मालती का चरित्र चित्रण - वसंत एकांकी: मालती 'वसन्त' एकांकी की नायिका है। उसके परिवार में उसका पति व पुत्र है। मालती एक कुशल गृहिणी होने के साथ-साथ एक
मालती का चरित्र चित्रण - वसंत एकांकी
मालती का चरित्र-चित्रण: मालती 'वसन्त' एकांकी की नायिका है। उसके परिवार में उसका पति व पुत्र है। मालती एक कुशल गृहिणी होने के साथ-साथ एक अच्छी मां भी है। कला निपुण मालती अपने पति व पुत्र में ही अपने जीवन का विकास और सार्थकता देखती है फिर भी अपने उस भरे-पूरे परिवार में उसे लगता है अभी उसके स्वप्न पूरे नहीं हुए इसलिए अपनी संतान में उनको खोजती है। मालती के चरित्र के विभिन्न पहलूओं पर निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत प्रकाश डाला जा रहा है :
1. परिवार के प्रति समर्पित : - मालती अपने परिवार के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है। वह अपने पति की सीमित आय के अनुरूप ही अपना घर चलाती है इसलिए प्रत्येक काम वह अपने हाथों से करती है। उक्त नाटक के आरंभ ही पता चलता है कि एक साधारण घर की महिला होने पर वह हर कार्य को बड़े प्रेम से करती है। जहां तक बर्तन साफ़ करते हुए भी वह अपने आप से बातें करती है जैसे कि उसके पति द्वारा कहीं गई इन पंक्तियों से पता चलता है : "अगर मैं बाहर ही खड़ा रहता तो सोचता कि न जाने कौन तुमसे बातें कर रहा है। यह क्या मालूम था कि आप जूठे बरतनों से बातें कर सकती हैं।"
2. ममतामयी माँ :- नायिका मालती अपने पुत्र से अथाह प्रेम करती है। वह अपने पुत्र को ही अपना वसन्त समझती हुई उसमें ही अपने सुनहरी भविष्य की तलाश करती है। एक स्थान पर वह अपने बेटे से कहती है :- "सबसे अच्छा वसन्त तू है बेटा। तू हंसता रह बस फूल-फल.... तू मेरी सारी आज्ञाओं को, सारे अनुभवों का पौधा है, मेरा युगों-युगों का वसन्त”। यहाँ वह अपने बेटे से इतना प्रेम करती है तो दूसरी ओर उसका बेटा भी उसको ही अपना वसन्त समझता हुआ अपनी मां के लिए कहता है- हमारा वसंत तो तुम हो, मां तुम हंसती क्यों नहीं ?
3 अंतर्दृष्टि सम्पन्न : - मालती भविष्य के बारे में गहरी सोच रखने वाली महिला हैं। उसके मन की दोनों भावनाएं - उसका अतीत व भविष्य पूरे नाटक में उसके साथ चलती रहती हैं। उन्हीं भावनाओं के कारण अपने अस्तित्व की तलाश में डूबी हुई वह अपने बेटे से कहती है - " मुझमें बहुत से वसन्त हैं- कुछ मीठे, कुछ फीके, कुछ हंसते, कुछ उदास ।" वह अपने अतीत की मधुर कटु यादों के आधार पर ही भविष्य की परिकल्पनाएं करती है।
4. कुशल गृहिणी : मालती प्रस्तुत नाटक में एक कुशल गृहिणी के रूप में उभरकर सामने आती है। वह घर के कामों के साथ-साथ अपने पुत्र व पति का भी ध्यान रखती है। नाटक में उसके पति को भी लगता है कि शायद वह घर के कामों से थक चुकी है। इसलिए वह एक स्थान पर कहता है :- "मालती, मालूम होता है तुम बहुत थक गयी हो। क्या करूँ, सोचता तो बहुत दिनों से हूँ कि छुट्टी लेकर घूम आएं लेकिन कुछ मौका ही नहीं बनता।"
5. कला निपुण :- एकांकी में नायिका मालती एक कलाकार व गायिका के रूप में भी सामने आती है। एकांकी के आरंभ में वह गाती हुई प्रवेश करती है। लेखक के शब्दों में : - "मधुर कंठवाली एक स्त्री जो गाती हुई प्रवेश करती है। उसका स्वर आज की सिनेमा आर्टिस्ट का सधा - बाँधा स्वर नहीं है।" उसके मधुर संगीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है :
"फूल कांचनार के !
प्रतीक मेरे प्यार के !
प्रार्थना सी अर्धस्फुट कांपती रहे कली
पत्तियों का सम्पुट, निवेदिता ज्यों अजंली
आए फिर दिन मनुहार के दुलार के ... फूल कांचनार के ।"
6. प्रकृति प्रेमी : मालती को प्रकृति से प्रेम करने वाली स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जब मालती का पति उसे सिनेमा जाने के लिए कहता है तो वह सिनेमा जाने के लिए मना कर देती है क्योंकि उसका वहां दम घुटता है वह सिनेमा न जाकर कहीं खुली हवा में जाना चाहती है। इस लिए उसका पति कहता है- "तो चलो, कहीं बाग में चलें। या बाहर खेतों की तरफ। आजकल नदी की कछार पर सरसों खूब फूल रही है" बीच-बीच में कहीं अलसी के नीले फूल -। तब मालती कहती है-."... सरसों के फूल में मेरा ही रंग खिलता है .... और आम के बौर में....।" इस प्रकार मालती का प्रकृति के प्रति स्नेह दृष्टिगत होता है।
7. नारी स्वातंत्र्य की इच्छुक : नायिका मालती पुरुष प्रधान समाज के बँधनों को तोड़कर कहीं उड़ जाना चाहती है। जब एक स्थान पर वह कहती है :- "मैं पतंग होती तो उड़ जाती दूर-दूर! फिर कभी वापस न आती नीचे" तो ऐसा लगता हैं कि वह पुरुष प्रधान समाज के सभी बँधनों को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती है। वह अपने पति को भी एक स्थान पर उलाहना देती हुई कहती है :- "रहने भी दो, मुझे क्या करनी है छुट्टी ? थक तो मर्द हैं, स्त्री कभी नहीं थकती हैं। काम और विश्राम - यह मर्द की ईजाद है।"
इस प्रकार प्रस्तुत एकांकी नायिका 'मालती' का विभिन्न रूपों में परिचय मिलता है। वह एक अच्छी माँ के साथ-साथ अपने पत्नी धर्म को भी अच्छे से समझती है। सबसे बढ़कर वह स्वयं की पहचान चाहती है। वह जानना चाहती है कि आखिर वह कौन है।
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