पथिक कविता का सार /सारांश - Pathik Kavita Summary in Hindi for Class 11: : प्रस्तुत अंश 'पथिक' शीर्षक खण्ड काव्य से लिया गया है। इस दुनिया के दुःखों स
पथिक कविता का सार /सारांश - Pathik Kavita Summary in Hindi for Class 11
पथिक कविता का सार /सारांश : प्रस्तुत अंश 'पथिक' शीर्षक खण्ड काव्य से लिया गया है। इस दुनिया के दुःखों से विरक्त कवि प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। प्रथम काव्यांश की पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आकाश में बादलों के समूह को देखकर ऐसा लगताहै कि जैसे आकाश में बादल पंक्तिबद्ध होकर हर क्षण एक नया रंग-बिरंगा और निराला वेश धारण कर, सूर्य के सामने थिरक रहेहों या नृत्य कर रहे हो। नीचे सुंदर व मनोहारी नीला समंदर तो ऊपर नीला आकाश है। द्वितीय काव्यांश में कवि कहते हैं कि सागर जोरदार गर्जना कर रहा है और मलय पर्वत से आने वाली शीतल सुगंधित हवा बह रही है और यह सब देखकर हे प्रिय ! मेरा दिल हमेशा साहस व उत्साह से भरा रहता है।
कवि समुद्र की लहरों की सवारी कर विशाल समुद्र के कोने-कोने को देखना चाहते हैं। तीसरे काव्यांश में कवि समुद्र के किनारे खड़े होकर सूर्योदय होता देख रहे हैं। समुद्र की सतह पर उगते हुए सूरज की अधूरी छाया दिखाई दे रही है। उगते हुए सूरज के इस रूप को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है जैसे- सूर्य का बिंब लक्ष्मीजी के स्वर्णमंदिर का एक सुंदर कंगूरा ( मंदिर का शिखर गुंबद ) हो । समुद्र तल पर पड़ने वाली सूरज की सुनहरी किरणों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे लक्ष्मीजी की सवारी अपनी पुण्य–पावन भूमि में लाने के लिए समुद्र ने इस सोने की सड़क का निर्माण किया है।
चतुर्थ काव्यांश में कवि कहते हैं कि समुद्र बहुत ही निडरता से और बड़ी गंभीरता के साथ गर्जना कर रहाहै। कवि कहते हैं कि प्रिय ! तुम इस प्राकृतिक सौंदर्य को अपने हृदय में महससू करो और बताओ कि इससे बढ़कर सुख और आनन्द इस संसार में और कहाँ मिलेगा।
पंचम काव्यांश में कवि कहतेहैं कि आधी रात में जब घना अंधकार पूरे संसार को ढक लेता है तब अंतरिक्ष की छत यानि पूरे आकाश के सुंदर प्राकृतिक दृश्य को देखने के लिए मुस्कराते हुए मुख से इस जगत का स्वामी अर्थात् सूर्य धीमी-धीमी गति से आता है और तट पर खड़ा होकर वह आकाश गंगा के सौंदर्य को निहार कर मीठे-मीठे गीत गाता है।
षष्ठम काव्यांश में कवि कहते हैं कि सूर्य जिस आकाश गंगा के सौंदर्य को निहार कर उसकी सुंदरता के मीठे-मीठे गीत गाता है उसी आकाश गंगा के अद्भुत सौंदर्य से मोहित होकर चंद्रमा भी आकाश में हँस देता है। सभी वृक्ष भी तरह-तरह के फूल पतों से अपने आपको सजा लेते हैं। इस मनमोहक दृश्य को देखकर वो भी चहक उठते हैं। फूलों को देखकर ऐसा लग रहा है मानों वे भी साँस लेते हुए पूरे वातावरण को खुशबू से भर रहे हों।
सप्तम काव्यांश में कवि कह रहा है कि प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को देखकर मेघ भी अपना धैर्य खोकर वनों, उपवनों, पहाड़ों, समतल भूमि, कुंजों पर बरस कर अपने मनोभावों को व्यक्त कर रहे हैं। इस मनोहारी रूप को देखकर कवि भाव-विभोर हो जाता है तथा उसकी आँखें से आँसू बहने लगते हैं। कवि अपनी प्रिया से इस मधुर कहानी को पढ़कर अनुभव करने को कह रहे हैं।
अष्टम काव्यांश में कवि प्रकृति की इस सुंदर प्रेम कहानी को अपने शब्दों में व्यक्त करना चाहते हैं ताकि पूरा संसार प्रकृति की इस प्रेम कहानी को सुन सके और आनंदित हो सके। कवि आगे कहते है कि इस प्रकृति में सदा स्थिर, पवित्र व आनंद देने वाली सुखकारी शांति छाई रहती है और प्रकृति में चारों ओर प्रेम का ही सुंदर राज्य दिखाई देता है। इस प्रकार इस कविता में कवि ने प्रकृति का सुंदर वर्णन किया है।
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