महाभारत की एक सांझ एकांकी का सारांश और उद्देश्य - Mahabharat ki Ek Saanjh Ekanki ka Saransh aur Uddeshya: प्रस्तुत एकांकी महाभारत की एक सांझ महाभारत
महाभारत की एक सांझ एकांकी का सारांश और उद्देश्य - Mahabharat ki Ek Saanjh Ekanki ka Saransh aur Uddeshya
महाभारत की एक सांझ एकांकी का सारांश
प्रस्तुत एकांकी महाभारत की एक सांझ महाभारत की कथा पर आधारित है। भारत भूषण अग्रवाल का कहना है कि महाभारत में पांडव और कौरवों के बीच लड़ाई हुई थी। इसमें कौरवों को अन्यायी और अत्याचारी बताया गया है और पांडवों को न्यायी और धार्मिक। दुर्योधन इस बात का खंडन करते हुए धर्मराज युधिष्ठिर से तर्क कर कहता है कि यदि वह अन्यायी होता तो युद्ध में भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा आदि उसके पक्ष में कैसे युद्ध करते ? जब युद्ध में कौरव पक्ष के प्राय: सभी सेनापति मारे जाते हैं तब दुर्योधन बुरी तरह आहत होकर सरोवर में छिप जाता युधिष्ठिर और भीम आदि उसे बाहर आने के लिए चुनौती देते हैं। पर वह अपनी रक्षा के लिए तर्क करता है। वह उनकी ललकारों की परवाह नहीं करता। अंत में वह जल से बाहर निकल आता है और उन्हें मारने के लिए कहता है। युधिष्ठिर निहत्थे पर वार नहीं करना चाहते। उसे अस्त्र-शस्त्र भी दिया जाता है। भीमसेन और दुर्योधन में भयंकर गदायुद्ध होता है। अंत में श्रीकृष्ण के इशारे से भीमसेन दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करते हैं, और वह आहत होकर गिर जाता है।वह युधिष्ठिर से कहता है कि यह स्वार्थ की लड़ाई है, आत्म प्रवंचना है। तुम बड़े निष्ठुर हो ठीक है मुझे मरने दो। तुम राज्य सिंहासन पर बिराजो | मुझे कोई आपत्ति नहीं, कोई पश्चाताप नहीं बस,एक दुःख है कि मेरे पिता अंधे क्यों हुए थे ? यह कहते हुए उसके प्राण उड़ जाते हैं और नाटक की समाप्ति होती है।
महाभारत की एक सांझ एकांकी का उद्देश्य
आलोच्य एकांकी महाभारत की एक सांझ में भारत भूषण अग्रवाल का कहना है कि दुर्योधन अत्यधिक वाक्पटु है। वह अपनी वाक्पटुता के द्वारा पांडवों को अधर्मी और अन्यायी कहता है । सरोवर से बाहर निकलने के लिए युधिष्ठिर और भीम उसे ललकारते हैं। उसे कायर, डरपोक कहते हैं। अंत में वह अपने आपको युद्ध के लिए प्रस्तुत करता है भीमसेन और दुर्योधन के मध्य भीषण गदायुद्ध होता है। श्रीकृष्ण के संकेत से भीम उसकी जाँघ पर प्रहार करके उसे जमीन पर गिरा देता है। इसप्रकार पांडवों की जीत होती है और कौरवों की हार।
इस एकांकी का मूल उद्देश्य कौरवों के पक्ष को न्याय दिलाना है। एकांकीकार सोचते हैं कि कौरव पक्ष उतना अधिक कुत्सित और कमजोर नहीं था जैसा दर्शक सोचते हैं। लेखक ने दुर्योधन को न्यायी बताने का प्रयास किया है। दुर्योधन के पक्ष में ही समस्त न्यायी वीरों ने लड़ाई की थी। इसलिए वह न्याय और धर्म की लड़ाई लड़ रहा था। इसलिए इतिहासकारों ने पांडवों की प्रशंसा की है और कौरवों की निन्दा। अतः दुर्योधन और युधिष्ठिर के बीच तर्क-वितर्क को हेय सिद्ध करने का उद्देश्य है। अंत में दुर्योधन का पतन होता है और पांडव पक्ष विजयी होता है।
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