महाभारत की एक सांझ एकांकी का उद्देश्य- महाभारत की एक साँझ एकांकी भारतभूषण अग्रवाल (1910-1975) द्वारा रचित है। लेखक का उद्देश्य एकांकी के माध्यम से यह
महाभारत की एक सांझ एकांकी का उद्देश्य - Mahabharat ki Ek Saanjh Ekanki ka Uddeshya
नाटक या एकांकी की कथा द्वारा लेखक जो संदेश देना चाहता है उसे प्रतिपाद्य या उद्देश्य कहते हैं। महाभारत की एक साँझ एकांकी भारतभूषण अग्रवाल (1910-1975) द्वारा रचित है। लेखक का उद्देश्य एकांकी के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि चाहे व्यक्ति कितना भी शूरवीर हो, कूटनीतिज्ञ हो या बुद्धिमान हो पर यदि वह अधर्म की राह पर चलता है तो उसका अंत निश्चित है। महाभारत की एक साँझ एकांकी के द्वारा लेखक ने यह भी बताया है कि परिवार में यदि सम्पत्ति को लेकर भाइयों में द्वेष, वैमनस्य का भाव है तो वहाँ कलह अवश्यम्भावी है और उसकी परिणति युद्ध जैसी स्थिति में ही होती है। ऐसा होने पर दोनों पक्ष समान जिम्मेदार और दोषी होते हैं।
'महाभारत की एक साँझ' एक पौराणिक कथा पर आधारित एकांकी है जिसमें दुर्योधन के जीवन की अंतिम साँझ को लेखक ने साधारण व्यक्ति के जीवन की सांझ का प्रतीक बताया है। जब वह पूरे जीवन में किये गये अच्छे बुरे कार्यों का मूल्यांकन स्वयं करता है। प्रस्तुत एकांकी में एकांकीकार ने संवादात्मक शैली में महाभारत के युद्ध के कारणों और उनके प्रभाव को सार रूप में प्रस्तुत किया है।
इस एकांकी में यह बात स्पष्ट होती है कि केवल दुर्योधन ही महाभारत के युद्ध के लिए उत्तरदायी नहीं है पांडवों की महत्वाकांक्षा भी इस युद्ध का कारण थी। युधिष्ठिर और दुर्योधन के संवाद दोनों की मनः स्थिति को स्पष्ट करते हैं। दुर्योधन अपने तर्कों द्वारा पांडवों को दोषी सिद्ध करने का प्रयास करता है तो पांडव भी दोष प्रत्यारोपण करते हैं। युद्ध के अंत में द्वैतवन के सरोवर में छिपे दुर्योधन को मारकर ही पांडव युद्ध की समाप्ति की घोषणा करना चाहते हैं क्योंकि वे राज्य पर एकाधिकार चाहते हैं। वे दुर्योधन की कूटनीति से परिचित हैं उन्हें इस बात का ज्ञान है कि जीवित रहने पर दुर्योधन पुनः सेना को संगठित कर युद्ध का प्रयास करेगा। इसके द्वारा लेखक इस बात को भी स्पष्ट करता है कि शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। कुल मिलाकर 'महाभारत की एक साँझ' के द्वारा लेखक ने त्याग और सहनशीलता जैसे मानवीय गुणों की शिक्षा के साथ अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य की, दुराचरण पर सदाचरण की जीत दर्शाकर सद्कर्म और परोपकार की भावना को भी महत्व दिया है।
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