महाभारत की एक साँझ की कथावस्तु: सामान्यतः महाभारत में कौरवों को अधिक अन्यायी और दोषी समझा जाता है परंतु लेखक का कहना है कि केवल एक पक्ष को दोषी ठहराकर
महाभारत की एक साँझ की कथावस्तु - Mahabharat ki Ek Saanjh Ekanki ki Kathavastu
महाभारत की एक साँझ की कथावस्तु: सामान्यतः महाभारत में कौरवों को अधिक अन्यायी और दोषी समझा जाता है परंतु लेखक का कहना है कि केवल एक पक्ष को दोषी ठहराकर दूसरे पक्ष को पूरी तरह निर्दोष समझना भी ठीक नहीं। दुर्योधन के जब सारे वीर सेनापतियों की मृत्यु हो गयी तब वह एक सरोवर में जाकर छुप बैठा। उसे सरोवर से बाहर निकालकर युद्ध करने के लिए पांडव पक्ष से युधिष्ठिर भीम आदि खूब ललकारते हैं। दुर्योधन का तर्क है कि वह हमेशा न्याय पक्ष में लड़ाई करता आ रहा है। चूंकि वह धर्म - न्याय पक्ष पर है, इसलिए सभी धार्मिक और न्यायी व्यक्ति जैसे द्रोणाचार्य, भीष्म, कृपाचार्य आदि उसके पक्ष में लड़ रहे थे। क्या वे जान-बूझकर अन्याय साथ दे रहे थे ? इस प्रकार दुर्योधन और युधिष्ठिर के बीच खूब तर्क-वितर्क होता है, दोनों एक-दूसरे पर आक्षेप करते हैं : दुर्योधन- मैं आजीवन तुम्हारी युद्ध की तैयारियों से व्याकुल रहा हूँ। मैंने अपना जीवन तुम्हारी इर्ष्या के रथ की गड़गड़ाहट सुनते हुए बिताया है। पुरोचन को कपट से मारकर तुम पंचाल गये और वहाँ द्रुपद को अपनी ओर मिलाया। पिताजी ने इसलिए तुम्हें आधा राज्य दे दिया। फिर भी तुमने चैन की सांस नहीं ली और अर्जुन को दिग्विजय के लिए भेजा। राजसूय यज्ञ के बहाने तुमने जरासन्ध और शिशुपाल को समाप्त किया। जुए में दाव पर अपना राज्य लगाकर मेरा राज्य जीतना चाहते थे।"
युधिष्ठिर तुमने द्रौपदी को कुरु सभा में नग्न करने का प्रयास किया।" तो दुर्योधन का उत्तर है कि दाँ पर लगाकर तुमने उसका कौनसा सम्मान किया था ? फिर युधिष्ठिर कहते हैं- “ओ पापी कपटी, दुरात्मा दुर्योधन ! क्या स्त्रियों की भाँति जल में छिपा बैठा है। बाहर निकल आ। देख तेरा काल तुझे ललकार रहा है।" भीमसेन ललकारते हुए कहते हैं- “दुर्योधन ! अरे, अपने सारे सहभागियों की हत्या का कलंक अपने माथे पर लगाकर तू कायरों की भाँति अपने प्राण बचाता फिरता है ? तुझे लज्जा नहीं आती।" अंत में दुर्योधन पानी से निकल आता है और युधिष्ठिर उसे अपनी इच्छा के मुताबिक युद्ध करने के लिए गदा देते हैं। भीम और दुर्योधन के बीच भयंकर गदायुद्ध होता है । दुर्योधन का पराक्रम देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी जीत निश्चित होगी। सौभाग्य से श्रीकृष्ण भीम को दुर्योधन की जाँघ पर प्रहार करने के लिए इशारा करते हैं जिससे उसका पतन होता है। लेकिन उसे अपने किए हुए कर्मों पर कोई पश्चाताप नहीं क्योंकि उसका कहना है कि वह सत्य और धर्म की लड़ाई लड़ रहा है इसलिए वह अन्त तक यही तर्क रखता है, बस उसे एक ही चिन्ता है उसके पिता अंधे होने की वजह क्या थी ? इस प्रकार इसकी कथावस्तु अत्यंत रोचक और कुतूहलपूर्ण है।
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