मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए- 'मुक्तियज्ञ' में व्यक्ति गाँधी का चित्रण कवि का ध्येय नहीं है, राष्ट्रपिता तथा राष्ट्रनायक गाँधी
मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए
'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ- 'मुक्तियज्ञ' में व्यक्ति गाँधी का चित्रण कवि का ध्येय नहीं है, राष्ट्रपिता तथा राष्ट्रनायक गाँधी ही 'मुक्तियज्ञ' के मुख्य पुरोधा हैं। 'मुक्तियज्ञ' लोकायतन का भाग है जिसके अन्तर्गत कवि ने गाँधी के लोकनायक रूप का प्रस्तुतीकरण किया है। गाँधी का सम्पूर्ण जीवन लोकमंगल तथा सहिष्णुता को समर्पित था। ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) सत्य व अहिंसा के पुजारी, (2) दृढ़ प्रतिज्ञ, (3) मानवता के प्रबल समर्थक, (4) निर्भीक तथा साम्प्रदायिक विद्वेष के विरोधी, और (5) लोकनायक
• सत्य व अहिंसा के पुजारी- गाँधी जी विषम से विषम परिस्थितियों में सत्य तथा अहिंसा रूपी अस्त्रों का त्याग नहीं करते। अपने इन्हीं अस्त्रों के बल पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला दी तथा भारत की जनता को पराधीनता के बन्धनों से मुक्त कराया।
• दृढ़ प्रतिज्ञ- गाँधी ने एक बार जो प्रण किया, उसका अक्षरशः पालन किया। ब्रिटिश शासन के दमन चक्र की परवाह किये बिना उन्होंने अनेक सफल सत्याग्रह संचालित किये और भारत माता को बांधी गयी पराधीनता की बेड़ियों को काट डाला। नमक आन्दोलन का आरम्भ करते समय उनकी स्पष्ट घोषणा थी-
प्राण त्याग दूंगा पथ पर ही, उठा सका मैं यदि न नमक कर ।
लौट न आश्रम में आऊँगा, जो स्वराज ला सका नहीं घर ।।
• मानवता के प्रबल समर्थक- गाँधी के दृष्टिकोण में प्रत्येक मानव में ईश्वर का अंश विद्यमान है। उन्होंने अपना समस्त जीवन मानवता के कल्याण में ही लगा दिया। घृणा से नहीं अपितु प्रेम से जीती जा सकती है, इसी विश्वास के बल पर उन्होंने जीवन समर के कठिन मोर्चों पर भी विजय प्राप्त की-
घृणा, घृणा से नहीं मरेगी, बल प्रयोग पशु साधन निर्दय ।
हिंसा पर निर्मित भू संस्कृति, मानवीय होगी न मुझे भय ।।
• निर्भीक तथा साम्प्रदायिक विद्वेष के विरोधी- गाँधी निर्भीकता के साथ ब्रिटिश सरकार के दमन चक्र के समक्ष अटल रहे तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त भी नोआखली के साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के प्रयासों में लगे रहे। नोआखली की साम्प्रदायिक हिंसा ने उन्हें इतना व्यथित किया कि उन्होंने उसी स्थान पर आमरण अनशन का संकल्प किया।
• लोकनायक - गाँधी सच्चे अर्थों में जनता के नेता थे। वे जनता को उपदेश नहीं देते थे बल्कि अपने स्व- आचरण द्वारा उन्हें कर्मों का ज्ञान दिया करते थे। गाँधी का भारतीय जनमानस पर कुछ ऐसा प्रभाव था कि उनका एक वाक्य भी जनता के लिए कर्मयोग का आदेश था तथा लाखों व्यक्तियों का जनसमूह उनके कदमों के पीछे था।
वास्तव में गाँधी युगद्रष्टा, लोकनायक, अहिंसा व सत्य के प्रबल समर्थक जननायक थे जिनके शरीर की हत्या की जा सकी किन्तु विचारों की कभी नहीं।
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