भोर का तारा एकांकी का उद्देश्य: आधुनिक काल के प्रमुख नाटककार 'जगदीशचन्द्र माथुर द्वारा रचित 'भोर का तारा' एकांकी एक उच्च उद्देश्य को लेकर लिखी गई है औ
भोर का तारा एकांकी का प्रतिपाद्य / उद्देश्य
भोर का तारा एकांकी का उद्देश्य: आधुनिक काल के प्रमुख नाटककार 'जगदीशचन्द्र माथुर द्वारा रचित 'भोर का तारा' एकांकी एक उच्च उद्देश्य को लेकर लिखी गई है और यह उद्देश्य है- संकट के क्षणों में राष्ट्र के पौरुष को जगाना एक कवि का प्रथम कर्तव्य है। अर्थात जो कवि प्रेम आदि व्यक्ति - सुख के लिए अपनी कविता लिखता है, वही संकट के समय में व्यक्ति - सुख को त्याग कर समष्टि - सुख के लिए जब लिखता है उसी में उसके कवि कर्म की सिद्धि है। अतः 'भोर का तारा' से अभिप्राय है कि एक नए युग का नई भावनाओं का आरम्भ। माधव द्वारा शेखर से आग्रह करना कि वह आक्रमण के समय अपनी कविता राष्ट्र को जगाने के लिए प्रयोग करे तथा शेखर द्वारा मित्र माधव का आग्रह स्वीकार कर ओजमयी कविता का गान करना इस एकांकी में लेखक के उद्देश्य को स्पष्ट कर देता है। इस एकांकी में अपने उद्देश्य को अभिव्यक्त करने के लिए लेखक ने जिस कथा का आधार लिया है वह इतिहास से सम्बन्धित है क्योंकि इसमें पांचवीं शती सन् 455 के आस-पास गुप्त साम्राज्य की राजधानी उज्जयिनी के कवि शेखर का जीवन है। वह अपने अस्त व्यस्त धर में तल्लीन होकर कुछ गाता-गुनगुनाता है और लिखता रहता है। माधव से वार्तालाप करते हुए वह इस ओर भी संकेत करता है कि राजनीतिज्ञ और मन्त्रीलोग संजीदगी से अमीरी, युद्ध और संधि की समस्याओं को हल करने का नाटक करते हैं किन्तु मनुष्य को इन समस्याओं से कभी मुक्त नहीं करते।
इस एकांकी में लेखक ने कला और देश-प्रेम के मध्य संघर्ष उपस्थित कर अन्त में देश-प्रेम को श्रेष्ठ दिखाया है। इसमें एक कवि की कला की उपासना द्वारा प्रेम और मनुष्यता को लेखक ने उच्च शीर्ष पर पहुँचा दिया है। देश की पुकार को लेखक ने कवि की कला से बेहतर माना है। एक कवि का कर्त्तव्य मात्र आश्रयदाता का मनोरंजन करना ही नहीं बल्कि आवश्यकता पड़ने पर अपने कवि-कर्म द्वारा जनता में चेतना का संचार करना भी होता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु लेखक ने इस एकांकी की रचना की है।
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