ममता का चरित्र चित्रण - Mamta Ka Charitra Chitran: ममता कहानी में ममता का चरित्र प्रधान-पात्र तथा नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह कहानी ममत
ममता का चरित्र चित्रण - Mamta Ka Charitra Chitran
ममता का चरित्र चित्रण: ममता कहानी में ममता का चरित्र प्रधान-पात्र तथा नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह कहानी ममता के इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आती है। ममता इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है। ममता रोहताश्व दुर्ग के मंत्री की बेटी है। वह उनकी स्नेह पालिका पुत्री है। उसके पिता चूड़ामणि अपनी पुत्री को बहुत प्रेम करते हैं। पिता का प्रेम पुत्री के प्रति इतना है कि उसे चिन्तित तथा दुखी देखकर वह भी चिन्तित हो जाते हैं।
सहनशील स्त्री: ममता एक विधवा स्त्री है। वह युवती है। यौन अवस्था में विधवा जीवन झेलना उसकी पीड़ा को और बढ़ाता है। सारी सुख-सुविधाएँ होने के उपरान्त भी वह सुखी नहीं है। जिसका स्पष्ट उदाहरण लेखक द्वारा इस कथन से मिलता है, "मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात को लिये, वह सुख के कंटक-शयन में विकल थी।" विधवा स्त्री को इस समाज में अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं। वह अपनी मर्जी से न उठ सकती है, न बैठ सकती है, न हँस सकती है और न ही रो सकती है। इस तरह का जीवन जीना उसके लिए कष्टदायक बन जाता है।
देशी प्रेमी: ममता देश–प्रेम के प्रति भी अपना परिचय देती है। चूड़ामणि जब अपनी पुत्री के समक्ष थालों में रखी स्वर्ण-मुद्राओं को रखते हैं तो वह अपने पिता पर क्रोध करते हुए कहती है कि क्या आपने म्लेच्छ द्वारा दी गई रिश्वत स्वीकार कर ली। पिता अपनी पुत्री को समझाने का प्रयत्न करते हैं लेकिन वह इस धन को स्वीकार नहीं करती। वह कहती है कि हम ब्राह्मण हैं। हमें इतना सोना व धन नहीं चाहिए क्योंकि यह अनर्थ है। पिता से प्रश्न करते हुए कहती है कि “क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिंदू भू-पृष्ठ पर बचा न रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके। इन पंक्तियों से ममता में देश-प्रेम की भावना को देखा जा सकता है। साथ ही वह अपनी बौद्धिकता का परिचय देते हुए कहती है कि इस धन व सोने को वापिस लौटा दीजिए क्योंकि इसकी चमक आँखों को अंधा बना रही है। इस कथन द्वारा ममता की स्पष्टवादिता को भी देखा जा सकता है।
अतिथि सत्कार करने वाली: ममता अतिथि सत्कार से भी पीछे नहीं हटती। जब अतिथि की सेवा करने का समय आता है तो वह वृद्ध अवस्था में भी अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाती है। हुमायूँ ने जब चौसा के युद्ध से भागकर एक रात वृद्ध ममता की झोंपड़ी में शरण मांगी तो पहले वह मना कर देती है किन्तु कुछ समय पश्चात् हुमायूँ की स्थिति देखकर अपनी झोंपड़ी में शरण देकर उसे विश्राम करने को कह देती है। इस बात का उदाहरण हमें ममता द्वारा कहे इस कथन से मिलता है,... मैं ब्राह्मण कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें, तो मैं भी क्यों छोड़ दूँ?" वह दया की मूर्ति है। सभी के सुख-दुख में साथ देने वाली स्त्री है। वह त्यागी स्त्री के रूप में भी हमारे सामने आती है। अपनी मृत्यु के पूर्व वह अपनी झोंपड़ी को अश्वारोही को सौंप कर कहती है, "मैं आज इसे छोड़ जाती हूँ। अब तुम इसका मकान बनाओ या महल– मैं अपने चिर विश्राम गृह में जाती हूँ। ... बुढ़िया के प्राण पखरू अनंत में उड़ गए।"
लेखक ने ममता के चरित्र को प्रस्तुत करके उसके स्वाभिमान, बौद्धिकता, निष्ठा तथा अतिथि सत्कार का परिचय दिया है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर लिखी गई इस कहानी में लेखक ने भारतीय नारी ममता की त्याग-भावना और देश-प्रेम को दर्शाया है। इस कहानी का घटना क्रम ममता के आस-पास ही घूमता है।
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