चप्पल' कहानी के आधारपर मास्टर साहब का चरित्र चित्रण कीजिए। मास्टर साहब के चरित्र-चित्रण में कहानीकार ने उन सभी विशेषताओं को बड़ी बारीकी से अनुस्यूत कि
चप्पल' कहानी के आधार पर मास्टर साहब का चरित्र चित्रण कीजिए।
मास्टर साहब का चरित्र चित्रण: मास्टर साहब के चरित्र-चित्रण में कहानीकार ने उन सभी विशेषताओं को बड़ी बारीकी से अनुस्यूत किया है जो एक सच्चे गुरु के लिए अपेक्षित होता है। बोली-भाषा, स्वरुप संरचना से लेकर आचार-व्यवहार सभी पर दृष्टिपात करने से यही स्पष्ट होता है कि कहानीकार ने जैसा देश-वैसा भेष का ख्याल तो रखा ही है, साथ ही साथ उन्होंने मास्टर साहब द्वारा गुरु के महिमा मंडित स्वरुप को चित्रित किया है। मास्टर साहब के चरित्र की विशेषताओं को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है।
(1) वेश-भूषा: चूंकि 'चप्पल' रचना तेलगू भाषा से अनुदित है, अर्थात कहानी में तेलगू वेश- भूषा के अनुरूप जैसे मास्टर होने चाहिए वैसा ही देखने को मिल रहा है। उनका स्वरुप देखने से ही उनके मास्टर होने का आभास सजीव रूप से होने लगता है । उदहारण देखिये- "रंगय्या का हृदय कृतज्ञता से भर गया। पाठशाला चलाने वाले उस मास्टर का रूप आँखों के सामने घूम गया - गोरा-गोरा शरीर, सिर पर छोटी-सी चोटी, मस्तक पर भस्म की रेखाएं, चंदन का तिलक, धोबी की धुली हुई धोती, कंधे पर खादी की दुशाला।"
(2) उदार हदय: मास्टर का हृदय उदार और दूसरों के प्रति सहृदय होना चाहिए। कहानीकार ने मास्टर साहब में इस विशेषता को कूट-कूटकर भर दिया है। वे रंगय्या जैसे, सहज साधारण, चप्पल बनाने वाले को देखते हैं तो उसके सामने किसी प्रकार का बड़प्पन नहीं दिखलाते बल्कि बड़ी उदारता से उससे पूछते हैं कि- "कौन ? रंगय्या? कैसे हो? कब आये यहाँ ? " ऐसा लगता है जैसे मानो उनके एक-एक प्रश्न से रस टपक रहा हो और रंगय्या कोई और नहीं बल्कि उनका कोई ख़ास हो।
(3) बच्चों के प्रति प्रेम: मास्टर साहब को ऐसा होना चाहिए कि वे विद्यालय के सभी बच्चों को अपने बच्चे से भी अधिक प्रेम-भावना से देखें। रंगय्या के देखकर, मास्टर साहब को यह समझते टेर नहीं लगी कि रंगय्या निश्चित रूप से अपने बेटे रमण से मिलने आया है, उस समय वे जिस भाव से रमण को सम्बोधित करते दिखाई पड़ते हैं। उससे उनकी यह विशेषता सहज ही उजागर हो जाती है । उदाहरण देखिए "वह देखो रमण ! अरे रमण ! इधर आ !" ऐसा लगता है जैसे रमण उनके अपने बच्चे से भी उन्हें प्यारा है।
(4) सफल गुरु: एक सफल गुरु को ऐसा होना चाहिए कि वे अपने गुरूत्व के अनुकूल विद्यार्थियों को उनका पाठ सिखाए और उसमें ज्ञान का प्रकाश फैलाए। कहानी में मास्टर साहब एक टूल पर बैठकर बच्चों को कुछ कंठस्थ कराते दर्शाते गये हैं। वे बड़ी निष्ठा से बच्चों को वह सब कुछ सिखा देना चाहते हैं, जो उनके लिए आवश्यक है । उदाहरण देखिए "मास्टर साहब एक स्टूल पर बैठे-बैठे बच्चों से कुछ कंठस्थ करवा रहे थे। उनके हाथ में पेद्द बाल शिक्षा (तेलगू की प्रथम पुस्तक) थी । बोलने वालों में रमण भी था। "
(5) बाल मनोविज्ञान का ज्ञाता: सच्चा गुरु वही होता है जो कक्षा के सभी विद्यार्थियों की मानसिकता को अच्छी प्रकार से समझता है, वह कक्षा के कमजोर और होशियार बच्चों को उनकी योग्यता के अनुरूप ही सब कुछ सिखाने की कोशिश करता है। कहानी में मास्टर साहब को रमण के होशियार होने का ज्ञान पूर्णरूपेण है। इसीलिए वे रंगय्या से कहते हैं कि "वह तो बहुत अच्छा पढ़ रहा है। लड़का बड़ा होशियार है। अब पेद्द बाल शिक्षा पढ़ने लगा है। मास्टर साहब ने वह किताब दिखा दी, जो उनके हाथ में थी।
(6) सम्मान के प्रति उदासीन: शिक्षक को सम्मान के प्रति उदासीन रहकर बच्चों को पूरी लगन और तन्मयता से शिक्षण कार्य करना चाहिए क्योंकि मोहन राकेश ने लिखा है कि- "सम्मान प्राप्त होने पर, सम्मान के प्रति प्रगट की गई, उदासीनता व्यक्ति के महत्व को बढ़ा देती है।" रंगय्या जब मास्टर साहब का झुककर पाँव पकड़ता है तो बड़े की सहज भाव से कहते हैं कि "तुम यह क्या कर रहे हो रंगय्या ? कोई देखेगा तो अच्छा नहीं होगा।”
(7) दायित्व बोध: सच्चा गुरु अपने दायित्व को अच्छी प्रकार से समझता है। रमण मास्टर साहब के घर रहकर पढ़ रहा था। वे उसको किसी प्रकार की कमी नहीं करते थे। वे एक पिता- पुत्र के प्रेम की बारीकी को समझते हैं। रंगय्या को घर जाने के लिए कहते समय उसे समझाते हैं की-"अच्छी बात है। अब तुम जाओ। रमण तुम्हारा बच्चा नहीं, मैं उसे अपना बच्चा समझता हूँ। तुम उसकी चिंता न करो। उसका सारा भार मुझपर छोड़ दो। इस विशेषता के संदर्भ में मोहन राकेश कहते हैं कि- "योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ऐसा ही होना चाहिए एक शिक्षक को, जिस विशेषता को कहानीकार ने मास्टर साहब में दर्शाने में सफलता प्राप्त की है।
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