डाक बंगला उपन्यास की नायिका इरा का चरित्र चित्रण: कमलेश्वर का द्वितीय उपन्यास 'डाक बंगला' की नायिका इरा है। इस उपन्यास में आरंभ से लेकर अंत तक उसके अ
डाक बंगला उपन्यास की नायिका इरा का चरित्र चित्रण
कमलेश्वर का द्वितीय उपन्यास 'डाक बंगला' की नायिका इरा है। इस उपन्यास में आरंभ से लेकर अंत तक उसके अकेलेपन का वर्णन है। एक तरह से आत्मकथनात्मक शैली में लिखे गये इस उपन्यास में नायिका इरा के जीवन में कई पुरूष आते हैं और फिर भी वह अकेली बन जाती है।
भावुक एवं संवेदनशील- बचपन में इरा एक अबोध, अलहड़ बालिका थी। कॉलेज जीवन तक आते आते उसका व्यक्तित्व निखरता चला जाता है। और उसका सौंदर्य भी बढ़ने लगता है। कॉलेज जीवन में वह सपनों के राजकुमार को देखती है और उसी को लेकर नाटक लिख डालती है। उसकी यही भावूकता आगे चलकर उसके जीवन को बदल देती है।
साहसी प्रेमिका- कॉलेज जीवन में नाटक में काम करते समय इरा के जीवन में विमल आ जाता है जो नाट्य क्षेत्र के लिए समर्पित युवक है। वह विमल की तुलना अपने सपनों के राजकुमार से करती है और वह विमल को लेकर बड़े-बड़े सपने देखती हैं। उसके साथ प्यार करने लगती है। जब वह देखती है कि उसके घरवालों का इस शादी के प्रति रूख अच्छा नहीं है तो वह उसके साथ भाग जाती है। शक के कारण विमल इरा को छोड़कर चला जाता है।
मजबूर- विमल जब इरा को छोड़कर चला जाता है तो मजबूर होकर इरा बतरा के घर में ही रहने चली जाती है। एक दिन बतरा की पत्नी आ जाती है और हमेशा शांत रहने वाला बतरा खिल उठता है। लेकिन जब वह चली है तो उसे बताता है कि वह उसकी पत्नी नहीं है। वह आश्चर्य में पड़ जाती है और बतरा के आंसू देखकर भावुकता में बहकर उसे समर्पित हो जाती है। लेकिन जैसे ही उसकी जरूरत समाप्त हो जाती है वह उसे घर से निकाल देता है।
पुरुषों को आकर्षित करने वाली नौकरी से निकाल दिये जाने के कारण विवश बनी इरा पुरूषों को आकर्षित करने लगती है। वह उसके जीवन में आये हर पुरुष से कहती है कि वह उसके जीवन में आया पहला पुरुष हैं। वह बताती है -
जब- जब, जो भी मेरी जिंदगी में आया, उसने जाने-अनजाने, घुमा-फिराकर या फिर सीधे-सीधे हमेशा यही जानने की कोशिश की कि मैंने पहले किसी से प्यार तो नहीं किया। पुरुष का यही सबसे बड़ा संतोष है। और मैंने अपने हर प्रेमी से यही कहां है कि तुम मेरी जिंदगी में पहले हो, तुम प्रथम हो ! यह खूबसूरत फरेब मैं करती रही हूँ। इसके अलावा मैं और कुछ कह भी नहीं सकती थी। मैं हर पुरुष यही चाहती रही हूँ की वह मुझे अपना अंतिम प्यार दे, मेरे बाद उसकी जिंदगी में कोई न हो।
अर्थात यहाँ वह पुरुष के प्यार की प्यासी स्त्री के रूप में भी हमारे सामने आती है।
आर्थिक विवशता: इरा के जीवन से बतरा चले जाने के बाद उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। और वह मजबूर हो कर अधेड़ उम्र के डॉ. चंद्रमोहन की बीबी बन जाती है। जिसे दो बच्चे भी है। वह डाक्टर से हमेशा घृणा करती है। लेकिन मजबूर होकर वह उसके साथ रहती है। जब डॉक्टर चंद्रमोहन की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आर्थिक चिंता कम होने लगती है क्योंकि वे उसके नाम कुछ पैसे छोड़कर मर जाते है।
अस्थिर जीवन जीनेवाली: डॉ. चंद्रमोहन की मृत्यु के बाद इरा के पास जगह स्थिर नहीं रह पाती है। वह सोलंकी जैसे कई पुरुषों के सम्पर्क में आ जाती है परंतु उसे सच्चा प्यार नहीं मिल पाता और जब तिलक जैसा व्यक्ति उसे मिल जाता है, जो सबकुछ सुनने के बावजूद भी उसे अपनाने के लिए तैयार है, तो वही उसे इन्कार कर देती है।
अकेलापन: आरंभ से लेकर अंत तक इरा अकेली ही है। उसके जीवन में जब विमल आ जाता है तो सबकुछ त्यागकर वह उसके साथ भाग निकलती है। वह जब शक के कारण उसे छोड़ देता है तो अकेली इरा बतरा का हाथ पकड़ लेती है। बतरा भी जब उसे घर से निकाल देता है तो अकेलेपन से बचने के लिए डाक्टर चंद्रमोहन जैसे अधेड़ से शादी कर लेती है। लेकिन डॉक्टर चंद्रमोहन की मौत के बाद भी वह अकेली ही पड़ती है सोलंकी जैसे कई पुरुष उसके जीवन में आकर भी वह अकेली ही रहती है।
इस प्रकार एक अस्थिर जीवन जीनेवाली इरा को हर एक पुरुष डाकबंगले की तरह अपना लेता है और छोड़ देता है। एक भावुक प्यार की प्यासी आर्थिक दृष्टि से विवश, अकेली, अस्थिर जीवन जीने वाली स्त्री के रूप में इरा का चरित्र-चित्रण किया गया है।
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