अकेली कहानी का आशय स्पष्ट कीजिए। लेखिका मन्नू भंडारी अकेली कहानी द्वारा सोमा बुआ के माध्यम से एक स्त्री के अकेलेपन तथा उसके जीवन जीने की आशा पर प्रकाश
अकेली कहानी का आशय स्पष्ट कीजिए।
लेखिका मन्नू भंडारी अकेली कहानी द्वारा सोमा बुआ के माध्यम से एक स्त्री के अकेलेपन तथा उसके जीवन जीने की आशा पर प्रकाश डालती है। अकेली कहानी के आशय को हम निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से समझ सकते हैं। (1) दाम्पत्य की अवधारणा का अतिक्रमण, (2) सम्बन्धों का अकेलापन, (3) समाज से कटाव, (4) अकेलेपन से मुक्ति के उपाय।
दाम्पत्य की अवधारणा का अतिक्रमण: यह अर्धनारीश्वर की अवधारणा वाला देश है। स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं। लेकिन कहानी का पति इस तथ्य को न ही महसूस कर सकता है और न ही समझ सकता है। वह पुत्र शोक के बाद संन्यास ले अपने दुख को महिमा मंडित कर लेता है। जबकि पत्नी के दुख के प्रति उसके मन में मात्र उपेक्षा और तिरस्कार ही है। बुआ मर्दवाली होकर भी बेमर्द है और पति के हर साल आने के बावजूद परित्यक्ता है। कहानी 'पति- परमेश्वर' के बड़े झूठ को चुन्नौती देती है।
सम्बन्धों का अकेलापन: बुआ के पास परिवार था। पति और पुत्र दोनों थे। बीस साल पहले सब ध्वस्त हो गया। सोमा बुआ का जवान बेटा जाता रहा। पुत्र शोक में पति तीर्थवासी बन गए और पास-पड़ोस के सुख-दुख का हिस्सा बनकर जीवन यापन करने लगी।
समाज से कटाव: बुआ का पति वर्ष में एक महीने के लिए आता है। पति का स्नेहहीन व्यवहार, रोक-टोक और अंकुश बुआ के जीवन की अबाध बहती धारा को कुंठित कर देता है। पति का नादिरशाही हुकुम है कि बिना बुलावे के बुआ किसी के घर मुंडन, छठी, शादी या गमी में नहीं जाएगी। बुआ वृद्धा है, परित्यक्ता है—(किशोरीलाल या) देवर के ससुराल वालों का उसे आमन्त्रित न करना भी उसकी वेदना को बढ़ा देता है। यानी समाज से कटाव की स्थिति दो स्तरों पर चित्रित है। एक तो पति उस पर पाबंधियाँ लगाता है और दूसरा समाज के लोग उसे भूलने लगे हैं, अवांछित मानने लगे हैं।
अकेलेपन से मुक्ति के उपाय: पुत्र की मृत्यु और पति के सन्यासी बन जाने के बाद बुआ जीवन के अकेलेपन और एकरसता से निजात पाने के लिए निस्वार्थ भाव से पास-पड़ोस को अपनापन देने और पाने लगती है। कोई आमंत्रित करे या न करे, बुआ अपने व्यवहार और कार्यकुशलता से आयोजनों का भट्टी–भण्डार घर सब सम्भाल प्रशंसा, आभार और आत्मसंतुष्टि पा लिया करती है। बुआ सब का दिल जीतना जानती है। आमंत्रण न मिलने पर भी बुरा नहीं मानती। अपने श्रम के बल पर सबका मन जीत लेती है। कहती है—' बेचारे इतने हंगामे में बुलाना भूल गए तो मैं भी मान करके बैठ जाती ? .. मैं तो अपनेपन की बात जानती हूँ। कोई प्रेम नहीं रखे तो दस बुलावे पर भी नहीं जाऊँ और प्रेम रखे तो बिन बुलावे भी सिर के बल जाऊँ।"
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