मुंशी तोताराम का चरित्र चित्रण- पचास साल का उम्रवाला मुंशी तोताराम निर्मला उपन्यास का एक पात्र है। पत्नी के स्वर्गवास होने के कारण घर सम्भालने के लिए
मुंशी तोताराम का चरित्र चित्रण - Munshi Totaram Ka Charitra Chitran
मुंशी तोताराम का चरित्र चित्रण- पचास साल का उम्रवाला मुंशी तोताराम निर्मला उपन्यास का एक पात्र है। पत्नी के स्वर्गवास होने के कारण घर सम्भालने के लिए और तीन पुत्रों की देख-रेख करने के लिए पुन: पंद्रह साल की निर्मला के साथ विवाह कर लेता है। वयोभेद अधिक होने के कारण निर्मला को वह पति के रूप में दाम्पत्य सुख दे नहीं सकता। अपनी कमी को दूर करने के लिए वह निर्मला को स्वादिष्ट पदार्थ लाकर खिलाने लगता है और सैर सपाटों में घुमाता रहता है। किन्तु वह पहचानता है कि पत्नी के लिए ये सब चीजें गौण होती हैं।
तोताराम अपने को युवा बनाने के लिए कसरत, तेलमालिश और सिर के बालों को रंगने लगते लगता है। फिर वह तीन चोरों का सामना कर उनको मार भगाने का भी बहाना करता है। निर्मला यह सब पागलपन समझती है और कभी - कभी पति पर उसे दया आकर सोचने लगती है, "वह पाप का प्रयश्चित्त कर रहा है।" निर्मला समझौते में आकर गृहिणी का व्यवहार पूरा सम्हालती रहती है और तोताराम की विधवा बहन और पुत्र मंसाराम, जियाराम और सियाराम के प्रति स्नेह तथा आदर बँटाती है।
निर्मला तोताराम के प्रथम पुत्र मंसाराम से कुछ पढ़ना - लिखना सीख रही तो तोताराम उन दोनों के शील पर शंका करता है। निर्मला से वह कहता है, "दिन में एक ही बार पढाता है या कई बार ?" इस पर निर्मला व्यथित होती है। पिता के इस अनुचित व्यवहार पर मंसाराम के हृदय को धक्का लगता है। पढाई में और खेलों में वह सदा प्रथम रहने पर भी जबरदस्त उसे ले जाकर बोर्डिंग हाउस में छोड़ आता है। मानसिक व्यथा के कारण वह ज्वरग्रस्त होकर मृत्यु की गोद में चला जाता है।
मझला लडका जियाराम के दिल को धक्का लगता है। वह पिता तोताराम से भिडता है और कुछ आवारे लडकों के साथ मिलकर घूमने लगता है। एक दिन आधी रात वह निर्मला के पाँच - छ: हजार रुपये कीमतवाले गहने चुराकर पुलिस के चंगुल में फँस जाता है और वह आत्मघात भी कर लेता है।
छोटा लड़का सियाराम पढ़ना लिखना चाहता है। इस बीच में तोताराम का मन अव्यवस्थित हो जाता है। वह अदालत में भी ठीक जा न पाता है। एक- दो मुकदमों का फैसला उसके विरुद्ध निकलता है। मुकद्दमे न मिलने के कारण आमदनी गिर जाती है। घर के नीलाम होने पर सारा परिवार एक तंग गली के छाटे घर में जा बसता है। निर्मला घर का खर्च कम करने के नियम पर कंजूस बन जाती है। तोताराम को भी पैसे-पैसे के लिए निर्मला पर आधारित होना पडता है। निर्मला छोटे लडके सियाराम को कुछ चीजें लाने के लिए बा -बार दूकान भेजती रहती है जिस पर सियाराम भिडता है। छोटे और अबोध बच्चे का दिल घर के वातावरण से ऊब कर टुकडे हो जाता है। फलत: वह झूटे साधुओं के कुचक्र में फँस जाता है।
तोताराम पूर्णतया आर्थिक, सामाजिक, मानसिक रूप से गिर जाता है। तीनों पुत्रों का छूट जाना उसके लिए नरक से भी कटु लगता है। निर्मला बीमार हो जाती है। तोताराम छोटे लडके सियाराम को ढूँढने के लिए घर से निकल पड़ता है। एक महीना बीत जाता है। कहीं भी लडके का पता नहीं लगता।
थका-मांदा तोताराम एक दिन सन्ध्या समय घर लौटता है। पत्नी निर्मला का शव अन्तिम संस्कार के लिए तैयार रहता है।
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