प्रस्तुत कविता 'चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती' Class 11 हिंदी आरोह NCERT का अध्याय 12 है। यह कविता कवि त्रिलोचन के धरती संग्रह से ली गयी है। चंपा
चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती पाठ का सारांश - Class 11 Hindi Champa Kale Kale Akshar Nahi Chinti Summary
प्रस्तुत कविता 'चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती' Class 11 हिंदी आरोह NCERT का अध्याय 12 है। यह कविता कवि त्रिलोचन के धरती संग्रह से ली गयी है। चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती का सारांश इस प्रकार है की चंपा अक्षरों के लिए काले-काले विशेषण का प्रयोग करती है।
इस कविता के माध्यम से कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकतापूर्ण तरीके से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। कवि चंपा नामक लड़की की निरक्षरता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि चंपा काले-काले अक्षरों को नहीं पहचानती अर्थात् वह उन काले अक्षरों से अनभिज्ञ है। कवि कहते हैं कि जब मैं पढ़ने लगता हूँ तो चंपा वहां आ जाती है और खड़ी खड़ी चुपचाप मेरे द्वारा बोले या पढ़े जा रहे शब्दों को सुना करती है।
चंपा को इस बात से बहुत आश्चर्य होता है कि इन काले अक्षरों या चिन्हों से कैसे ध्वनियां निकला करती हैं ? कवि चंपा के व्यक्तित्व के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वह सुंदर नामक ग्वाले की लड़की है जो गाये भैंसे रखता है। वह चंचल भी है और साथ में नटखट भी वह कभी - कभी शरारत भी करती है। वह कभी मेरी कलक चुरा लेती है, जैसे-तैसे जब मैं उसे ढूंढ कर लाता हूँ तो देखता हूँ इस बार कागज गायब हो गया है। चंपा की इन शरारतों से पुनः परेशान हो जाता हूँ।
कवि आगे पंक्तियों में कह रहे हैं कि चंपा मुझसे कहती है कि दिनभर कागज पर लिखते ही रहते हो। क्या यह काम करना बहुत अच्छा लगता है ? चंपा की बात सुनकर मैं हंसने लगता हूँ और चंपा चुप सी हो जाती है। आगे कवि कहते हैं कि एक रोज चंपा मेरे पास आई तो मैंने उससे कहा कि तुम पढ़ना लिखना सीख जाओ। जीवन में ये शिक्षा कभी तुम्हारे काम आयेगी। तत्पश्चात् मैंने चंपा से कहा कि महात्मा गांधी की भी यही इच्छा थी । सभी आदमी पढ़ना-लिखना सीख जाए। जवाब में चंपा बोलती है कि वह नहीं पढ़ेगी।
फिर चंपा कवि से कहती है कि तुम कहते थे कि गांधी बाबा बहुत अच्छे हैं। फिर पढ़ने-लिखने की बात कैसे कर सकते हैं ? चंपा की नजर में पढ़ने-लिखने का कोई महत्व नहीं है। वह बिल्कुल हठी प्रवृत्ति अपनाकर कहती है कि मैं तो नहीं पढूंगी।
आगे कवि शिक्षा के महत्व की बात करते हुए कहते हैं कि देख चंपा ! एक दिन तुम्हारी शादी होगी और तुम अपने पति के घर (ससुराल चली जाओगी। जब वहां तुम्हारा पति कुछ दिन साथ रहकर नौकरी केलिए कलकत्ता चला जायेगा और कलकत्ता बहुत दूर है। कवि चंपा को समझाते हुए कहते हैं कि ऐसे में तुम उसे अपने बारे में कैसे बताओगी ? कैसे संदेशा दोगी ? तुम उसके पत्रों को कैसे पढ़ पाओगी चंपा ! इसलिए पढ़ लेना अच्छा है। जब कवि द्वारा पढ़ने की सलाह दी गई, त बवह कवि पर गुस्से का भाव जताते हुए कहती है कि तुम बहुत झूठ बोलते हो।
तुम पढ़ लिखकर भी झूठ बोलते हो। कवि को सम्बोधित करते हुए आगे चंपा कहती है कि मैं तो शादी कभी नहीं करूंगी और यदि शादी हो गई तो मैं अपने पति को हमेशा साथ रखूंगी। उसे कभी कलकत्ता नहीं जाने दूंगी। चम्पा कहती है कि परिवारों को दूर करने वाले शहरों पर बजर गिरे। इस प्रकार इस कविता में जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चम्पा के संघर्ष और जीवन को प्रस्तुत किया गया है।
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