहती है- “जब मेरे टायपिस्ट बरमेश्वर राम मंदिर बुलाते, तो मैं जाती। पूजा कराते, तो मैं करती। एक बार मेरा बेटा साथ था। ... हम वहाँ गए, बाबाजी से मिले, जो अब जीवित नहीं है। बरमेश्वर जी उनके चरणों पर झुके। मैं तनी रही, अपने से लड़ती हुई, फिर मैं भी झुक गई। बेटे ने देखा। उसकी आँखों में आश्चर्य था। मेरे आँख दिखाने से वह दंडवत हुआ और फिर हमने भंडारे में रोटी और पानी जैसी दाल खाई।” अगर वह हिंदू के भगवान को न मानती अथवा धर्म के अनुसार आचरण करती तो वह मंदिर में न झुक जाती। धर्म निरपेक्ष दृष्टि के कारण ही वह मंदिर में भगवान के सामने झुकी और वहाँ की दाल रोटी खाई। हिंदू-मुसलमान की दूरी को मिटाने का सेतु राम और नासिरा ने बनाया था। जिस पर से वे हँसी-खुशी चल रहे थे। 

नासिरा की धर्म निरपेक्ष दृष्टि होने के साथ-साथ अन्य धर्मों को सम्मान देना भी वह जानती है। धर्म निरपेक्ष दृष्टि के संदर्भ में वह लिखती है - " असली परेशानी तो मेरी यह है कि न मैं हिंदू की बुराई कर सकती हूँ, न मुसलमान की, न सिखों का मजाक उड़ते देख पाती हूँ, न ईसाइयों के प्रति तिरस्कार भाव। " नासिरा अपने धर्म के साथ अन्य धर्मो के प्रति बुराईयाँ नहीं सहन कर पाती है। अर्थात वह भारत के सभी धर्मों का आदर तथा सम्मान करती है।

स्वभाव: व्यक्ति के रहन-सहन, बोलचाल से उसके स्वभाव की प्रतीति होती है। कई बार रचनाकार की रचनाओं में चित्रित पात्रों में भी रचनाकार के स्वभाव की परछाई झलकती दिखाई देती है। यहाँ नासिरा के स्वभाव गुणों तथा विभिन्न पहलुओं का विवेचन प्रस्तुत है।

स्पष्टोक्ति: व्यक्ति के बोलने में जो स्पष्टता होती है उसी के अनुसार वह काम करता है। ऐसे व्यक्ति कभी असफल नहीं होते। अपनी बेटी के ब्याह का संदर्भ देते हुए नासिरा लिखती है. मैं बारातियों का किराया नहीं दूँगी, लड़की ब्याहनी है, तो अपने बलबूते पर आइए। दहेज नहीं दूँगी, ऐसी कोई हरकत नहीं करूँगी जिसके खिलाफ लिखती और बोलती आई हूँ। सिर्फ़ लड़की दूँगी।” अपनी कथनी और करनी में वह विश्वास रखती है। जिससे उसे मुँह की खानी न पड़े। अपने स्पष्टोक्ति स्वभाव के कारण उसके काम में पारदर्शकता आई है। अर्थात कथनी और करनी में फर्क नहीं करती।

बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे का साक्षात्कार लेते समय वह स्पष्टता से पूछती है- "पिछले कई वर्षों से बिहार की राजनीतिक स्थिति में बड़ी उथल-पुथल मची रही है। जब राजनीतिक स्थिरता नहीं रहेगी परिवर्तन, उन्नति, विकास के नाम पर प्रदेश पिछड़ता जायेगा। यह राजनीतिक स्थिरता कैसे आएगी?” अत: पारिवारिक जीवन हो या सामाजिक जीवन, नासिरा शर्मा स्पष्टोक्ति से पेश आती है।

निडर: नासिरा शर्मा के स्वभाव गुणों में और एक गुण है नीड़रता। इसलिए तो वह जीवन में आए खतरों का सामना करना जानती है। इराक युद्ध के बाद वह इराक से हो आयी। नासिरा इराक की स्थितियों के संदर्भ में लिखती है - " तीन सौ मौलवियों, दो सौ इस्लामी संस्थाओं के अध्यक्ष और पचास पत्रकारों के बीच मैं तनहा महिला थी। चारों तरफ काली, सुरमई सफेद अबा - कबा फहराते, ऊँची टोपी के नीचे लंबी - घनी काली - सफेद दाढ़ी को सहलाते हुए हर कद, हर उम्र के मौलवी अलरशीद जैसे होटल में चहलकदमी कर रहे थे। इनके बीच मैं सहमी मगर हर प्रकार की घटना और दुर्घटना को झेलने के लिए आमादा खड़ी थी।” सभी पुरूषों में अकेली होकर भी वह नीड़रता से पेश आई। अतः हर घटना-दुर्घटना का मुकाबला करने के लिए वह तैयार थी। 

अफगानिस्तान देखने के लिए, वहाँ की स्थिति को जानने के लिए नासिरा अफगानिस्तान गई थी। जहाँ पर सभी औरतें सलवार पहनती थी; लेकिन नासिरा अफगान में भी साड़ी पहनकर निकलती। साड़ी के कारण वहाँ के लोगों ने यह पहचाना था कि नासिरा वहाँ की रहने वाली नहीं है। जिसका नतीजा यह हुआ कि रास्ते पर चलते वक्त किसी ने उनकी कमर पर जोर से चोट पहुँचाई। इससे वह अपमानित हुई। फिर भी उन्होंने साड़ी पहनना नहीं छोड़ा। नासिरा शर्मा विदेश में भी अपना पहनावा बदलना चाहती। चाहे उसके लिए उसे अपमान ही क्यों न सहना पड़े। इसलिए वह अपने साथ लाई सलवार-कमीज न पहनकर अपने साथ हुए अन्याय का प्रत्युत्तर देने के लिए वे साड़ी पहनती है। इस संदर्भ में नासिरा कहती है - “मेरा जितना भी अपमान जाहिल जहनियतवाले करें। मैं साड़ी पहनना नहीं छोड़ सकती हूँ, चाहे जो हो। ... साथ लाई सलवार जम्फर अलग हटा मैंने फिर साड़ी निकाली...।” इस संदर्भ के अनुसार उनके नीर व्यक्तित्व की पहचान होती है। 

आगे होनेवाले खतरे को जानकर भी वह अपने में बदलाव नहीं करना चाहती। अफगान में अमरिका ने 'सरफेस टू सरफेस' मिसाईल मुजाहिद्दीन को दे रखे थे। जिससे वहाँ के हालात खतरनाक थे। यह जानकर भी नासिरा शर्मा अफगानिस्तान आई थी। किसी के दवारा अपमानित होना वह सह नहीं पाती थी। वह अपनों के साथ बात करके दिल हलका करना चाहती है या अपने कागजों पर उसे उतारकर रंगीन बनाती है।

प्रकृति प्रेमी : प्राकृतिक सौंदर्य के प्रेम के कारण ही उनके साहित्य में प्रकृति सौंदर्य का वर्णन दृष्टिगत होता है। “हिन्दकुश इत - पहाड़ियाँ, नदियाँ जहाँ तक नजर जाती है... फैली हुई है... उदा. नील, कत्थई, हरा रंग एक दूसरे से जुड़े फैले हैं।” प्राकृतिक सुंदरता के प्रति वह आकर्षित होती है। इसी परिणाम स्वरूप उनके साहित्य में - प्रकृति के सुंदर नजारों के हमें दर्शन होते हैं। अत: वह प्राकृतिक सुंदरता के प्रति आस्था रखती है। 

पसंद: 'अंजीर' उनकी कमजोरी है। रिश्तों को जोड़ना और निभाना उन्हें बहुत पसंद है। तभी तो अफगान में उन्हें 'जैतून' की याद आई। जो नासिरा के घर में काम करने वाली गुलमचन की लड़की है। जिसका जीवन उन्होंने अपनी 'ताबूत' कहानी में चित्रित किया है। नासिरा मन के अस्वस्थ हो जाने पर फिल्म देखना पसंद करती है। तथ्य से सत्य तक पहुँचना उन्हें पसंद है। इसलिए तो वह 'अफगानिस्तान : बुजकशी का मैदान' लिखने से पहले अफगान हो आई है। ईरान क्रांति का ग्रंथ लिखने के लिए पहले आवश्यक सामग्री ईरान में जाकर इकट्ठा की है और बाद में रचना कर्म पूरा किया।

नारी को न्याय देना: कानून को जानना चाहती है। नारी को कानून ज्ञात हो इसलिए वह नासिरा प्रयास करती है। उसे अन्याय, अत्याचार के खिलाफ लढ़ाना चाहती है। मुस्लिम नारी कानून से अनभिज्ञ है। इसका सबसे बड़ा लाभ शौहर उठाते हैं। झूठ-मूठ के कानून को बताकर मेहर की रकम माफ करना चाहते है। 'ख़ुदा की वापसी' कहानी की फरजाना का शौहर सुहाग रात के दिन फरजाना से कहता है " मैंने मजहब की सभी कानूनी किताबों को पढ़ा है, मौलवियों से बातें की है। इसलिए मैं चाहता हूँ, बात साफ हो सके और कोई खालिश बाकी न बचे कायदे से मेहर के पचास हजार रुपये मुझे इस समय अदा करने चाहिए, तब आपका घुँघट उठाने का हकदार बनता हूँ, आपका बदन छुने ... इसलिए।” जुबैर बताता है कि घुँघट उठाने के बारे में भी कानून है। जिसके तहत उसे मेहर की रकम देना अनिवार्य है। फरजाना एम्. ए. तक पढ़ी है। लेकिन उसे धर्म, कानून मालूम नहीं है। इसका फायदा उसका पति उठाता है।

फरजाना का पति उसे बताता है कि मेहर माफ करने से पत्नी शौहर के लिए मुबारक होती है। ऐसा मुस्लिम कानून कहता है। फरजाना पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी मेहर माफ करती है और सब हार बैठती है। फरजाना वह पूँजी हारती है जिस पर उसका भविष्य निर्भर है। ऐसी ही स्थिति हर मुस्लिम नारी की न बने इसलिए नासिरा उन सभी औरतों को कानून सिखाना चाहती है। जिससे उनकी रक्षा हो।

नासिरा ऐडवोकेट सोना खान से पूछती है - “सुप्रीम कोर्ट से हटकर सामाजिक रूप से औरत को उसकी सुरक्षा कैसे दी जा सकती है आप कुछ कहना चाहेंगी?” अपनी रक्षा करना हर औरत का पता चले ताकि यह कानूनी पैतरें जानकर औरत सबल बनें। इस प्रकार की इच्छा नासिरा की है

नासिरा जब सोना खान से पूछती है - " आप इतने दिनों से इन्सानी संदर्भों के कानूनी मुकदमे देख रही है, इसमें आपको औरतों को लेकर कोई बात अजीब लगी ? सोना खान : रिश्तें टूटतें बनतें है, मगर जब औरत-मर्द में अनबन होती है तो औरत को घर छोड़ना पड़ता है। किराए का मकान हो तो किराएदारी मर्द के नाम से होती है। उस हालत में बिना आमदनी के औरत कहाँ से मकान ढूँढ़े औरत के नाम पर कौन किराए पर मकान देगा। जबकि इराक, फ्रान्स, इंग्लैंड, मिस्त्र, कौरह में मर्द घर छोड़कर अपना ठिकाना ढूँढ़ता है और वह ढूँढ़ सकता है।" इस तरह नासिरा औरतों के लिए बने कानून को उन तक पहुँचाना चाहती है। औरतों का शोषण रोकना चाहती है। मुस्लिम समाज की होने के कारण अपनी माँ-बहनों पर होनेवाले अत्याचार जानती है। उसे महसूस करती है। उन अत्याचारों को रोकना और अत्याचारियों को कानून के दायरे में रहकर सजा देना चाहती हैं।

अंतरंग: नासिरा के अंतरंग में प्यार, विद्रोह, अपनापन है। नासिरा ने बारातियों का किराया, दहेज देने से साफ-साफ इन्कार किया था। जिससे इन्हें डर था कि उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। फिर नासिरा समझ गई कि - "थोड़ा-सा खयाल, थोड़ी-सी इज्जत, थोड़ी-सी समझ, थोड़ी-सी इमानदारी आपको बड़ी-से- बड़ी कठिनाईयों को हल करने में मदद करती है और इन्सान को ज्यादा समझने मदद में देती है।" जिस कारण नासिरा अन्य लोगों को भी इज्जत देती है, समझदारी से पेश आती है और खुद इमानदार होने के नाते बेईमानी को नजदीक आने नहीं देती है। 

नासिरा ने अच्छी तरह से यह पहचाना है कि हिंदू-मुसलमान धर्मों में एक-दूसरे को समा लेने की ताकत है। तभी वह लिखती है कि “हिंदू धर्म इतना तंग नहीं, जो मुसलमानों को खड़े होने की जगह न दे और न इस्लाम धर्म इतना कट्टर है, जो एक हिंदू को अपने में जगह न दे पाए।" हिंदू-मुस्लिम धर्म एक-दूसरे को समा लेते है। इसी कारण राम और नासिरा हिंदू-मुसलमान के त्यौहारों को बड़े प्यार से मनाते हैं। 

नासिरा मानती है कि उसका लेखन ही उसकी पहचान है। इसलिए तो वह अपने कलम को इज्जत देती हुई लिखती है - "कलम की इज्जत आज इस दौर में भी दौलत से ज्यादा हैं। जिस भौतिक सुख-सुविधा के दौर में हम जी रहे है और राजधानी में रहकर अलग तरह की दौड़ में शामिल हो चुके हैं।" वह राजधानी की राजनीतिक जिंदगी से हटकर जीवन व्यतित कर रही थी। कलम में वह ताकत है। जिसके बलबूते पर सारा चित्र बदला जा सके। कलम वह सिपाही है जो हर दूर्बल का रक्षक है। 

बचपन में नासिरा सोते समय दिनभर में की गलतियों को न दोहराने का संकल्प कर ही सो जाती। कहा जाता है आदमी सोते समय जो सोचता है वही दूसरे दिन उसकी कृति में उतरता है। इसी तरह की अच्छी आदतें नासिरा ने अपने में समाई है।

बहिरंग: नासिरा का बहिरंग व्यक्तित्व दिखने में सीधा-साधा है। जब वे अफगान गई थी; अफगानी वेशभूषा न अपनाकर वह अपनी हररोज की साड़ी पहनती थी। साड़ी पहनकर बाहर निकलने से एक दिन एक साइकिलवाले ने उनकी कमर पर जोर से मारा था। फिर भी उन्होंने साड़ी पहनना नहीं बंद किया। उन्होंने डर के कारण अपनी वेशभूषा नहीं बदली। भारतीय सुसंस्कृत आधुनिक नारी के रूप में नासिरा उपस्थित होती है। 

चूड़ियाँ पहनकर लिखना मुनासिब न होने के कारण नासिरा चूड़ी नहीं पहनती। नासिरा लिखती हैं " अकसर औरतें मेरा नंगा हाथ देखकर काँप - सी जाती है। अपनी चूड़ी उतारकर पहनाने लगती है, काँच की चूड़ियाँ सुहागिनों की निशानी है। मगर चूड़ी पहनकर लिखना मुझे कष्टकर लगता है, यह सबको बताना कठिन है। खासकर यह बात की माँग में सिंदूर भरना मेरे पति को पसंद नहीं।" हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार पत्नी को सुहाग की सभी निशानियों को पहनना पड़ता है। लेकिन राम ऐसे पति हैं, जो अपनी पत्नी नासिरा को माँग में सिंदूर भरने से रोकते है तथा चूड़ी न पहनने पर कोई एतराज व्यक्त नहीं करते है। हर कोई नासिरा को नए धर्म, विचारधारा के बारे में समझाता है। वह इसमें खुश है कि सभी उसे इन्सान समझते है। वरना बहुत बार मनुष्य के चेहरे खूंखार जानवरों के चेहरों से मिलते है। इससे अच्छा है कि उनका चेहरा मनुष्य के चेहरे से मेल खाता है। परिणामत: नासिरा का अंतरंग और बहिरंग में कोई दोगलापन नहीं है।

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