महाकाव्य की परिभाषा, लक्षण और मूल तत्व बताइए। महाकाव्य को अंग्रेजी में Epic कहा जाता है। महाकाव्य साहित्य की प्राचीन एवं बहुचर्चित विधा है। महाकाव्य क
महाकाव्य की परिभाषा, लक्षण और मूल तत्व बताइए ।
महाकाव्य की परिभाषा: महाकाव्य को अंग्रेजी में Epic कहा जाता है। महाकाव्य साहित्य की प्राचीन एवं बहुचर्चित विधा है। महाकाव्य का कलेवर विशाल होता है। जैसे - रामायण और महाभारत। इसमें मानव जीवन का व्यापक चित्रण होता है। महाकाव्य महान चरित्र, महान उद्देश्य और गरिमामय उदात्त शैली से विभूषित होता है। इसमें पूर्वापार प्रसंग का परस्पर संबंध एवं तारतम्य रहना बहुत आवश्यक होता है ।
महाकाव्य के लक्षण
प्राचीन भारतीय आचार्यों ने महाकाव्य के विविध लक्षण दिये हैं। जो निम्नप्रकार से हैं :-
- महाकाव्य सर्गबध्द हो, इसमें कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। कथा के आधार पर सर्गों का नामकरण हो और सर्ग के अंत में आगामी कथा की सूचना होनी चाहिए।
- महाकाव्य का नायक देवता या उच्च कुल में उत्पन्न धीरोदात्त गुणों से संपन्न होना चाहिए।
- महाकाव्य का कथानक ऐतिहासिक, पौराणिक या लोकप्रसिध्द होना चाहिए।
- महाकाव्य का प्रधान रस शृंगार, वीर और शांत होना चाहिए। अन्य रस गौण रूप में आने चाहिए।
- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से किसी एक या अनेक का संबंध महाकाव्य के उद्देश्य से होना चाहिए।
- महाकाव्य का आरंभ मंगलाचरण या आशीर्वचन से होना चाहिए।
- इसमें दुष्टों की निंदा और सज्जनों की प्रशंसा होनी चाहिए।
- महाकाव्य का नामकरण कवि, नायक, नायिका या वृत्त के आधार पर होना चाहिए।
- वर्णन की विविधता भी महाकाव्य में होनी चाहिए। यह वर्णन सूर्य, चंद्र, रात्रि, सुबह, प्रकाश, अंधकार, पर्वत, नदी, झरने, पेड़-पौधे, समुद्र, नगर, युध्द, विवाह आदि अवसरों के अनुसार होना चाहिए।
महाकाव्य के मूल तत्व
समस्त लक्षणों का समन्वय करने पर महाकाव्य के सात तत्त्व सामने आते हैं। जिनका विवेचन निम्नप्रकार से हैं :-
1) कथानक :- महाकाव्य का कथानक इतिहास, पुराण और लोक प्रसिध्द कथा के आधार पर होता है। इसकी कथा जीवन की पूर्ण झाँकी प्रस्तुत करती है। महाकाव्य की कथावस्तु का प्राण कोई घटना होती है। उसी घटना पर उसकी पूरी कथा आधारित रहती है। इसमें गौण कथाएँ भी होती है, जो मुख्य कथा से संबंधित रहती है। महाकाव्य की कथा आठ से अधिक सर्गों में संगठित होती है। कथा का आरंभ मंगलाचरण, आशीर्वचन आदि से होता है। सर्ग के अंत में आनेवाली कथा की सूचना होती है।
2) चरित्र-चित्रण :- महाकाव्य का नायक देवता या उच्चकुलीन, धीरोदात्त, चतुर, वीर आदि गुणों से संपन्न होता है। इसका नायक धर्म का विकास और अधर्म का नाश करनेवाला होता है। महाकाव्य में नायक के अलावा अन्य पात्रों का भी चित्रण होता है। नायक के समान नायिका को भी सर्वगुण संपन्न, आदर्श और नारी-धर्म का पालन करनेवाली होना चाहिए। महाकाव्य में प्रतिनायक (खलनायक) भी होता है। इसके होने से ही महाकाव्य में संघर्षमूलक घटनाओं का वर्णन होता है और नायक के गौरवशक्ति आदि गुणों से भी परिचय होता है।
3) युग-चित्रण :- महाकाव्य में युग विशेष का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत किया जाता है। अवान्तर कथाओं, विविध वर्णनों, भागों, समारोहों आदि के माध्यम से महाकाव्य में उस युग का समग्र चित्र खींचा जाता है। महाकाव्य में सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि सभी परिस्थितियों और भावनाओं का अंकन होता है। अतः हम कह सकते है कि महाकाव्य युग-विशेष का दर्पण होता है।
4) रस-भाव :- महाकाव्य के विशाल कलेवर में सभी रसों का वर्णन आवश्यक है। शृंगार, वीर और शांत रसों में से कोई एक महाकाव्य का प्रधान रस होता है। अन्य रसों की स्थिति गौण रूप में रहती है। ये अन्य रस सहायक रूप में भी प्रयुक्त होते हैं। महाकाव्य में रसभाव की निरंतरता पर विशेष बल दिया जाता है।
5) छंद-योजना :- महाकाव्य के प्रत्येक सर्ग में एक ही छंद का प्रयोग होता है और सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन होता है। छंद चमत्कार, वैविध्य या अद्भुत रस की निष्पत्ति के लिए एक ही सर्ग में अनेक छंदों के प्रयोग को नकारा नहीं जा सकता।
6) भाषा-शैली :- महाकाव्य की भाषा-शैली गरिमामय और उदात्त होती है। संगीतात्मकता एवं गेयता से महाकाव्य की गरिमा में वृध्दि होती है। महाकाव्य की भाषा सहज, सरल, भावानुकूल और प्रभावोत्पादक होती है। कहीं-कहीं मुहावरे, लोकोक्तियों के कलात्मक प्रयोग भी महाकाव्य को रमणीय बना देते है। महाकाव्य की शैली अलंकृत होते हुए भी सहज होनी चाहिए।
7) उद्देश्य :- महाकाव्य का उद्देश्य महान होता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चतुर्वर्ग के फल की प्राप्ति को महाकाव्य का उद्देश्य स्वीकार किया गया हैं । असत्य पर सत्य की विजय, अधर्म पर धर्म की विजय, राष्ट्रभक्ति, नैतिक आदर्श और मानवतावादी मूल्यों की स्थापना को भी महाकाव्य का उद्देश्य माना जाता है।
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