बंसिरी का चरित्र चित्रण: कमलेश्वरजी का प्रथम उपन्यास एक सड़क सत्तावन गलियाँ की नायिका बंसिरी है। यह उपन्यास बंसिरी और सरनामसिंह के द्वंद्वयुक्त प्रेम
बंसिरी का चरित्र चित्रण - Bansiri ka Charitra Chitran
बंसिरी का चरित्र चित्रण: कमलेश्वरजी का प्रथम उपन्यास एक सड़क सत्तावन गलियाँ की नायिका बंसिरी है। यह उपन्यास बंसिरी और सरनामसिंह के द्वंद्वयुक्त प्रेम को प्रस्तुत करता है। इसमें वेश्या समस्यापर प्रकाश डाला है। उपन्यासकी नायिका बंसिरी के चरित्र को उपन्यासकार ने प्रमुखता दी है।
आर्थिक दृष्टि से विवश - नारी चाहे आधुनिक काल की हो या प्राचीन काल की वह किसी-न-किसी पर निर्भर रहती है और इसी वजह से वह आर्थिक दृष्टि से विवश बन जाती है। उसका समाज में स्थान इसी कारण बहुत कम है। नारी को हमेशा अबला माना जाता रहा है। आधुनिक काल में वह चाहे नौकरी करने लगी हो पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हो, फिर भी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ तो उसे उठानी ही पड़ती है। बंसिरी आर्थिक दृष्टि से विवश है। वह सरनाम नामक लारी ड्राईवर जो एक डाकू भी है, उससे प्यार करती है। वह नाटक में मुख्य नायिका बनने की सोचती है। लेकिन इसी बीच वह बेची जाती है और जिससे वह प्यार करती है उसी सरनाम के द्वारा न पहचानी जाने के कारण अपने दोस्त रंगीले के लिए वह खरीदी जाती है।
वेश्या - जब बंसिरी नाटक मंडली के साथ काम करती है तभी वह नखरा दिखाना आँख मारना सीखती है और जब वह बेची जाती है तो उसे एक वेश्या के रूप में प्राप्त करती है। डाकुओं के पंजेसे छुड़ानेवाले अपने प्रेमी सरनाम को वह प्राप्त नहीं कर पाती है और उसी के दोस्त के पास उसे रखेल के रूप में रहना पड़ता है।
दोहरा व्यक्तित्व - जब बंसिरी सरनाम के दोस्त रंगीले के पास रहने चली आती है तो सरनाम को लेकर उसके मन में द्वंद्व उभरता है। वह उससे प्यार भी करती है और उसी के द्वारा खरीद लिए जाने के कारण उससे घृणा भी करती है। वह सरनाम के साथ ठीक से बातें नहीं कर पाती, उल्टे उसपर सीधे वार किया करती है। स्वयं सरनाम भी उसी प्रकार का व्यक्ति है जो कभी बंसिरी से प्यार करता है तो कभी घृणा । एक डकैती के मामले में बंसिरी रंगीला न उलझ जाए इसलिए न चाहते हुए भी एक झुठा तमाशा खड़ा कर देती है और उनके आश्रय में आये सरनाम को भाग जाने पर और अदालत में दाखिल होने पर मजबुर करती है।
दृढनिश्चयी - बंसिरी एक बार जो बात तय कर लेती है, वह पूरा करके ही दिखा देती है। जब पुलिस के सामने डकैती के मामले में बयान देने का वक्त आता है तो सरनाम के प्रति उसके मन में चाहे जितने विचार आते हैं फिर भी वह कहती है कि वह सरनाम को नहीं पहचानती ।
पश्चातापदग्ध - अंत में वह एक पश्चातापदग्ध नारी के रूप में हमारे सामने आती है। जब डकैती के मामले में रंगी को सजा हो जाती है और सरनाम उसे उसके घर पहुँचाने के लिए आता है तो उसे अपने किये पर पश्चाताप होने लगता है वह सोच में पड़ जाती है- " वह सरनाम को सात साल के लिए जेल जाते हुए देख पायेगी देख भी पायेगी या नहीं, मन कैसा होगा ? पछतावा तो नहीं होगा ? पछतावा कैसा ----।""
बस यह सोचती है पर फाँसा उल्टा पड़ जाता है। जब सरनामसिंह उसे घर छोड़कर चला जाता है और किसी चीज की जरूरत हो तो कहने की बात करता है तो वह रो पड़ती है और सरनामसिंह नहीं समझ पाता कि वह क्यों रो रही है।
निष्कर्ष: इस प्रकार हम यह देखते है कि बंसिरी आर्थिक दृष्टि से विवश नारी, वेश्या, दोहरा व्यक्तित्व, दृढनिश्चयी नारी, पश्चातापदग्ध नारी आदि रूपों में इस उपन्यास में चित्रित हुई है। इस उपन्यास से उसका स्वाभिमान भी साफ झलकता है। कमलेश्वरजी ने एक सामान्य लड़की के चरित्र को कई रूपों में चित्रित किया है।
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