चप्पल' कहानी के मुख्य पात्र (रंगय्या) का चरित्र चित्रण कीजिए। प्रस्तुत कहानी चप्पल का प्रमुख पात्र रंगय्या है जो पेशे का ईमानदार और कुशल है। पचास सालो
चप्पल' कहानी के मुख्य पात्र (रंगय्या) का चरित्र चित्रण कीजिए।
प्रस्तुत कहानी चप्पल का प्रमुख पात्र रंगय्या है जो पेशे का ईमानदार और कुशल है। पचास सालों से वह चप्पल-जूते की सिलाई का काम करते हुए अपनी जीवन की गाड़ी को चलाये जा रहा है, परिस्थितियों की मार को सहते हुए भी रंगय्या हमेशा सुन्दर भविष्य की कल्पना करता है। और अन्य लोगों की बुरी आदतों से अपने को बचाए रखने में सफल है। रंगय्या के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है :- (1) पुत्र प्रेम, (2) शिक्षा प्रेमी, (3) गुरुभक्त, (4) भविष्य के प्रति जागरुक, (5) साहसी, (6) कर्मठ और (7) गुदड़ी का लाल।
(1) पुत्र प्रेम: रंगय्या में पुत्र प्रेम का अपार सागर लहराता दिखाई पड़ रहा है। पांच पुत्रों के मरने के बाद, उसका छठवां पुत्र रमण जिसके पैदा होते ही पत्नी का स्वर्गवास हो गया, एक- मात्र उसके बुढापे का सहारा है जिसे वह बड़ी मेहनत के साथ पैसे कमाकर पढ़ा-लिखा देना चाहता हैं। स्वयं कष्ट सहकर भी उसकी खुशियों के लिए पैसे जमा करता है। बुढापे में जब उसे आराम की जरुरत हैं, तब भी वह अपने पचास साल पुराने काम को एक ही जगह बैठकर चलाये जा रह है। उदहारण- "वह चाहता है कि उसका बेटा खूब पढ़े, बड़ा आदमी बन जाए और उसके कुलवालों में अच्छा नाम कमाए।"
(2) शिक्षा प्रेमी: रंगय्या यद्यपि पढ़ा-लिखा नहीं है, फिर भी वह शिक्षा को जीवन का प्रधान गुण मानता है। इसका मानना है कि उसका लड़का पढ़-लिखकर ही बड़ा आदमी बन सकता है और तभी उसके कुल में उसका नाम रोशन हो सकेगा। वह विद्यालय को स्वर्गधाम और गुरु को भगवान् मानता है, इसीलिए उसके मन में गुरु को चरण छूकर साष्टांग प्रणाम करने की इच्छा जागृत होती है। उदहारण - रंगय्या के "मन में आया कि एक बार उनके सामने जाकर साष्टांग प्रणाम किया जाए।"
(3) गुरुभक्त: यह विशेषता रंगय्या में कुछ इस प्रकार से भरी दिखाई पड़ती है कि वह अपना प्राण दे देता है किन्तु गुरु की चप्पल को जलने से बचा लेता है। इतना ही नहीं, वह गुरु की चप्पलो को अपनी चमड़ी उतारकर भी सिलने से न हिचकने की बात कहता है। उदाहरण "मै अपना चमड़ा उतार कर चप्पल बना के दूंगा, फिर भी आपका ऋण नहीं चुका सकूँगा सा'ब "
(4) भविष्य के प्रति जागरुक: रंगय्या भविष्य प्रति जागरुक है। वह खुद नहीं पढ़ सका जिसके कारण पचास सालों से जूते चप्पलों की सिलाई ही करता रहा. किन्तु लड़के को पढ़ाने लिखाने के लिए मास्टर साहब के पास एक-एक पैसा बचाकर जमाकर रहा है। उसका लड़का मास्टर साहब के घर ही रहकर पढ़ता है। इसलिए उस पर जो खर्च पड़ेगा, आगे भी न जाने क्या होगा अब वह स्वयं बूढ़ा हो चुका है, उसकी कमर झुक गयी है ऐसे में उसको लड़के के भविष्य की चिंता है और मास्टर साहब को अपना सब कुछ समझ कर दो सौ चार रुपया जमा कर दिया है। "तरह- तरह के विचार उसके मन में उठने लगे। रंगय्या अपने बच्चे की याद करके बहुत खुश हुआ। जाने वह पढ़-लिखकर कितना बड़ा आमा हो जाएगा। अगले साल दूसरी में... उसके बाद तीसरी में... फिर चौथी ... पाँचवी ... ।"
(5) साहसी: रंगय्या जब झोपड़ी में आग लगने की बात सुना, तो उसके पैर के तले की जमीन खिसक गयी। क्योंकि उसमें मास्टर साहब की चप्पले रखी हुई थी। वह दरवाजे को धकेल कर अंदर घुस गया, उसे आग की कोई परवाह नहीं थी जबकि झोपड़ी से भीषण लपटे उठ रही थी और आसमान को छू रही थी, वह स्वयं जलकर भी चप्पलों को बचाने में सफल भी हुआ। 'रंगय्या के प्राणों का निकलना अगर किसी ने देखा हो तो उन चप्पलों ने ही ! बस !"
(6) कर्मठ: कार्य कुशल रंगय्या पचास सालों से एक ही जगह बैठकर एक ही काम करते रहा। कभी भी हार नहीं माना, अब भी जब वह बूढ़ा हो गया है। उसका शरीर जर्जर हो गया है तब भी टायर सिलने, जूतों में नाल ठोकने का कठिनाई से भरा काम करता ही जा रहा है। उसकी चप्पल को सिलकर नया बनाने की कुशलता के लिए वह विख्यात था। वह मास्टर साहब की टूटी- फूटी, दादा परदादा के जमाने की चप्पल को भी नया और चमकदार बना दिया।
(7) गुदड़ी का लाल: रंगय्या विषम परिस्थिति में भी अपनी महानता को बनाये रखने वाला एक महापुरुष था। वह जिस परिवेश और परिस्थिति में रहता था, उसमें तो जीना दूभर था किन्तु उसपर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, उसके विचार ही उसको महान बना देते हैं, वह बदबूदार नाले के पास वाले थियेटर के पास रहता था चारों तरफ चमड़े के टुकड़े और पुराने टायर के चीथड़े बिखरे पड़े थे। वहाँ के सभी लोग शराब पीते थे और गंदा रहते थे किन्तु रंगय्या पर इसका कोई असर नहीं था।
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