खंडकाव्य की परिभाषा, लक्षण और तत्व बताइए। खंडकाव्य, प्रबंधकाव्य का लघु रूप है। इसमें जीवन के किसी एक अंग, घटना या प्रसंग का वर्णन होता है। यह वर्णन अप
खंडकाव्य की परिभाषा, लक्षण और तत्व बताइए ।
खंडकाव्य की परिभाषा: खंडकाव्य, प्रबंधकाव्य का लघु रूप है। इसमें जीवन के किसी एक अंग, घटना या प्रसंग का वर्णन होता है। यह वर्णन अपने आप में पूर्ण होता है। खंडकाव्य में महाकाव्य की तरह संपूर्ण जीवन की कथा प्रस्तुत नहीं की जाती है, बल्कि उसमें किसी एक घटना या किसी एक पहलू की मार्मिक कथा प्रस्तुत की जाती है। इसमें जीवन की पूर्णता अभिव्यक्त नहीं होती है। यह प्रबंधकाव्य का एक भेद है।
खंडकाव्य के लक्षण (Khand Kavya ke Lakshan)
- यह एक प्रबंधकाव्य का प्रकार हैं।
- इसमें जीवन के किसी एक मार्मिक पक्ष का चित्रण सीमित रूप में होता है।
- खंडकाव्य का कलेवर लघु होता है।
- इसका कथानक संक्षिप्त होता है।
- इसमें कथा - संगठन आवश्यक है।
- खंडकाव्य अपने आप में संपूर्ण होता है।
- इसमें प्रासंगिक कथाओं का प्रायः अभाव होता है।
- खंडकाव्य में चरित्र-चित्रण, वातावरण आदि की योजना संक्षिप्त रूप में होती है।
- खंडकाव्य में सर्ग विभाजन अनिवार्य नहीं होता।
- महाकाव्य की तरह खंडकाव्य का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति है।
- खंडकाव्य में एक ही रस की प्रधानता होती है। अन्य रस सहायक रूप में संक्षेप में आते हैं।
- मंगलाचरण और आशीर्वचन इसमें आवश्यक नहीं है।
खंडकाव्य के तत्व (Khand Kavya ke Tatva)
महाकाव्य की तरह खंडकाव्य के भी सात तत्त्व होते हैं। लेकिन खंडकाव्य में ये तत्त्व महाकाव्य की तरह विस्तृत रूप में नहीं रहते, बल्कि संक्षिप्त रूप में रहते हैं । जिनका विवेचन निम्न प्रकार से हैं :-
1) कथावस्तु :-
महाकाव्य की कथावस्तु में समग्र जीवन का वर्णन होता है और खंडकाव्य मेंजीवन के किसी एक अंग या पक्ष का वर्णन किया जाता है। अतः खंडकाव्य की कथावस्तु संक्षिप्त होती है। किंतु यह अपने आप में संपूर्ण और प्रभावशाली होती है। इसमें एक ही मुख्यकथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं का प्रायः अभाव रहता है। इसमें प्रासंगिक कथाएँ होती भी हैं, तो मुख्य कथा को स्पष्ट करने के लिए। इसकी कथा संगठित होती है। इसकी कथा ऐतिहासिक और काल्पनिक भी हो सकती है।
2) चरित्र-चित्रण :-
खंडकाव्य के लघु कलेवर में व्यक्ति के संपूर्ण चरित्र-चित्रण के लिए गुंजाइश नहीं रहती है। इसमें कहानी और एकांकी की तरह व्यक्ति के चरित्र के एक अंश की झलक रहती है। इसमें पात्रों की संख्या बहुत कम रहती है। चरित्र-चित्रण में सजीवता, स्वाभाविकता आदि गुण होना चाहिए।
3) संवाद :-
महाकाव्य की अपेक्षा खंडकाव्य के संवाद संक्षिप्त होते हैं। लंबे-लंबे संवादों की यहाँ गुंजाइश नहीं होती। खंडकाव्य के संवाद ऐसे होने चाहिए कि जिससे कथानक को गति मिले। इसके संवाद संक्षिप्त, रोचक, चुस्त, पात्रानुकूल, सरल एवं प्रभावपूर्ण होने चाहिए।
4) देशकाल तथा वातावरण :-
खंडकाव्य में देशकाल तथा वातावरण के वर्णन के लिए अधिक अवसर नहीं होता। फिर भी कवि इसका वर्णन यत्र-तत्र संक्षेप में करता ही है । पात्रों के माध्यम से भी इसे दर्शाया जाता है।
5) रस-वर्णन :- खंडकाव्य के लघु रूप में अनेक रसों का वर्णन नहीं हो पाता है। इसमें एक ही रस प्रमुख रहता है। अन्य रसों का वर्णन प्रसंगवश किया जाता है, परंतु विस्तार से नहीं।
6) भाषा-शैली :- महाकाव्य के समान खंडकाव्य की भाषा भी गरिमामय और उदात्त होती है। इसकी भाषा में सरलता, सजीवता, कलात्मकता, संगीतात्मकता, प्रभावोत्पादकता आदि गुण होना आवश्यक। खंडकाव्य में एक ही छंद का प्रयोग होता है। इसमें प्रसंग के अनुसार छंद परिवर्तन किया जाता है।
7) उद्देश्य :- खंडकाव्य का उद्देश्य महाकाव्य के समान धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति होता है। इसका उद्देश्य जीवन में आदर्श स्थापित करना, राष्ट्रभक्ति और सत्य का उद्घाटन करना आदि भी माना जाता है। लेकिन इसके उद्देश्य में महाकाव्य जैसी भव्यता और गुरूता नहीं होती।
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