बहादुर का चरित्र चित्रण: कहानी का मुख्य पात्र बहादुर है, इसीलिए कहानी का शीर्षक 'बहादुर' रखा गया है। वह बारह-तेरह साल का है। छोटे कद का मोटा, गोल-मटोल
बहादुर का चरित्र चित्रण - Bahadur Ka Charitra Chitran
बहादुर का चरित्र चित्रण: कहानी का मुख्य पात्र बहादुर है, इसीलिए कहानी का शीर्षक 'बहादुर' रखा गया है। वह बारह-तेरह साल का है। छोटे कद का मोटा, गोल-मटोल है। रंग गोरा है। चेहरा चपटा है। आपने नेपाल के लोगों या पहाड़ी क्षेत्र में रहने वालों को देखा ही होगा, वैसा ही है बहादुर। बहादुर की आँखें छोटी-छोटी हैं, जिन्हें वह जल्दी-जल्दी झपकाता रहता है। उसने सफ़ेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज़ और भूरे रंग के जूते पहन रखे हैं। गले में रूमाल बाँध रखा है। यह वर्णन शब्दों के माध्यम से एक चित्र उपस्थित करता है। बहादुर की आकृति हमारे सामने स्पष्ट हो जाती है, जैसे हम उसे देख रहे हों।
अब उन विशेषताओं को देखें, जिनके कारण बहादुर हमें अच्छा लगता है।
बहादुर बच्चा है। उसमें बचपन का भोलापन भी है और संवेदनशीलता भी। यानी, सुख-दुख का उस पर तुरंत असर होता है। उसके व्यक्तित्व की सभी विशेषताओं का आधार यही संवेदनशीलता है। वह इसीलिए अपने घर से भागता है। उसकी माँ बहुत गुस्सैल थी, उसे बहुत मारती थी- यह बहादुर बुरा लगता था। पीटकर उससे काम नहीं करवाया जा सकता। आप देखेंगे कि वाचक के घर में भी वह काम करने में गलतियाँ तभी करता है, जब उसे पीटा जाता है । उसे न तो अपनी माँ का मारना समझ में आता है, न ही इस परिवार के लोगों का। वह चोरी के झूठे आरोप को भी सहन नहीं कर पाता। वाचक द्वारा पीटे जाने का उस पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, जब बहादुर को थोड़ा-सा भी प्यार मिलता है, तो वह बहुत काम करता है। वह घर के लोगों का सम्मान करता है। निर्मला के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखता है, उसे कोई काम नहीं करने देता। यहाँ तक कि वह निर्मला को माँ की तरह समझने लगता है।
बहादुर ईमानदार है। वाचक के यहाँ वह पूरी ईमानदारी से काम करता है। रिश्तेदार जब उस पर चोरी का आरोप लगाते हैं, तो वाचक कहता है - अरे नहीं, वह ऐसा नहीं है। जब कभी उसने दो-चार आने इधर-उधर पड़े देखे, तो उठाकर निर्मला के हाथ में दे दिए। जब वह वाचक के घर से भागता है, तो कुछ भी लेकर नहीं जाता। यहाँ तक बहादुर मेहनती और हँसमुख लड़का है। उसके आने के बाद वाचक के घर के लोगों को बहुत आराम मिलता है। अब कोई एक तिनका तक इधर से उठाकर उधर नहीं रखता। बहादुर घर के सारे काम करता है- घर की सफाई, कमरों में पोंछा, अँगीठी जलाना, चाय बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ़ करना। इतना काम करने के बाद भी खाना बनाने की ज़िद करता है। बच्चा होते हुए भी रात को सबके सोने के बाद सोता है और सुबह सबसे पहले उठ जाता है; फिर भी वह हमेशा खुश रहता है, हँसता रहता है। उसे छेड़-छेड़कर सब हँसते हैं, लेकिन वह किसी की बात का बुरा नहीं मानता, सबको प्रसन्न रखता है।
आपने बहुत से चुस्त और फुर्तीले बच्चों को देखा होगा। बहादुर वैसा ही है। उसके बारे में एक जगह उल्लेख किया गया है कि वह फिरकी की तरह नाचता रहता था यानी काम के लिए घर में इधर उधर दौड़ता रहता था। वह अपने गाँव में पेड़ों पर चढ़कर चिड़ियों के घोंसलों में हाथ डालकर उनके बच्चों को पकड़ता था और फल तोड़-तोड़कर खाता था। यहाँ, वाचक के घर में भी दातून तोड़ने के लिए तुरंत पेड़ पर चढ़ जाता है।
बहादुर स्वाभिमानी है। किशोर द्वारा पिटाई को तो वह सहन कर लेता है, लेकिन 'सूअर का बच्चा' कहने पर काम करने से मना कर देता है। कोई उसके पिता को गाली दे, यह उससे सहन नहीं होता। उसके स्वाभिमान का पता हमें तब भी लगता है, जब निर्मला केवल उसी की रोटियाँ बनाना बंद कर देती है। अपनी रोटियाँ खुद न बनाने के कारण उसे निर्मला से मार भी खानी पड़ती है, लेकिन वह इस भेदभाव को सहन नहीं कर पाता और बिना भोजन किए सो जाता है।
उसके स्वाभिमान का संकेत तब भी मिलता है, जब वाचक उसे चोरी के आरोप के कारण मारता है। वाचक के अलावा सब उसे मारते हैं, पर वह घर से नहीं भागता, क्योंकि उसे विश्वास है कि वाचक उसे चाहता है। लेकिन, जब उसका यह विश्वास टूटता है, तो वह भाग जाता है।
बहादुर में परिवार के प्रति कर्तव्य-बोध भी है। घर से वह भाग आया है, लेकिन उसने घर से अपने संबंध तोड़े नहीं हैं। वह अपनी तनख़्वाह के पैसे माँ के पास भेजने के लिए कहता है। कारण पूछने पर जवाब देता है – माँ-बाप का कर्ज़ा तो जन्म भर भरा जाता है ।
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