अनसूया और प्रियंवदा का चरित्र चित्रण: महाकवि कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम नाटक में अनसूया और प्रियंवदा को शकुन्तला की सखियों के रूप में वर्णित किया है
अनसूया और प्रियंवदा का चरित्र चित्रण
अनसूया और प्रियंवदा का चरित्र चित्रण: महाकवि कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम नाटक में अनसूया और प्रियंवदा को शकुन्तला की सखियों के रूप में वर्णित किया है। शकुन्तला की सखियाँ भी उसके तुल्य सुन्दर और समान आयु वाली हैं। तीनों सखियों में अनसूया ज्येष्ठ प्रतीत होती है । तीनों में घनिष्ठ प्रेम है और वे सदैव एक-दूसरे को सुखी देखना चाहती हैं। नाटक में अनसूया और प्रियंवदा दोनों सखियाँ सदैव साथ-साथ रहती हैं इसलिए इनके चरित्र में अनेक समानताओं और विषमताओं के दर्शन होते हैं। अगर हम इन दोनों की चारित्रिक समानताओं की ओर दृष्टिपात करें तो हम देखेंगे कि दोनों ही शकुन्तला से निःस्वार्थ भाव से प्रेम करती हैं। तृतीय अंक में शकुन्तला की अवस्था का कारण जानकर दोनों सखियाँ उसको राजा से मिलाने का प्रयत्न करती हैं। शकुन्तला सुखी रहे, अतः दोनों सखियाँ दुर्वासा ऋषि के शाप की बात शकुन्तला से छिपा लेती हैं। दोनों ही अत्यन्त शिष्ट, विनीत और मृदुभाषी हैं। वे राजा से बड़ी शिष्टता से मिलती हैं। दोनों सखियाँ कार्य कुशल और बुद्धिमान हैं। आश्रम में वृक्षों के सेंचन का कार्य दोनों बड़े उत्साह के साथ करती हैं। शकुन्तला की विदायी के अवसर पर दोनों अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए उसको वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत करती
हैं। उपरोक्त चारित्रिक समानताओं के साथ दोनों के चरित्र में कुछ भिन्नतायें भी दिखाई देती हैं, जैसे ज्येष्ठ होने के परिणामस्वरूप अनसूया गम्भीर प्रकृति की है। उसमें प्रौढता के दर्शन होते हैं। राजा जब आश्रम में प्रवेश करते हैं तो वह आगे बढकर उनसे वार्तालाप करती है। वह ही राजा को विश्वामित्र और मेनका से शकुन्तला के जन्म के विषय में बताती है। प्रियंवदा विनोद पसन्द करती है। वह अनसूया की अपेक्षा कम प्रौढ है। वह शकुन्तला से विवाह विषयक बातें करती है, जब शकुन्तला कुद्ध होकर जाने लगती है तो प्रियंवदा उसे रोकती है। वह मृदुभाषी है। मधुर बोलने के कारण ही उसका नाम प्रियंवदा पड़ा। अनसूया विचारशील और कम बोलने वाली है। वह हास-परिहास की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती। वह किसी बात पर शीघ्र
निर्णय नहीं लेती है। इसके विपरीत प्रियंवदा बोलने में चतुर है और अधिक बोलती है। अनसूया सशंकित वृत्ति की है। वह सहसा किसी बात पर विश्वास नहीं करती है। वह राजा से कहती है कि हमारी सखी को कोई दुःख न मिले आप उसके साथ ऐसा व्यवहार कीजियेगा। चतुर्थ अंक में जब अनसूया प्रियंवदा से यह कहती है कि वह राजा उसे स्मरण करेगा या नहीं इस पर प्रियंवदा तुरन्त विश्वास करके कहती है कि निश्चिन्त रहो वैसी आकृति वाले गुणों से युक्त होते हैं अतः वह राजा शकुन्तला को अवश्य स्मरण करेगा। अनसूया शकुन्तला के भविष्य के सुखों के प्रति विशेष चिन्तित दिखाई देती है जबकि प्रियंवदा शकुन्तला और राजा के विवाह विषयक वर्तमान सुख से ही सन्तुष्ट है। अनसूया गम्भीर और परिपक्व बुद्धि की है। प्रियंवदा शीघ्र घबड़ा जाती है। दुर्वासा ऋषि को मनाने के लिए वह गम्भीरतापूर्वक प्रियंवदा को भेजती है। अनसूया अधिक व्यावहारिक है। प्रियंवदा अधिक भावुक है। प्रियंवदा भयभीत है कि ऋषि कण्व शकुन्तला के विवाह के विषय में जानकर क्या कहेंगे? तब अनसूया कहती है कि ऋषि इसका समर्थन करेंगे क्योंकि गुणवान् व्यक्ति को कन्या देनी है यह माता-पिता का प्रथम संकल्प होता है और यदि उसको भाग्य ही पूर्ण कर दे तो गुरुजन बिना प्रयत्न के ही कृतार्थ हो जाते हैं।
इस प्रकार महाकवि कालिदास ने अनसूया और प्रियंवदा को शकुन्तला की अनन्य सखियों के रूप में चित्रित किया है जो सदैव उनके हित के लिए तत्पर रहती हैं।
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