ममता कहानी की कथावस्तु और उद्देश्य - Mamta Kahani ki Kathavastu aur Uddeshya: प्रस्तुत कहानी ममता की कथावस्तु अत्यंत रोचक एवं संक्षिप्त है। ममता कहानी
ममता कहानी की कथावस्तु और उद्देश्य - Mamta Kahani ki Kathavastu aur Uddeshya
ममता कहानी की कथावस्तु
ममता कहानी की कथावस्तु:- प्रस्तुत कहानी ममता की कथावस्तु अत्यंत रोचक एवं संक्षिप्त है। ममता कहानी की शुरूआत रोहताश्व दुर्ग के मंत्री चूड़ामणि की इकलौती संतान ममता से शुरू हुई है और अंत हुमायूं के नाम पर बना मंदिर तथा ममता का कहीं पर नाम न होने पर होता है। ममता भारतीय सभ्यता के साथ-साथ भारतीय नारी का भी परिचय देती है। वह अपने पिता को शेरशाह द्वारा भेजा गया धन वापिस लौटाने को कहती है जिसका स्पष्ट उदाहरण इस प्रकार मिलता है, "तो क्या आपने म्लेच्छ का उत्कोच स्वीकार कर लिया? पिता जी! यह अनर्थ है, अर्थ नहीं लौटा दीजिए।" ममता अपने पिता से कहती है कि हम ब्राह्मण हैं इतना सोना लेकर क्या करेंगे। ममता के मन में राष्ट्र प्रेम की भावना भी थी इसीलिए तो वह शेरशाह द्वारा भेजा गया प्रस्ताव वापिस भेज देती है। शेरशाह स्त्री वेश में अपने सैनिकों के साथ दुर्ग में प्रवेश करता है तो मंत्री चूड़ामणि इसका विरोध करता है। जिसके चलते उनकी हत्या कर दी जाती है। ममता अपनी जान बचाते हुए वहाँ से भाग निकलती है। काशी के निकट बौद्ध विहार के किसी खंडहर में झोंपड़ी बनाकर एक तपस्वी की तरह रहने लगती है।
कुछ वर्ष पश्चात् मुगल सम्राट हुमायूँ ममता से एक रात के लिए झोंपड़ी में शरण माँगते हैं तो पहले वह मना कर देती है। उसे याद आता है कि यवनों के कारण ही उसके पिता की मृत्यु हुई थी फिर हिंदू धर्म में अतिथि सत्कार का सोचकर उसे आश्रय देती है। परिणामस्वरूप वह अपने सैनिक से उस झोंपड़ी के स्थान पर घर बनवाने का आदेश देता है। अंततः ममता की मृत्यु हो जाती है। हूमायूं का बेटा अकबर उस स्थान पर एक अष्टकोण मंदिर बनवाता है लेकिन उस पर लगाये शिला- लेख पर हूमायूं का नाम होता है, ममता का नाम कहीं पर भी नहीं था। इस प्रकार कहानी की कथावस्तु अत्यंत सुव्यवस्थित एवं नाटकीय है।
प्रस्तुत कहानी का आरंभ ममता के विधवा जीवन से होता है और अंत ममता के नाम का न होना कहानी का उपसंहार है। कथावस्तु में स्पष्टता और घटनाओं की प्रधानता देखने को मिलती है।
ममता कहानी का उद्देश्य
ममता कहानी का उद्देश्य: प्रसाद ने अपनी प्रत्येक कहानी किसी-न-किसी उद्देश्य को लेकर ही लिखी है। जहाँ उन्होंने ममता के माध्यम से भारतीय नारी के रूप को चित्रित किया है वहीं यह भी संदेश दिया है कि बात जब अपने देश-प्रेम की आती है तो स्त्री भी सारे सुखों का त्याग करके राष्ट्र प्रेम का परिचय देती है । विधवा ममता की निराशा, विवश्ता और त्रासद भरे जीवन को प्रस्तुत करते हुए उसके उदार हृदय में विद्यमान अतिथि धर्म एवं असीम करुणा का सजीव वर्णन भी किया है। वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटती। अनेक कष्टों को सहन करने के पश्चात् भी अपने राष्ट्रप्रेम तथा कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाती है। ममता के संघर्षशील जीवन को दिखाना ही प्रसाद का उद्देश्य रहा है।
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