कहानी की परिभाषा और तत्व (Kahani ki Paribhasha aur Tatva) उपन्यास के समान कहानी भी अत्यंत लोकप्रिय विधा है। कहानी एक ऐसा आख्यान है जो एक ही बैठक में प
कहानी की परिभाषा और तत्व (Kahani ki Paribhasha aur Tatva)
उपन्यास के समान कहानी भी अत्यंत लोकप्रिय विधा है। हिंदी में कहानी का प्रारंभ अनूदित कहानियों से हुआ । मौलिक कहानी - रचना बाद में शुरू हुई। आधुनिक हिंदी कहानी पर पश्चिम का प्रभाव है। अमरीकी कहानीकार एडगर एलन पो ने कहा है, "कहानी एक ऐसा आख्यान है जो एक ही बैठक में पढ़ा जा सके और पाठक पर किसी एक प्रभाव को उत्पन्न कर सके।" उसमें उन सभी बातों को छोड़ दिया जाता है जो इस प्रभाव को अग्रसर करने में सहायक नहीं होती। वह अपने आप में पूर्ण होती है।
कहानी के तत्व (Kahani ke tatva)
- कथावस्तु
- चरित्र-चित्रण
- परिवेश
- संरचना - शिल्प
- प्रतिपाद्य
कथावस्तु: जैसा कि उपन्यास की चर्चा करते हुए बताया जा चुका है - कथावस्तु का अर्थ है कथा में वर्णित घटना। कहानी में कथावस्तु संक्षिप्त होती है। कथा के विस्तार के लिए इसमें अवसर नहीं रहता। कथावस्तु का आरंभ घटना से किया जा सकता है और साधारण बात से भी। कहानी में किसी ऐसी अनावश्यक बात का वर्णन नहीं होना चाहिए जो मूल कथा से जुड़ी न हो। घटनाओं, स्थितियों और भावों का सांकेतिक रूप में वर्णन करना चाहिए। कल्पना की जगह जीवन के यथार्थ से जुड़ी घटना आज की कहानी में आदर्श समझी जाती है।
चरित्र-चित्रण: कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है। सामान्यतः कहानी में किसी एक प्रमुख पात्र के इर्द-गिर्द सारी घटना घूमती है। उपन्यास में जहाँ चरित्र के विकास के लिए पर्याप्त अवसर रहता है, वहाँ कहानी में सांकेतिक रूप से चरित्र- चित्रण की आवश्यकता होती है। कहानी के मूल भाव को लेकर ही चरित्र-चित्रण किया जाता है। सफल कहानीकार अपने पात्रों का पूरा चरित्र संक्षेप में ही निर्मित करते हैं।
कहानीकार चरित्र-चित्रण के लिए अनेक विधियाँ अपनाता है। कभी वह पात्रों के कार्यों अथवा विचार से उनके चरित्र को उभारता है, तो कभी पात्रों के पारस्परिक वार्तालाप अथवा एक-दूसरे के बारे में व्यक्त विचारों के द्वारा भी चरित्र चित्रण करता है। कभी- कभी लेखक स्वयं भी पात्रों के गुण-दोषों को बताता है। इनके अलावा चरित्र-चित्रण की कुछ और विधियाँ भी हो सकती हैं।
परिवेश: कहानी किसी स्थान विशेष और समय विशेष से संबंधित होती है। इन्हीं से परिवेश का निर्माण होता हैं। कहानी में उचित स्थान तथा काल का वर्णन सजीवता लाता है। यदि कहानी की घटनाएं गाँव में घटित हुई हैं, तो परिवेश का चित्रण करते हुए इस बात को ध्यान में रखना होगा कि उसकी विशिष्टता उभर कर आ सके। कहानी में लंबे-चौड़े विवरण का स्थान नहीं रहता, इसलिए कहानीकार थोड़े में कहानी के अनुकूल परिवेश का चित्रण करता है। परिवेश के स्वाभाविक चित्रण के लिए यह जरूरी है कि कहानीकार जिस स्थान और काल की घटना को ले, उसके बारे में उसे सही जानकारी हो। इसके अभाव में कहानी में अस्वाभाविकता आ जाएगी।
कहानी की संरचना शिल्प
कहानी की शैली: कहानी लिखने का जो ढंग रचनाकार अपनाता है उसे शैली कहते हैं। प्रत्येक कहानीकार अपने ढंग से कहानी लिखता है, इसी कारण कहानी की शैली में विभिन्नता रहती है। विषयवस्तु और लेखक की अभिरुचि के अनुसार भी कहानी की शैली भिन्न हो सकती है । उदाहरण के लिए व्यक्तिगत रुचि के अनुसार प्रेमचंद ने प्रायः बाह्य घटनाओं पर आधारित वर्णनात्मक कहानियों की रचना की है, जबकि जैनेन्द्र और अज्ञेय ने मनोविश्लेषण को कहानी का आधार बनाया है।
कहानी का संवाद
कहानी के पात्र आपस में जो बातचीत करते हैं उन्हें संवाद कहते हैं। संवादों से कहानी आगे बढ़ती है। उदाहरण के लिए चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' की कहानी 'उसने कहा था' में कहीं-कहीं वार्तालाप ही कहानी को आगे बढ़ाते हैं। इसी प्रकार जयशंकर प्रसाद की कहानी 'आकाशदीप' की कथा संवादों और वार्तालाप के माध्यम से आगे बढ़ती है। सफल कहानीकार पात्रों के अनुकूल संवादों का आयोजन करता है। यदि एक अनपढ़ पात्र शिक्षित की तरह बोलने लगे तो इसमें अस्वाभाविकता आ जाएगी। काल और स्थान के अनुसार पात्रों के संवादों में भी परिवर्तन होता है। यदि कहानी ऐतिहासिक है और स्थान राजस्थान है तो कहानी के पात्र उसी स्थान के अनुकूल वार्तालाप करेंगे। यदि कहानी लखनऊ से संबंधित है तो पात्रों के वार्तालाप में वहाँ की भाषा की विशिष्टता का प्रयोग स्वभावतः होगा।
कहानी की भाषा
भाषा के द्वारा कहानीकार कहानी में सजीवता, स्वाभाविकता और रोचकता ला सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि कहानीकार का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो। कहानी में जहाँ लेखक अपना विचार रखता है- वहाँ उसकी अपनी भाषा होगी। लेकिन जब कोई बात पात्रों के द्वारा कहलवाई जाए, तब पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग आवश्यक है। कहानी की भाषा सरल, सुबोध और बातचीत के रूप में होनी चाहिए। कठिन भाषा का प्रयोग कहानी समझने में बाधा उत्पन्न करता है।
रोज कहानी का प्रतिपाद्य / उद्देश्य
कहानी के द्वारा लेखक जो संदेश देना चाहता है, उसे प्रतिपाद्य कहते हैं। सफल कहानी कथावस्तु, पात्र, परिवेश, शिल्प आदि तत्वों से निर्धारित नहीं होती, बल्कि उसकी सफलता गंभीर उद्देश्य पर निर्भर होती है। किसी कहानी को समझने के लिए यह जरूरी है कि उसके प्रतिपाद्य को समझें। इसके लिए प्रथमतः कहानी को समझें, फिर उसमें निहित संदेश को पहचानें और अंत में कहानी की विशिष्टता को पहचानने का प्रयास करें। इस पाठ्यक्रम में आप जिन कहानियों का अध्ययन करेंगे उनके कथासार तथा विश्लेषण के अंतर्गत हमने कहानी के कथ्य और प्रतिपाद्य को बताने का प्रयत्न किया है। उपन्यास और कहानी के तत्वों के अध्ययन के आधार पर आप इन दो प्रमुख विधाओं के अंतर को आसानी से पहचान सकते हैं:
विषय के आधार पर कहानी के भेद (प्रकार)
- घटना प्रधान
- वातावरण प्रधान
- चरित्र प्रधान
- ऐतिहासिक
- मनोवैज्ञानिक
- सामाजिक
1) घटना प्रधान कहानियाँ: वे कहानियाँ हैं जिनमें घटना मुख्य है अर्थात् घटनाओं के माध्यम से कहानी आगे बढ़ती है। उदाहरण के लिए प्रेमचंद की 'नमक का दारोगा घटना प्रधान कहानी है।
2) वातावरण प्रधान: जब किसी कहानी को पढ़ने के बाद हमें ऐसा लगे कि जैसे कि पूरी कहानी में वातावरण ही हावी है, तब उसे वातावरण प्रधान कहानी कहते हैं । उदाहरण के तौर पर आप 'शतरंज के खिलाड़ी को देख सकते हैं। यह वातावरण प्रधान कहानी है।
3) चरित्र प्रधान: ऐसी कहानी जिसमें चरित्र का प्रभाव महत्त्वपूर्ण हो अर्थात् कहानी को पढ़ने के बाद आप महसूस करें कि लेखक ने पात्र के चरित्र को उभारने के लिए ही कहानी लिखी है, उसे चरित्र प्रधान कहानी कहते हैं। गुलेरी जी की 'उसने कहा था' में लहनासिंह के चरित्र को उभारा गया है। इसे चरित्र प्रधान कहानी कह सकते हैं।
4) ऐतिहासिक कहानी: ऐसी कहानी जो इतिहास की घटनाओं से संबंधित हो, ऐतिहासिक कहानी कही जाती है। जैसे प्रेमचंद की 'शतरंज के खिलाड़ी'।
5) सामाजिक कहानी: जिन कहानियों में परिवार और समाज की समस्याओं को प्रमुखता दी जाती है, उन्हें हम सामाजिक कहानियाँ कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर प्रेमचंद की 'अलग्योझा' तथा 'ठाकुर का कुआँ कहानियों को देख सकते हैं। ये सामाजिक कहानियाँ हैं।
6) मनोवैज्ञानिक कहानी: जिन कहानियों में मानव मन को प्रमुखता दी गयी हो अर्थात् पात्रों के अंदर उठने वाले भावों-विचारों को व्यक्त किया गया हो, उन्हें मनोवैज्ञानिक कहानी के अंतर्गत रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए यशपाल की 'ज्ञान दान', 'अभिशप्त' और जैनेंद्र की कहानी 'पाजेब' आदि।
COMMENTS