अमरकांत का चरित्र चित्रण: अमरकांत ‘कर्मभूमि' का सबसे प्रमुख पात्र है। उपन्यास के शुरू में अमरकांत को स्कूल की फीस न दे पाने वाले एक विद्यार्थी के रूप
अमरकांत का चरित्र चित्रण - Amarkant ka Charitra Chitran
अमरकांत का चरित्र चित्रण: अमरकांत ‘कर्मभूमि' का सबसे प्रमुख पात्र है। उपन्यास के शुरू में अमरकांत को स्कूल की फीस न दे पाने वाले एक विद्यार्थी के रूप में और आगे चलकर धीरे-धीरे उपन्यास की सभी घटनाओं से सम्बद्ध दिखाया गया है। कथा के अंत में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में उसको सफल दिखाकर कथानक को समाप्त कर दिया गया है। इस प्रकार उपन्यास के कथानक का सम्पूर्ण ताना-बाना उसी के चारों ओर गुंथा रहा है। अमरकांत को नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसके चरित्र के गुण-दोषों का वर्णन करते हुए अंत में उसे एक आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
अमरकांत में समाज सुधार की भावना प्रबल थी। संपन्न परिवार में जन्म लेने पर भी वह सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांतों में जीने वाला व्यक्ति है। सकीना से प्रेम करने के कारण पठानिन से तिरस्कृत होकर जब वह काशी छोड़ अज्ञातवास करने चला जाता है, उस समय उसकी बाह्य वेशभूषा भी एक सामान्य व्यक्ति जैसी चित्रित की गयी है। उसके बारे में प्रेमचंद ने लिखा है - "अमरकांत एक साँवला-सा, दुबला-पतला युवक, मोटा, कुरता, ऊँची धोती और चमरौंधे जूते पहने, कंधे पर लुटिया-डोर रखे, बगल में एक पोटली दबाए हुए था।"
अमरकांत की माता का देहांत उसकी अबोधावस्था में ही हो गया था। विमाता ने भी उसकी उपेक्षा की। विवाह के कुछ वर्षों बाद उसकी पत्नी सुखदा की विधवा माँ रेणुका देवी जब काशी में आकर रहने लगी तब उस समय अमरकांत को उससे माता जैसा मृदुल आत्मीय व्यवहार पाकर संतोष हुआ था, किन्तु सकीना के प्रेम में उलझने के कारण नगर छोड़कर भागने से वह आधार भी छिन गया। पिता की विचारधारा से अमरकांत सहमत न था। वह अपनी पत्नी सुखदा के विचारों से भी सहमत न था। अतः पारिवारिक स्नेह की प्राप्ति न होने के कारण अमरकांत की प्रवृत्ति विद्रोह की ओर हो गयी थी।
अमरकांत में सामाजिक न्याय की भावना भी थी। अन्याय के प्रति विद्रोह उसके स्वभाव में था, चाहे मुन्नी भिखारिन की घटना हो या गाँव के जमींदार महंतजी द्वारा किसानों को लगान में छूट देने में आनाकानी का प्रसंग। समाज सुधार के कार्यों में भी अमरकांत की रूचि प्रारंभ से रही है। शोषित और उपेक्षितों के प्रति उसके हृदय में सच्ची सहानुभूति है और उनके उद्धार के लिए वह सरकार से टक्कर लेने में संकोच नहीं करता। इसी निश्छल भावना के कारण वह जहाँ भी जाता है वहां के पीड़ित और उपेक्षित व्यक्ति उसे अपना नेता बनाकर उसके पीछे चलने लगता है।
अमरकांत को सत्य बोलनेवाले लोगों से प्रेम है और पाखण्ड एवं आडम्बर में विश्वास करनेवालों से घृणा थी। अमरकांत कहता है - "मैं जात-पाँत नहीं मानता, माताजी। जो सच्चा है, वह चमार भी हो, आदर के योग्य है, जो दगाबाज, झूठा हो, वह ब्राह्मण भी हो तो आदर के योग्य नहीं। " अमरकान्त गांधीवादी सिद्धांतों का अनुयायी था। सादा जीवन, अन्याय का विरोध, समाज-सेवा, हरिजनों का उद्धार, मानवीयता की भावना आदि उसके जीवन के मूल तत्व हैं।
अमरकांत के जीवन में कई स्थलों पर नैतिक शिथिलता और समझौते का भी दर्शन होता है। कभी-कभी उसने झूठ का भी सहारा लिया है। पठानिन द्वारा सकीना से बातचीत करते हुए पकडे जाने पर वह पठानिन से कहता है कि वह उससे माफ़ी मांगने आया है जबकि सच्चाई यह है कि वह बुढिया की अनुपस्थिति में सकीना से विवाह की बात करने आया था।
अमरकांत उत्तरोत्तर विकास की सीढ़ी पर अग्रसर होता हुआ अपने उद्दिष्ट पथ तक पहुँचने में सफल होता है। वह घर के संकुचित दायरे को तोडकर जब समाज के विशाल क्षेत्र में पदार्पण करता है तो उमंग और उत्साह से भर देता है। सेवा - त्याग का सन्देश लिए वह न्याय की मशाल जलाता है। अन्याय, अन्धकार को दूर करने का प्रयास करता है। उसको मिटाने के लिए वह हर संभव प्रयास करता है और सफलता भी प्राप्त करता है। उसका चरित्र उस विशाल तपस्वी आत्मा की भांति है जो भोग के बंधनों में बंधकर नहीं रहती है, वरन आत्मा का विकास करती है।
समग्र रूप में कहा जा सकता है कि अमरकांत एक आदर्श नवयुवक के रूप में चित्रित किया गया है। उसमें मानव-सुलभ दुर्बलताएं भी हैं, किन्तु उनकी तुलना में देश-प्रेम की भावना, अछूतोद्धार का प्रयत्न, समाज-सुधार, त्याग, कर्म में विश्वास आदि उनके चरित्र की महत्वपूर्ण विशेषता है।
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