ग़ज़ल कविता का सारांश - Gazal Class 11 Summary in Hindi: प्रस्तुत कविता 'ग़ज़ल' हिंदी NCERT काव्य भाग का अध्याय 17 है। ग़ज़ल कविता की रचना दुष्यंत कुमार
ग़ज़ल कविता का सारांश - Gazal Class 11 Summary in Hindi
प्रस्तुत कविता 'ग़ज़ल' हिंदी NCERT काव्य भाग का अध्याय 17 है। ग़ज़ल कविता की रचना दुष्यंत कुमार ने की है जिसका सारांश इस प्रकार है:-
प्रस्तुत 'गज़ल' में कवि ने राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य किया। इस गज़ल का केन्द्रीय भाव राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है उसे खारिज करना और नए विकल्प की तलाश करना है । कवि कहता है कि नेताओं ने घोषणा की थी कि देश के हर घर को चिराग अर्थात् सुख सुविधाएं उपलब्ध करवाएंगे। आज स्थिति यह है कि शहरों में भी चिराग अर्थात् सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। नेताओं की घोषणाएं कागजी हैं। दूसरे शेर में कवि कहते हैं कि देश में अनेक संस्थाएँ हैं जो नागरिकों के कल्याण के लिए काम करती हैं। कवि ने उन्हें 'दरखत' की संज्ञा दी है। इनद रख्तों के नीचे छाया मिलने की बजाय धूप मिलती है अर्थात् ये संस्थाएँ ही आम आदमी का शोषण करने लगी है। चारो तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है।
कवि आम व्यक्ति के विषय में बताता है कि ये लोग गरीबी व शोषित जीवन जीने के लिए मजबूर है। यदि इनके पास वस्त्र भी न हो तो ये पैरों को मोड़कर अपने पेट को ढक लेंगे। उनमें विरोध करने का भाव समाप्त हो चुका है। ऐसे लोग ही शासकों के लिए उपयुक्त है। क्योंकि इनके कारण उनका राज शान्ति से चलता रहता है। अगले शेर में कवि कहते हैं कि संसार में भगवान नहीं है तो कोई बात नहींआम आदमी का वह सपना तो है। कहने का तात्पर्य है कि ईश्वर मानव की कल्पना है और इस कल्पना के जरिये उसे आकर्षक दृश्य देखने के लिए मिल जाते हैं। इस तरह का जीवन कट जाता है। अगली पंक्तियों में कवि आम व्यक्ति के विश्वास की बात बताता है।
कवि लिखते है कि भ्रष्ट व्यक्तियों के दिल पत्थर के होते हैं इनमें संवेदना नहीं होती। कवि को इसके विपरीत इंतजार है कि इन आम आदमियों के स्वर में असर (क्रांति की चिंगारी) हो, इनकी आवाज बुलन्द हो तथा आम आदमी संगठित होकर विरोध करे तो भ्रष्ट व्यक्ति समाप्त हो सकते हैं। आगे कवि शायरों और शासन के सम्बन्धों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि शायर सत्ता के खिलाफ लोगों को जागरूक करता है, इससे सत्ता को खतरा होता है।
वे स्वंय को बचाने के लिए शायरों की जबान अर्थात् कविताओं पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। आगे कवि का मानना है कि जब तक हम जिएँ, गुलमोहर अर्थात् स्वाभिमान के साथ जिएँ और जब मृत्यु हो तो भी स्वाभिमान के साथ हो। इस प्रकार यह गज़ल हिन्दी गज़ल का एक सुन्दर नमूना है जिसमें कवि ने राजनीति और समाज की स्थिति का वास्तविक वर्णन किया है।
भूख ! मत मचल
प्रथम वचन में अक्क महादेवी इन्द्रियों से आग्रह करती हुई कहती है कि हे भूख ! तू मुझे मत सता। सांसारिक प्यास से कहती है कि तू मुझे मत तड़पा। हे नींद ! तू मानव को सताना छोड़ दें। क्योंकि नींद से उत्पन्न आलस्य के कारण वह प्रभु की भक्ति करना भूल जाता है। वे कहती हैं कि हे क्रोध ! तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता हैं। वह मोह से कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दें। तेरे कारण मनुष्य दूसरे का अहित करने की सोचता है।
वे कहती है कि हे लोभ ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे, हे अहंकार ! तू मनुष्य को अधिक पागल न बना।
ईर्ष्या से कह रहीहैं कि तू मनुष्य को जलाना छोड़ दे। वे सृष्टि के जड़ चेतन जगत को संबोधित करते हुए कहती है कि तुम्हारे पास शिव भक्ति का अवसर है। अपनी इन्द्रियों को वश में रखने से शिव की प्राप्ति संभव है। अतः चराचर को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
इस वचन में कवयित्री ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती है। वह अपने अहंकार को नष्ट करके ईष्वर में समा जाना चाहती है। वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। हे जूही के फूल के समान कोमल व परोपकारी ईश्वर! आप मुझसे ऐसे ऐसे कार्य करवाइए जिससे मेरा अहंकार का भाव नष्ट हो जाये। आप ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे भीख मांगनी पड़े।
मेरे पास कोई साधन न रहे। आप ऐसा कुछ कीजिए कि मैं पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊ। वह आगे कहती है कि जब वह भीख माँगने के लिए झोली फैलाए तो उसे कोई भीख नहीं दें। यदि कोई उसे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो वह नीचे गिर जाए। उस गिरे हुए पदार्थ को वह उठाने के लिए झुके तो कोई कुत्ता उससे झपटकर छीनकर ले जाए। कवयित्री त्याग की पराकाष्ठा को प्राप्त कर, मान-अपमान के दायरे से बाहर निकलकर ईष्वर में विलीन होना चाहती है। अर्थात् कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना कर रही है कि मेरी सांसारिक इच्छाएँ समाप्त कर प्रभु भक्ति में मेरा ध्यान लगाएँ।
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